Atiq Ahmed Story: अतीक अहमद का जन्म साल 1962 में एक सामान्य परिवार में हुआ था. उसके पिता तांगा चलाते थे. जीवन में उसका उत्थान उतना ही नाटकीय था जितना अंत. अतीक अहमद के उत्थान और पतन की कहानी बॉलीवुड थ्रिलर की तरह है. सूत्रों के अनुसार अतीक को गरीबी से नफरत थी और हाईस्कूल की परीक्षा में असफल होने के बाद उसने अपने तरीके से गरीबी मिटाने की कोशिश की थी. शुरुआत में अतीक ट्रेनों से कोयला चुराकर बेचता था और उससे पैसा कमाता था. कई बार तो रेलवे स्क्रैप के लिए सरकारी आवेदन से ठेका हासिल करने के लिए ठेकेदारों को धमकाया भी था.


साल 1979 में महज 17 साल के उम्र में अतीक पर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हत्या का पहला आरोप लगा था. इसके बाद जल्द ही वह यूपी में कई गैंगस्टरों का गिरोह चलाने लगा. दबदबा धीरे-धीरे फूलपुर और कौशाम्बी सहित आसपास के इलाकों में फैल गया. साल 1989 की बात है जब अतीक अहमद के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी शौकत इलाही को पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया. इसके बाद अतीक अंडरवल्र्ड का निर्विवाद बादशाह बन गया. आपको बता दें कि अतीक ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा और अपने पहले चुनाव में जीत दर्ज की थी. 


अतीक का राजनीतिक सफरनामा


अतीक अहमद जब 1989 में निर्दलीय सीट से विधायक बना तो इसका कद और बड़ा हो गया. इसके बाद उसने साल 1989 से 2002 तक लगातार पांच बार इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट पर जीत हासिल की. पहली तीन बार निर्दलीय के रूप में. फिर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में और अंत में अपना दल के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की.


अपना दल के उम्मीदवार के रूप में जीतने के एक साल बाद तक अतीक अपना दल से जुड़ा रहा. उसके बाद दुबार अतीक अहमद समाजवादी पार्टी में वापस चला गया और 2004 में फूलपुर लोकसभा सीट जीती. हालांकि इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र को खाली करना पड़ा था जिसके बाद राजू पाल की हत्या की घटना के वारदात को जन्म हुआ था. 24 फरवरी को उस घटना के एक मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या कर दी गई.


राजू पाल की हत्या बना अतीक का काल


उत्तर प्रदेश पुलिस ने अतीक को 2005 में राजू पाल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था. हालांकि तीन साल बाद जमानत मिल गई. जानकारों का कहना है कि अतीक चाहे जेल में रहा हो या बाहर उसने उत्तर प्रदेश के अंडरवर्ल्ड पर अपना बोलबाला बनाए रखा और यह सुनिश्चित किया कि उसके लोगों की सुरक्षा हो.


अतीक पर मदरसा के कुछ छात्राओं के सामूहिक बलात्कार में कथित रूप से शामिल अपने आदमियों को बचाने का आरोप लगाया गया था. इससे आक्रोश फैल गया और समाजवादी पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया. ये उस समय की बात है जब बीएसपी चीफ मायावती यूपी के सत्ता में लौटीं थी. पुलिस ने अतीक और उसके भाई पर दबाव बनाया. अतीक ने 2008 में आत्मसमर्पण किया और जेल चला गया.


 जब राजनीति में पकड़ होने लगी ढीली


अतीक प्रतापगढ़ से अपना दल के उम्मीदवार के रूप में 2009 के संसदीय चुनाव भी हार गए थे लेकिन चुनावी हार का मतलब यह नहीं था कि उसका दबदबा कम हो गया था. 2012 यूपी विधानसभा चुनाव में जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तो अतीक ने जेल से नामांकन भरा. उसने जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. आपको बता दें कि दस जजों ने उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया. हालांकि 11वें जज ने उसके मामले को सुना और उसे जमानत दे दी. हालांकि वह राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से चुनाव हार गया.


यूपी में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के एक साल बाद 2013 में अतीक को रिहा कर दिया गया. उसने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में श्रावस्ती से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन फिर हार गया. अतीक चुनाव हारता चला गया लेकिन उसके गैंगस्टर वाले स्वरूप वैसे के वैसे ही थे. दिसंबर 2016 में अतीक और उसके सहयोगियों ने एक ईसाई अल्पसंख्यक संस्थान के कर्मचारियों पर हमला किया. उन्होंने दो छात्रों को नकल करते पकड़े जाने के बाद परीक्षा देने से रोक दिया था. ये सारे करतूत कैमरे में कैद हो गए थे.


जनवरी 2017 में जब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से समाजवादी पार्टी का कंट्रोल ले लिया, तो अतीक का समाजवादी पार्टी रिश्ता ढीला पड़ गया. अपराधी से नेता बने अतीक से अखिलेश दूर रहना चाहते थे. अतीक को गिरफ्तार नहीं करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी यूपी पुलिस को जमकर फटकार लगाई. इसके बाद अतीक की गिरफ्तारी हुई और तब से अतीक जेल में था. मार्च 2017 में. जब योगी आदित्यनाथ भाजपा सरकार में यूपी के मुख्यमंत्री बने. तो उन्होंने 'अपराधियों के साम्राज्य' को ध्वस्त करने का वादा किया.


जेल से भी रहा अतीक का खौफ


अतीक को उसके गढ़ इलाहाबाद से राज्य की देवरिया जेल ले जाया गया. देवरिया जेल में अतीक ने अपना साम्राज्य चलाया और एक व्यापारी मोहित जायसवाल का अपहरण कराकर जेल में बुलाया. उससे संपत्ति के कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करवाए गए और बेरहमी से पिटाई भी की. इसके बाद अतीक को बरेली जेल ले जाया गया लेकिन जेल अधीक्षक डर गए और उसे वहां नहीं रखना चाहते थे.


अप्रैल 2019 में कड़ी सख्ती के बीच योगी सरकार ने अतीक को प्रयागराज की नैनी जेल में शिफ्ट कर दिया. इस समय तक  सुप्रीम कोर्ट ने देवरिया जेल मामले में अपना फैसला सुना दिया और अतीक को गुजरात के साबरमती जेल शिफ्ट करने का आदेश दिया.


अतीक के बुरे दिन कैसे शुरू हुए


अतीक अहमद के खिलाफ जबरन वसूली,अपहरण और हत्या सहित 100 से अधिक मामले दर्ज थे. राजू पाल की हत्या के एक गवाह उमेश पाल के अपहरण में उसे पहली बार सजा पिछले महीने मिली थी. विडंबना ये रही है कि उमेश पाल की हत्या के एक महीने बाद सजा सुनाई गई. अतीक अहमद का अपराध और राजनीति के बीच गहरी पैठ रही है. हालांकि वो अपनी राजनीति से ज्यादा अपराध के लिए जाना जाता था.


उसने अपने अंडरवर्ल्ड साम्राज्य को बचाने और विस्तार करने के लिए चतुराई से राजनीति का इस्तेमाल किया था. जेल में उसका रहना लंबा हो रहा था. यही वजह है कि अतीक ने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को बसपा में शामिल करा दिया. हालांकि ये उसकी चतुराई काम नहीं आ पाई थी. उमेश पाल की हत्या के आरोप में नामित होने के कारण उसे आगामी मेयर चुनावों में टिकट से वंचित कर दिया गया था.


अतीक के बेटे ने कैसे रखा अपराध के दुनिया में कदम?


अतीक के बेटे भी उसके नक्शेकदम पर चलने लगे. अतीक का सबसे बड़ा बेटा उमर वर्तमान में 2018 में लखनऊ के एक व्यवसायी मोहित जायसवाल से जबरन वसूली, हमला करने और अपहरण करने के आरोप में जेल में बंद है. उमर ने पिछले साल अगस्त में सीबीआई के सामने सरेंडर किया था. वह इस समय लखनऊ की जेल में है. अतीक का दूसरा बेटा अभी भी जेल में है. उसके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है. उसे हाल ही में उस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली थी लेकिन उसके खिलाफ फिरौती का एक और मामला दर्ज है. वह प्रयागराज के नैनी जेल में शहर के एक प्रापर्टी डीलर से पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने के आरोप में बंद है.


तीसरे बेटे असद को पिछले हफ्ते एक मुठभेड़ में मार दिया गया था और अतीक के दो नाबालिग बेटे किशोर आश्रय गृह में बंद हैं. 15 अप्रैल की रात प्रयागराज मेडिकिल कॉलेज में तीन युवकों ने अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी. किसी ने सोचा भी नहीं था कि अतीक के बेटे असद के मारे जाने के 72 घंटे के भीतर ऐसा हो जाएगा. इसकी उसने उम्मीद नहीं की थी. कहा जाता है कि एक खूनी शुरुआत का हमेशा एक खूनी अंत होता है.


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