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'498(A) कानून का दुरुपयोग न करें पत्नियां, अदालतों को भी...', अतुल सुभाष सुसाइड केस पर हंगामे के बीच पढ़ें SC की बेहद अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए यह कहा है, जिसमें एक महिला द्वारा अपने पति और ससुरालवालों के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (10 दिसंबर, 2024) को कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतों को कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए और पति के सगे-संबंधियों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाना चाहिए. जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में परिवार के सदस्यों की सक्रिय भागीदारी को इंगित करने वाले विशिष्ट आरोपों के बिना उनके नाम का उल्लेख शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी ऐसे समय पर की है, जब बेंगलुरु के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने सुसाइड कर लिया. उन्होंने पत्नी और ससुरालवालों पर खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप लगाया है. मंगलवार को खुदकुशी करने से पहले अतुल ने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था. उसके आधार पर पत्नी और उनके परजिनों के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है. मृतक उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. पुलिस ने बताया कि बेंगलुरु की एक निजी कंपनी में काम करने वाले अतुल सुभाष ने 24 पन्नों का सुसाइड नोट छोड़ा है, जिसमें उसने शादी के बाद जारी तनाव और उसके खिलाफ दर्ज कई मामलों और उसकी पत्नी, उसके रिश्तेदार और उत्तर प्रदेश के एक न्यायाधीश द्वारा प्रताड़ित किए जाने का विस्तृत विवरण दिया है.

पीठ ने कहा, 'न्यायिक अनुभव से यह सर्वविदित तथ्य है कि वैवाहिक विवाद उत्पन्न होने की स्थिति में अक्सर पति के सभी परिजनों को फंसाने की प्रवृत्ति होती है. ठोस सबूतों या विशिष्ट आरोपों के बिना सामान्य प्रकृति के और व्यापक आरोप आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बन सकते हैं.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को कानूनी प्रावधानों और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने एवं परिवार के निर्दोष सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए.

कोर्ट ने यह टिप्पणी तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए की, जिसमें एक महिला द्वारा अपने पति, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संशोधन के माध्यम से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में धारा 498ए को शामिल किए जाने का उद्देश्य महिला पर उसके पति और उसके परिजनों द्वारा की जाने वाली क्रूरता को रोकना है, ताकि राज्य द्वारा त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित किया जा सके.

पीठ ने कहा, 'हालांकि, हाल के वर्षों में देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, साथ ही विवाह संस्था के भीतर कलह और तनाव भी बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 498ए (पत्नी के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ताकि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध को बढ़ावा दिया जा सके.' कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवादों के दौरान अस्पष्ट और सामान्य आरोपों की यदि जांच नहीं की जाती है, तो कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग होगा और पत्नी एवं उसके परिवार द्वारा दबाव डालने की रणनीति को बढ़ावा मिलेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, 'हम एक पल के लिए भी यह नहीं कह रहे हैं कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता झेलने वाली किसी भी महिला को चुप रहना चाहिए और शिकायत करने या कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से खुद को रोकना चाहिए.' पीठ ने कहा कि (उसका सिर्फ यह कहना है कि) इस तरह के मामलों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए.

पीठ ने कहा कि धारा 498ए को शामिल करने का उद्देश्य मुख्य रूप से दहेज के रूप में किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूतियों की अवैध मांग के कारण ससुराल में क्रूरता का शिकार होने वाली महिलाओं की सुरक्षा करना है. पीठ ने कहा, 'हालांकि, कभी-कभी इसका दुरुपयोग किया जाता है, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ.' शीर्ष अदालत ने प्राथमिकी खारिज करते हुए कहा कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध के कारण एवं रंजिश की वजह से शिकायत दर्ज कराई गई थी.

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