अयोध्या: अयोध्या विवाद को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब इस मामले से जुड़ी बड़ी खबर आई है. सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दिए जाने के मामले को लेकर हिंदू पक्ष पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा. हिंदू महासभा के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, "विवादित इमारत के बाहरी और भीतरी हिस्से पर हिंदू दावा मज़बूत होने के चलते जगह हमें मिली. पूरा इंसाफ करने के नाम पर मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने का हम विरोध करेंगे. फैसले में 1949 और 1992 की घटनाओं पर जो टिप्पणी की गई है, उसे भी हटाने की मांग करेंगे."


9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्म भूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मत फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन दी जाए.


सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पहली पुनर्विचार याचिका दाखिल हो गई है. यह याचिका जमीयत उलेमा ए हिंद से जुड़े मौलाना असद रशीदी ने दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई कमियों से भरा हुआ है. उस पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए. तब तक कोर्ट अपने फैसले के अमल पर रोक लगा दें.


कई बिंदुओं पर सहमति जताई


रशीदी ने यह याचिका मामले के मुख्य पक्षकार रहे दिवंगत एम सिद्धीक के प्रतिनिधि के तौर पर दाखिल की है. 217 पन्ने की याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने माना है कि वहां नमाज होती थी. फिर भी मुसलमानों को बाहर कर दिया. याचिका में कहा गया है 1949 में अवैध तरीके से इमारत में मूर्ति रखी गई थी, फिर भी रामलला को पूरी जगह दी गई. लेकिन कुछ बिंदुओं पर फैसले की कमियां भी गिनाई गई हैं और उनके आधार पर दोबारा सुनवाई की मांग की गई है.


सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें


सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से किए गए फैसले में 2.77 एकड़ की पूरी विवादित भूमि को रामलला को दे दी. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित करने के आदेश भी सरकार को दिए. जिस पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया. इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.


पूरा फैसला 1045 पन्नों का है, इसमें 929 पन्नें एक मत से हैं जबकि 116 पन्नें अलग से हैं. एक जज ने फैसले से अलग राय जताई है. अभी जज के नाम का कोई जिक्र नहीं है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर 40 दिन सुनवाई चली. 6 अगस्त 2019 से इसपर सुनवाई शुरू हुई. 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी कर ली थी.


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