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राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामला: संविधान पीठ में मुस्लिम जज की मांग पर जिलानी बोले- जजों का कोई धर्म नहीं होता

हाजी महबूब की मांग को मुस्लिम पक्षकार के वकील और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) के संयोजक जफरयाब जिलानी ने गलत बताया है. उन्होंने कहा कि हम वकीलों के लिए यह मायने नहीं रखता है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच (पीठ) में किस धर्म को मानने वाले लोग हैं.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुनवाई के लिए पांच सदस्यों की संविधान पीठ गठित कर दी है. ये पीठ कल अयोध्या मामले में सुनवाई करेगी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस उदय यू ललित और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ शामिल हैं. पीठ के गठन के बाद अयोध्या मामले में एक मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब ने कहा कि संवैधानिक पीठ में एक मुस्लिम जज भी होना चाहिए.

उन्होंने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा, ''पांच जज की बेंच से वो इत्तेफ़ाक नहीं रखते हैं. कम से कम एक मुस्लिम जज होना चाहिए था. अभी से ये बेंच जैसी बनी है, अल्लाह जाने आगे क्या होगा? लेकिन जो भी फैसला होगा मान्य होगा. हम चाहते हैं कि मामले में जल्द से जल्द सुनवाई हो.''

हाजी महबूब की मांग को मुस्लिम पक्षकार के वकील और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) के संयोजक जफरयाब जिलानी ने गलत बताया है. उन्होंने कहा कि हम वकीलों के लिए यह मायने नहीं रखता है कि बेंच (पीठ) में किस धर्म को मानने वाले लोग हैं.

जिलानी ने कहा, ''हर जज कानून और संविधान के मुताबिक फैसला करता है. चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान. जज के लिए पर्सनल धर्म या फिलॉस्पी मायने नहीं रखता है. सुप्रीम कोर्ट कई बार इस पर टिप्पणी भी कर चुका है. हमें बेंच में कौन है इसपर कोई आपत्ति नहीं है. हां, जनता में इस बात का एहसास होता है कि वो किस धर्म का है. वकीलों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. कोई भी जज संविधान के तहत काम करता है. वो किसी मज़हब या जाति का है हम वकीलों को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता , जज संविधान के तहत काम करते हैं.''

राम मंदिर मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच बनी, 10 जनवरी से शुरू होगी सुनवाई

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कल इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगी. शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने पिछले साल 27 सितंबर को 2:1 के बहुमत से मामले को शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई उस टिप्पणी को पुनर्विचार के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से मना कर दिया था जिसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. मामला अयोध्या भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के दौरान उठा था.

जब मामला चार जनवरी को सुनवाई के लिये आया था तो इस बात का कोई संकेत नहीं था कि भूमि विवाद मामले को संविधान पीठ को भेजा जाएगा क्योंकि शीर्ष अदालत ने बस इतना कहा था कि इस मामले में गठित होने वाली उचित पीठ 10 जनवरी को अगला आदेश देगी.

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड नोटिस में यह जानकारी देते हुये कहा गया है कि अयोध्या भूमि विवाद में याचिकाएं 10 जनवरी, 2019 को सुबह साढ़े दस बजे चीफ जस्टिस के कोर्ट में संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होंगी.

अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित 2.77 एकड़ भूमि के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के 2:1 के बहुमत के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गयी हैं. हाई कोर्ट ने इस फैसले में विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था.

इस फैसले के खिलाफ अपील दायर होने पर शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाई कोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने के साथ ही विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था.

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