नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद की सुनवाई 10 जनवरी को 3 जजों की बेंच में किए जाने का आदेश दिया है. आज ये मामला दो जजों की बेंच के सामने लगा था. अब तक तीन जजों की बेंच मामले को सुनती रही है. ऐसे में इस तरह का आदेश आना अपेक्षित था. माना जा रहा है कि 10 जनवरी को जो बेंच बैठेगी, वही आगे नियमित रूप से मामले को सुनेगी. आइए हम उन संभावित परिस्थितियों को देख लेते हैं, जो 10 जनवरी को बन सकती हैं.


टल भी सकती है सुनवाई


पहली स्थिति ये है कि जो बेंच 10 जनवरी को बैठेगी, उसमें से अगर कोई जज व्यक्तिगत कारण से खुद को सुनवाई अलग करता है, तो सुनवाई टल जाएगी. दोबारा नई बेंच का गठन करना पड़ेगा. हालांकि, ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम है.


सुनवाई शुरू होने की तारीख मिल सकती है


इस बात की पूरी उम्मीद है कि मामले से जुड़े पक्ष खासतौर पर हिंदू पक्ष और यूपी सरकार मामले की सुनवाई जल्द शुरू करने की मांग करेंगे. ये पक्ष केस नियमित रूप से सुनकर एक तय समय सीमा में निपटाने की मांग भी रखेंगे. बेंच के तीनों जज इस पर आपस में विचार-विमर्श कर, समय की उपलब्धता के हिसाब से एक तारीख दे सकते हैं. हो सकता है ये तारीख बिल्कुल पास की हो. ये भी हो सकता है कि तारीख कुछ महीने बाद की हो. इस पर अभी कोई टिप्पणी कर पाना मुश्किल है.


टालने की मांग पर भी रखनी होगी नज़र


पहले कुछ वकील कोर्ट से मामला टालने की मांग करते रहे हैं. 2010 में मामला दाखिल होने के बाद से दस्तावेजों का अनुवाद न हो पाने की बात कही जाती रही. 2017 में मुस्लिम पक्ष के एक वकील कपिल सिब्बल ने 2019 लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई की मांग की थी. इसका दूसरे वकीलों राजीव धवन और दुष्यंत दवे ने भी समर्थन किया था. बाद में राजीव धवन ने इस्लाम में मस्ज़िद की अनिवार्यता का सवाल उठा दिया. इससे भी मामला कुछ महीनों के लिए टल गया. वैसे तो अब निर्णायक सुनवाई शुरू होने में कोई अड़चन नज़र नहीं आती. फिर भी ये देखना होगा कि क्या सभी पक्ष जल्द सुनवाई का समर्थन करते हैं. अगर कोई पक्ष विरोध करता है, तो कोर्ट उस पर क्या कहता है.


सभी पक्षों से बहस का वक्त पूछा जाएगा


हो सकता है कि जज मांग के मुताबिक नियमित सुनवाई पर आदेश दें. अगर कोर्ट नियमित सुनवाई को तैयार हो जाता है, तब बात इस पर आएगी कि इसे कितने दिन में पूरा किया जाएगा. इसके लिए कोर्ट सभी पक्षों से पूछेगा कि उन्हें अपनी जिरह करने के लिए कितना-कितना समय चाहिए.


बहस का समय कोर्ट तय कर सकता है


अगर कोर्ट ये तय कर लेता है कि वह एक तय समय सीमा में सुनवाई को पूरा करेगा, तो वो सभी पक्षों के वकीलों से अपनी जिरह का समय सीमित करने के लिए कह सकता है. 2016 में कोर्ट ने तीन तलाक मामले की सुनवाई के दौरान यही रुख अपनाया था. इसके चलते 7-8 दिनों में सुनवाई पूरी हो गई थी. हालांकि, अयोध्या मामले के विस्तार को देखते हुए इतने कम समय में सुनवाई पूरी होने की कोई संभावना नहीं है. फिर भी कोर्ट सुनवाई खत्म करने की एक समय सीमा तय कर सकता है.


अलग से दाखिल अर्ज़ियों को भी देखा जाएगा


मामले के तीन मुख्य पक्षकारों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा कई हिंदू और मुस्लिम पक्षकार हैं, जो मुकदमे से शुरू से जुड़े हुए हैं. कोर्ट को उन सब की बात सुननी होगी. इसके अलावा कुछ और याचिकाएं हैं, जिन्हें मुख्य मामले के साथ लगा दिया गया है. जैसे शिया वक्फ बोर्ड विवादित जगह को शिया मस्जिद बताते हुए हिंदुओं को सौंपने की बात कह रहा है. इसके अलावा कुछ बौद्ध याचिकाकर्ता भी जगह को बौद्ध स्मारक बताते हुए अपना दावा कर रहे हैं. इस तरह के याचिकाकर्ता जिनका मुख्य मामले से सीधे लेना-देना नहीं है. बेंच को उनकी सुनवाई पर भी फैसला लेना होगा. उसे ये तय करना होगा कि इन्हें सुना जाए या नहीं. अगर सुना जाए तो कब और कितने समय के लिए.


हाई कोर्ट जितना समय नहीं लगेगा


ऊपर लिखी तमाम स्थितियों के आधार पर ही ये तय हो सकेगा कि अयोध्या मामले की सुनवाई कब, कैसे और कितने समय में होगी. हालांकि, इतना जरूर है कि सुप्रीम कोर्ट में उतना समय नहीं लगेगा, जितना हाई कोर्ट में लगा. इसकी वजह ये है कि हाई कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद में सिविल कोर्ट की तरह काम किया. वहां पर तमाम सबूतों को परखा गया. लोगों के बयान दर्ज किए गए. इसमें कई सालों का वक्त लगा. सुप्रीम कोर्ट को अपीलों पर सुनवाई करनी है. इसलिए, जो बातें हाई कोर्ट में कहीं जा चुकी हैं और उनके आधार पर हाई कोर्ट ने जो निष्कर्ष दिया है, उसकी समीक्षा सुप्रीम कोर्ट में होगी.


इसके बावजूद अभी ये कह पाना मुश्किल है कि क्या देश में बने माहौल के मुताबिक अगले कुछ महीनों में ही कोर्ट इस मामले की सुनवाई खत्म करके फैसला दे देगा. या फिर कोर्ट इसे भी दूसरे मामलों की तरह देखते हुए अपनी प्रक्रिया के मुताबिक सुनवाई करेगा. अगर ऐसा होता है तो फिर सुनवाई में काफी समय लग सकता है.


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