नई दिल्लीः अयोध्या मामले को लेकर पिछले 40 दिनों से जारी सुनवाई आज पूरी हो गई. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रख लिया. पांच जजों की बेंच के समक्ष सभी पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं. कोर्ट ने तय समय से एक घंटा पहले सुनवाई पूरी कर ली. माना जा रहा है कि 23 दिन बाद इसका फैसला आ जाएगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से किसी तारीख का एलान नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कई दशकों से जारी इस विवाद का अंत हो सकता है.
ऐसा नहीं कि यह मुद्दा हाल फिलहाल में उठा हो. कई साल पहले जब देश में अंग्रेजों का शासन था तब उस वक्त साल 1813 में हिंदू संगठनों ने विवादित जमीन पर मंदिर होने का दावा किया था. ब्रिटिश सरकार ने साल 1859 में विवादित जगह को तार से घेर दिया था.
साल 1885 में पहली बार मंदिर बनाने की अनुमति मांगी
अंग्रेजों की ओर से उठाए गए इस कदम के बाद साल 1885 में पहली बार महंत रघुबर दास ने ब्रिटिश शासन के दौरान ही अदालत में याचिका देकर मंदिर बनाने की अनुमति मांगी थी.
हिंदू संगठनों का दावा है कि साल 1526 में जब बाबर आया तो उसने राम मंदिर को तुड़वाकर ही मस्जिद का निर्माण कराया था. उसी के नाम पर बनाई गई इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया.
साल 1934 में पहली बार गिराया गया था ढांचा
साल 1934 में विवादित जमीन को लेकर हिंसा भड़की थी. इस दौरान मस्जिद का कुछ हिस्सा तोड़ दिया गया था. जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने तब इसकी मरम्मत करवाई थी. साल 1949 को हिंदुओं ने विवादित जमीन पर रामलला की प्रतिमा रखकर पूजा शुरू कर दी.
आजाद भारत में ऐसे बना बड़ा मुद्दा
साल 1950 में फैजाबाद की अदालत से गोपाल सिंह विशारद नाम के एक व्यक्ति ने रामलला की पूजा-अर्चना करने के लिए विशेष अनुमति मांगी. साल 1959 में निर्मोही अखाड़े ने विवादित जमीन को उसे ट्रांसफर करने और दिसंबर 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर कर दिया.
साल 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने, राम जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने और विवादित स्थल पर विशाल मंदिर निर्माण के लिए एक देशव्यापी अभियान शुरू किया. इस दौरान देशभर में जगह-जगह प्रदर्शन किए गए. वीएचपी को बीजेपी का साथ मिला. दोनों ने मिलकर इस मुद्दे को हिंदू अस्मिता के साथ जोड़ा और संघर्ष शुरू किया.
बाबरी एक्शन कमेटी 1986 में बनाई गई
इस मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही थी. साल 1986 में फैजाबाद जिला जज की ओर से पूजा की इजाजत दी गई. हालांकि, इससे नाराज मुस्लिम पक्ष ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित करने का फैसला लिया.
इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने भारी संख्या में अयोध्या पहुंचकर मस्जिद को ढहा दिया. जिसके बाद देश भर में हिंसा भड़की, सांप्रदायिक दंगे हुए. इस दौरान अस्थाई राम मंदिर भी बनाया गया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2002 में सुनवाई शुरू की
अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर साल 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की. इसके बाद साल 2003 में हाईकोर्ट से मिले आदेश के बाद पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल पर खुदाई की. विभाग ने दावा किया कि मस्जिद की खुदाई में विवादित ढांचे के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं.
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
साल 2011 में मामले की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादित क्षेत्र को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुना दिया. यह फैसला सभी पक्षों को स्वीकार नहीं था. जिसके बाद साल 2011 में हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.
मध्यस्थता के सारे प्रयास विफल रहे
साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई शुरू हुई. हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट से भेजे गए दस्तावेजों का अनुवाद नहीं हो पाने के कारण यह मामला टलता रहा. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता की पेशकश की, जो विफल रही. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त 2019 से रोजाना सुनवाई कर जल्द से जल्द मामले का निपटारा करने की बात कही.
Live Story Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट में पूरी हुई सुनवाई, फैसला सुरक्षित रखा
राम मंदिर पर सुनवाई पूरी! अब आगे क्या? | ABP Uncut Explainer