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शिया धर्मगुरु बोले, फैसला बाबरी मस्जिद के हक में आने पर भी मुस्लिम, हिंदुओं को दे दें ज़मीन

शिया धर्मगुरु ने यह बातें रविवार को ‘विश्व शांति और समरसता’ कॉन्क्लेव में कही. मौलाना कल्बे सादिक का कहना है, “सुप्रीम कोर्ट मंदिर-मस्जिद विवाद को देख रहा है और हमें देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर पूरा भरोसा है.”

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट अब से चार महीने बाद यानी दिसंबर में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर अपनी सुनवाई करेगा. हालांकि, बीच-बीच में इस मुद्दे पर दोनों समुदायों के लोग बयानबाज़ी करते रहे हैं. इसी कड़ी में ताज़ा बयान शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक का आया है. उन्होंने कहा है कि अगर विवादित स्थल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुसलमानों के पक्ष में आता है, तो मुसलमानों को वो ज़मीन हिंदुओं को दे देनी चाहिए. शिया धर्मगुरु ने यह बातें रविवार को ‘विश्व शांति और समरसता’ कॉन्क्लेव में कही. मौलाना कल्बे सादिक का कहना है, “सुप्रीम कोर्ट मंदिर-मस्जिद विवाद को देख रहा है और हमें देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर पूरा भरोसा है.” सादिक अपनी बात को बढ़ाते हुए आगे कहते हैं, “अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम समाज के खिलाफ आता है, तो मुस्लिम समुदाय कोर्ट के फैसले को शांतिपूर्ण तरीके से मान लें. लेकिन अगर कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आ जाता है, तो मुस्लिम खुशी के साथ उस जमीन को हिंदुओं को सौंप दें.”

आपको बता दें कि इससे पहले, शिया वक्फ बोर्ड कह चुका है कि वो विवादित स्थल के एक तिहाई हिस्से पर अपना दावा छोड़ने को तैयार है. इससे पहले मंगलवार यानी आठ अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में शिया वक्फ बोर्ड ने अपने तीस पन्ने के दायर हलफनामे में कहा कि बाबरी मस्जिद पर सुन्नी बोर्ड का नहीं, बल्कि उसका अधिकार बनता है. यहीं नहीं शिया बोर्ड ने अपने हलफनामें में कहा है कि मंदिर का निर्माण वहीं हो, जहां कट्टर हिंदू संगठन राम मंदिर होने की बात करते हैं और मस्जिद वहीं के किसी पास के क्षेत्र में बने.” आपको बता दें कि मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने इसी शुक्रवार यानी ग्यारह अगस्त को सुनवाई की. कोर्ट ने अब अगली सुनवाई की तारीख 5 दिसंबर मुकर्रर की है. कोर्ट ने सभी पक्षों को ऐतिहासिक और पुराने दस्तावेजों का अंग्रेजी में ट्रांसलेशन करने के लिए तीन महीने का समय दिया है. दरअसल ज्यादातर दस्तावेज, उर्दू, फारसी, अरबी और संस्कृत भाषाओं में हैं. सुप्रीम कोर्ट करीब छह साल बाद इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. इससे पहले कोर्ट ने साल 2011 के मई महीने में इस मुद्दे पर सुनवाई की थी, जिसमें कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए विवादित जगह पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मसले पर  30 सितंबर 2010 को ऐतिहासिक फैसला देते हुए विवादित स्थल को तीन हिस्सों,  रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बांट दिया था.

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