नई दिल्ली: रामजन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा. सुनवाई दोपहर 2 बजे होगी. 5 दिसंबर को कोर्ट ने आदेश दिया था कि अगली सुनवाई से पहले सभी पक्ष दस्तावेजों के अनुवाद, आपस मे उनके लेन-देन जैसी प्रक्रिया पूरी कर लें. मामले से जुड़े वकीलों के मुताबिक, ये सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. ऐसे में सुनवाई टालने की कोई तकनीकी वजह नहीं है.


कपिल सिब्बल ने की थी बाद में सुनवाई की मांग

कोर्ट आज मामले की लगातार सुनवाई की तारीख तय कर सकता है. 5 दिसंबर को हुई पिछली सुनवाई में मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने बार-बार सुनवाई टालने की मांग की. पहले कहा गया कि मामले से जुड़े 19950 पन्नों को अब तक रिकॉर्ड पर नहीं लिया गया है. इस पर कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई से पहले सभी पक्ष दस्तावेज जमा करा दें. इसके बाद मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने जुलाई 2019 के बाद सुनवाई की मांग रख दी.

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जजों की बेंच ने कपिल सिब्बल की दलील को अनसुना किया

सिब्बल ने कहा कि राम मंदिर निर्माण मौजूदा सरकार के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा है. कोर्ट अगर मन्दिर के पक्ष में आदेश देगा तो इससे सत्ताधारी पार्टी को फायदा होगा. इसलिए सुनवाई लोकसभा चुनाव के बाद की जाए. 3 जजों की बेंच ने इस दलील को अनसुना कर दिया. मुस्लिम पक्ष के एक और वकील राजीव धवन ने कहा कि मामले की सुनवाई 3 जजों की बजाय 7 जजों की बेंच को करनी चाहिए. उन्होंने बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अक्टूबर में रिटायर होने की भी दलील रखी. कहा कि मामला किसी और बेंच को भेजना चाहिए.

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हालांकि, बेंच ने इसे सुनवाई टालने का आधार नहीं माना. इसके बाद कपिल सिब्बल, राजीव धवन और दुष्यंत दवे सुनवाई छोड़ कर जाने लगे. दूसरे पक्ष के वकीलों ने इस बर्ताव पर कड़ा एतराज जताया. बाद में तीनों वकील कोर्ट में रुक गए. जजों ने भी वकीलों के इस बर्ताव पर हैरानी जताई. कोर्ट ने कहा कि इस तरह टालने से मामला कभी खत्म नहीं होगा. सभी पक्ष सुनवाई से पहले की औपचारिकताएं पूरी करें. इसके बाद लगातार सुनवाई होगी. वैसे, चीफ जस्टिस खुद इस समय आधार मामले की नियमित सुनवाई कर रहे हैं. उन्हें ही अयोध्या मामले पर बेंच की अध्यक्षता करनी है.

अयोध्या जमीन विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला क्या था?

अयोध्या जमीन विवाद में 30 सितंबर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया था.  हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को 3 हिस्सों में बांट दिया था. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया. एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़ा को मिला.

रामलला की मूर्ति वाला स्थान रामलला विराजमान को देने का आदेश हुआ. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया. बाकी की एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया था. इसके खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

अयोध्या का जमीन विवाद क्या है ?

अयोध्या विवाद हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बड़ा मुद्दा रहा है. अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर होने की मान्यता है. मान्यता है कि विवादित जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था. हिंदुओं का दावा है कि राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई. राम मंदिर को 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने गिरा कर मस्जिद बनाई थी.
90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गरमा गया था. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था. अयोध्या में विवादित जमीन पर रामलला की मूर्ति विराजमान है.