नई दिल्ली: राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट कल सुनवाई करेगा. कोर्ट ने कहा है कि सात साल से लंबित इस मामले को अब और नहीं टाला जाएगा. सुनवाई दोपहर 2 बजे होगी. कोर्ट ने कहा है कि सात साल से लंबित इस मामले को अब और नहीं टाला जाएगा. 5 दिसंबर को कोर्ट ने आदेश दिया था कि अगली सुनवाई से पहले सभी पक्ष दस्तावेजों के अनुवाद, आपस में उनके लेन-देन जैसी प्रक्रिया पूरी कर लें. मामले से जुड़े वकीलों के मुताबिक, ये सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. ऐसे में सुनवाई टालने की कोई तकनीकी वजह नहीं है.
कोर्ट का गर्म माहौल
5 दिसंबर को हुई पिछली सुनवाई में मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने बार-बार सुनवाई टालने की मांग की. पहले कहा गया कि मामले से जुड़े 19950 पन्नों को अब तक रिकॉर्ड पर नहीं लिया गया है. इस पर कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई से पहले सभी पक्ष दस्तावेज जमा करा दें. इसके बाद मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने जुलाई 2019 के बाद सुनवाई की मांग रख दी.
सिब्बल ने कहा कि राम मंदिर निर्माण मौजूदा सरकार के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा है. कोर्ट अगर मन्दिर के पक्ष में आदेश देगा तो इससे सत्ताधारी पार्टी को फायदा होगा. इसलिए सुनवाई लोकसभा चुनाव के बाद की जाए. तीन जजों की बेंच ने इस दलील को अनसुना कर दिया.
मुस्लिम पक्ष के एक और वकील राजीव धवन ने कहा कि मामले की सुनवाई 3 जजों की बजाय 7 जजों की बेंच को करनी चाहिए. उन्होंने बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अक्टूबर में रिटायर होने की भी दलील रखी. कहा- मामला किसी और बेंच को भेजना चाहिए. हालांकि, बेंच ने इसे सुनवाई टालने का आधार नहीं माना.
इसके बाद कपिल सिब्बल, राजीव धवन और दुष्यंत दवे सुनवाई छोड़ कर जाने लगे. दूसरे पक्ष के वकीलों ने इस बर्ताव पर कड़ा एतराज जताया. बाद में तीनों वकील कोर्ट में रुक गए.
कोर्ट ने सुनवाई टालने से मना किया
जजों ने भी वकीलों के इस बर्ताव पर हैरानी जताई. कोर्ट ने कहा कि इस तरह टालने से मामला कभी खत्म नहीं होगा. सभी पक्ष सुनवाई से पहले की औपचारिकताएं पूरी करें. इसके बाद लगातार सुनवाई होगी. वैसे, चीफ जस्टिस खुद इस समय आधार मामले की नियमित सुनवाई कर रहे हैं. उन्हें ही अयोध्या मामले पर बेंच की अध्यक्षता करनी है. इसलिए सुनवाई कुछ दिनों के लिए टल सकती है.
सात साल से लंबित है मामला
30 सितंबर 2010 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया था. हाई कोर्ट ने विवादित जगह पर मस्ज़िद से पहले हिन्दू मंदिर होने की बात मानी थी. लेकिन ज़मीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांटने का आदेश दे दिया था. इसके खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.