नई दिल्ली: अयोध्या मामले की अगली सुनवाई 23 मार्च को होगी. सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच इस बात पर सुनवाई करेगी कि क्या मामले से जुड़े एक अहम सवाल को संविधान पीठ में भेजा जाना चाहिए. एक मुस्लिम पक्षकार की तरफ से ये मांग की गई है.


ठीक दोपहर 2 बजे चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर की बेंच सुनवाई के लिए बैठी. जैसा कि उम्मीद की जा रही थी, बेंच ने भविष्य में होने वाली विस्तृत सुनवाई की दिशा तय करनी शुरू कर दी. सबसे पहले कोर्ट ने इस बात की जानकारी ली कि दस्तावेजों के अनुवाद और सभी पक्षों के बीच उनके लेन-देन का काम पूरा हुआ या नहीं. वकीलों ने बताया कि सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. इसके बाद कोर्ट ने एक एक कर मामले में पक्षकार बनने की अर्ज़ी लगाने वाले लोगों को सुनना शुरू किया. कोर्ट ने इस तरह की लगभग 25 अर्ज़ियों को खारिज कर दिया.


कोर्ट ने तेज़ी से सुनवाई के संकेत देते हुए कहा- "हम हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपीलों को सुनने बैठे हैं. कोई भी याचिकाकर्ता जो हाई कोर्ट में पक्ष नहीं था, उसे अब कैसे सुना जा सकता है." हालांकि, इसके बावजूद सुनवाई शुरू होने में कुछ देरी हो सकती है.


इसकी वजह है इस्माइल फारुखी फैसला. एक मुस्लिम पक्षकार की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने इस फैसले का हवाला देते हुए मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की मांग की. 1994 में आए इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने माना था कि मस्ज़िद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.


धवन की दलील थी कि ये फैसला मुस्लिम पक्ष के दावे को कमज़ोर कर सकता है. इसलिए सबसे पहले इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. अगर सुप्रीम कोर्ट इस्माइल फारुखी फैसले पर पुनर्विचार के लिए तैयार हो जाता है तो इसे संविधान पीठ को भेजा जाएगा. संविधान पीठ का फैसला आने के बाद ही अयोध्या मामले की सुनवाई शुरू हो सकेगी.