जानें- अयोध्या विवाद पर क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
2.77 एकड़ की विवादित जमीन पर सुनवाई
अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई हैं जहां अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर सबसे बड़ी सुनवाई शुरू हो रही है. विवादित जमीन पर हक की इस लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के सामने सबसे अहम सात अलग-अलग भाषाओं के करीब 9000 पन्नों के दस्तावेज हैं. 11 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने हिंदी, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत, पाली और पंजाबी भाषा के दस्तावेजों के अनुवाद के लिए 12 हफ्ते का वक्त दिया था.
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कुछ पक्ष कर सकते हैं पांच या सात जजों की बेंच में सुनवाई की मांग
सुनवाई शुरू करने से पहले कोर्ट को ये देखना पड़ेगा कि मामले से जुड़े जरूरी दस्तावेजों के अनुवाद का काम पूरा हुआ है या नहीं. साथ ही ये बताया जा रहा है कि कुछ पक्ष तीन के बजाय पांच या फिर सात जजों की बेंच में सुनवाई की मांग कर सकते हैं. अगर कोर्ट इस मांग से सहमत नहीं होता है और ये पाता है कि दस्तावेजों के अनुवाद का खत्म हो चुका है तो ऐसे में अयोध्या भूमि विवाद कि लगातार सुनवाई की आज से शुरूआत हो सकती है.
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हाईकोर्ट ने जमीन 3 पक्षों में बराबर बांटी थी
साल 2010 में हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को मामले से जुड़े तीन पक्षों निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का फैसला दिया था. इसी फैसले के खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. पिछले सात साल में कोर्ट में कुल 13 और याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं.
पहले मुख्य पक्षों को जिरह का मौका दिया जाएगा
मामले में सुनवाई का क्रम क्या हो यानी किस पक्ष को पहले सुना जाए और किसे बाद में, इसका जवाब देते हुए अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस पक्ष ने पहले अपील दाखिल की उसे पहले सुना जाएगा. इसी क्रम में सभी पक्षों को एक एक करके सुना जाएगा. सुब्रमण्यम स्वामी और कुछ और पक्षों को मुख्य पक्षों के बाद सुना जाएगा.
इस मामले की सुनवाई को टाला नहीं जाएगा
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर अयोध्या जमीन केस की सुनवाई करेंगे. सुप्रीम कोर्ट पहले ही ये कह चुका है कि अब इस मामले की सुनवाई को और टाला नहीं जाएगा.