Ram Mandir: अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है. इसके उद्घाटन की शुभ बेला करीब आ गई है. ऐसी घड़ी जिसका इंतजार आज से नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से हो रहा था. देश की राजनीति की धुरी रहे अयोध्या विवाद का निपटान 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यहां मंदिर निर्माण तो हो रहा है, लेकिन इस आदेश को हासिल करने में सालों तक कानूनी दांवपेच की मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस मंदिर के पक्ष में कई पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्य तो दिए ही गए, साथ ही कई विदेशी लेखकों की किताबें भी इस फैसले का आधार बनी थीं. आज हम आपको उन्हीं किताबों और लेखकों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें सबूत के तौर पर राम मंदिर केस में सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया था.
1045 पन्ने के फैसले में है किताबों का जिक्र
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर निर्माण के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. 1045 पन्नों के इस फैसले में कई किताबों का जिक्र किया गया है. 929 नंबर पेज के बाद इन दस्तावेजों का जिक्र किया गया है. इसमें उन किताबों का विस्तार से उल्लेख है जिन्हें सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश किया गया था.
हैन्स टी की किताब का जिक्र
कोर्ट के फैसले में कई जगहों पर हैन्स टी बेक्कर की किताब का जिक्र है. साल 1984 में बेक्कर ने ग्रोनिन्जेन यूनिवर्सिटी में अयोध्या पर अपना रिसर्च पेपर दिया था. 1986 में ये एक किताब की शक्ल में प्रकाशित हुई. इसमें राम जन्मभूमि, बाबरी मस्जिद और अन्य जरूरी जगहों के मैप हैं (जो 1980 से 1983 के बीच बनाए गए थे). इस किताब में कई जगहों पर अयोध्या महात्म्य को भी आधार बनाया गया है.
बेक्कर ने खुद कई किताबों को पढ़ा और लिखा कि गुप्त काल में अयोध्या नाम की जगह की पहचान हुई थी और इसका जिक्र ब्रह्मांड पुराण और कालीदास के रघुवंश में भी है. साथ ही इसमें कहा गया है कि 533-534 सदी की एक तांबे की प्लेट के अनुसार "अयोध्या नाम की जगह" का जिक्र है.
अबुल फजल की किताब में भी अयोध्या का जिक्र
अकबर के शासनकाल के दौरान अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी की रचना की थी, जिसमें प्रशासन से जुड़ी छोटी से छोटी बातों का जिक्र है. अबुल फजल अकबर के दरबार में एक मंत्री हुआ करते थे और 16वीं सदी में फारसी भाषा में इसे लिखने का काम पूरा हुआ था. इसके दूसरे खंड में "अवध के सूबे" का जिक्र भारत के सबसे बड़े शहरों और हिंदुओं के लिए पवित्र स्थानों के रूप में है.
इसके अनुसार अवध को रामचंद्र का निवास स्थान बताया गया है, जो त्रेता युग में यहां रहते थे. इस किताब में ईश्वर (भगवान विष्णु) के नौ अवतारों का विवरण है जिसमें से एक "राम अवतार" की बात की गई है. इसके अनुसार त्रेता युग में चैत्र के महीने के नौवें दिन अयोध्या में दशरथ और कौशल्या के घर पर राम का जन्म हुआ.
विलियम फ्रिंच ने भी वृत्तांत में अयोध्या की जानकारी दी
साल 1610 से 1611 के बीच विलियम फ्रिंच ने भारत का दौरा किया था. उन्होंने अपना यात्रा वृतांत "अर्ली ट्रैवल्स इन इंडिया" में रामचंद्र के महल और घरों के अवषेश के बारे में लिखा है.
दो आयरिश अधिकारियों ने भी मस्जिद की जगह पूजा का जिक्र किया
18वीं सदी में भारत की यात्रा करने वाले एंग्लो-आइरिश अधिकारी मोन्टगोमरी मार्टिन और जोसेफ टिफेन्टालर (यूरोपीय मिशनरी) ने भारत में अपनी यात्रा का वृतांत लिखा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इसका भी जिक्र करते हुए विवादित जमीन पर हिंदू सीता रसोई, स्वर्गद्वार और राम झूले की पूजा का जिक्र किया है. इसके अनुसार अवध के ब्रितानी शासन में शामिल होने के पहले से यानी 1856 से पहले बड़ी संख्या में लोग यहां जमीन की परिक्रमा भी करते थे.
जोसेफ टिफेन्टालर के यात्रा वृतांत का अंग्रेजी अनुवाद कोर्ट में पेश किया गया था. इसके अनुसार औरंगजेब ने रामकोट नाम के एक किले पर जीत पाई और फिर इसे मिटा कर इसकी जगह तीन गुंबद वाला मुस्लिम इबादत स्थल बनवाया. लेकिन यहां मौजूद 14 काले रंग के पत्थरों से बने खंभों को नहीं तोड़ा गया और इनमें से 12 मस्जिद का हिस्सा बने.
ईस्ट इंडिया गजेटियर में भी अयोध्या का जिक्र
1828 में छपा पहला गजेटियर वॉल्टर हैमिल्टन का लिखा ईस्ट इंडिया गजेटियर था. इसके अनुसार अवध को हिंदू एक पवित्र स्थान मानते थे और यहां पूजा अर्चना करते थे. यहां राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान के मंदिर हैं. इसके बाद 1838 में छपा दूसरा गजेटियर मोन्टगोमरी मार्टिन ने लिखा था. इसमें अयोध्या के बारे में विस्तार से लिखा गया है. यह किताब भी कोर्ट में पेश की गई थी. 1856 में एडवार्ड थॉर्नटन की लिखी गजेटियर ऑफ इंडिया प्रकाशित हुई जिसमें अवध के बारे में विस्तार से लिखा है.
मुस्लिम किताबों में भी अयोध्या का उल्लेख
अदालत में पेश की गई किताबों में एक 1856 में छपी हदीत-ए-सेहबा भी है जो मिर्जा जान द्वारा लिखी गई है. इसमें राम जन्म की जगह के नजदीक सीता की रसोई का जिक्र है. इसके अनुसार 923 हिजरी (साल 1571) में बाबर ने सैय्यद मूसा आशीकन की निगरानी में यहां बड़ी मस्जिद बनवाई थी.
ब्रिटिश शासन के दौरान भी तनाव की रिपोर्ट
साक्ष्य के सेक्शन में अवध के थानेदार शीतल दूबे की 28 नवंबर 1858 की एक रिपोर्ट का जिक्र है, जिसके अनुसार 1858 में यहां साम्प्रदायिक तनाव हुआ था. उनकी रिपोर्ट में "मस्जिद" को "मस्जिद जन्म स्थान" कहा गया है. साल 1870 में सरकार ने फैजाबाद तहसील की एक ऐतिहासिक तस्वीर प्रकाशित की थी.
अयोध्या और फैजाबाद के ऑफिशिएटिंग कमीश्नर एंड सेटलमेंन्ट ऑफ़िसर पी कार्नेगी द्वारा बनाई गई इस रिपोर्ट में कहा गया है, अयोध्या का हिंदुओं के लिए वही महत्व है जो मुसलमानों के लिए मक्का और यहूदियों के लिए यरूशलम का. उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि 1528 में सम्राट बाबर ने जन्म स्थान की जगह पर मस्जिद बनवाई थी. उन्होंने जन्म स्थान कहे जाने वाली इस जगह पर अधिकार के लिए हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव का भी ज़िक्र किया है. उन्होंने कहा है कि दोनो संप्रदायों के लोग यहां पूजा करने आते थे.
इस रिपोर्ट में हमने उन हिंदू धर्म ग्रंथो को शामिल नहीं किया है जिन्हें प्रमाण के तौर पर कोर्ट में पेश किया गया था. इनमें कई पुराण, रामायण, रामचरितमानस और अन्य पौराणिक किताबों को पेश किया गया था.