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अयोध्या पर मुस्लिम पक्ष ने 5 और पुनर्विचार याचिका दाखिल की, हिंदू पक्ष भी दोबारा जाएगा कोर्ट

इससे पहले 2 दिसंबर को जमीयत उलेमा ए हिंद से जुड़े मौलाना असद रशीदी भी एक पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुके हैं. उस याचिका में भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई कमियों से भरा हुआ है.

नई दिल्ली: 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर 5 नई पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल हुई हैं. 4 याचिकाएं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थन से मिसबाहुद्दीन, मौलाना हसबुल्ला, हाजी महबूब और रिजवान अहमद ने दायर की हैं. जबकि एक याचिका पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अय्यूब ने दाखिल की है. इसके अलावा हिंदू पक्ष भी अयोध्या में मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन दिए जाने का विरोध करते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कह रहा है.

दोबारा विचार की मांग मुस्लिम पक्ष की तरफ से दाखिल नई पुनर्विचार याचिकाओं में कहा गया है :-

* 9 नवंबर को आया फैसला 1992 में मस्जिद ढहाए जाने को मंजूरी देने जैसा * 1949 में अवैध रूप से जिस मूर्ति को रखा गया उसी के पक्ष में फैसला सुनाया गया * अवैध हरकत करने वालों को ज़मीन दी गई * हिंदुओं का कभी वहां पूरा कब्ज़ा नहीं था * मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने का फैसला पूरा इंसाफ नहीं कहा जा सकता * सुप्रीम कोर्ट 9 नवंबर के फैसले पर रोक लगाए. मामले पर दोबारा विचार करे

जमीयत भी कर चुका है याचिका इससे पहले 2 दिसंबर को जमीयत उलेमा ए हिंद से जुड़े मौलाना असद रशीदी भी एक पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुके हैं. उस याचिका में भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई कमियों से भरा हुआ है. उस पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए. तब तक कोर्ट अपने फैसले के अमल पर रोक लगा दे.

राजीव धवन की नाराजगी दूर इस याचिका के दाखिल होने के बाद मामले में मुस्लिम पक्ष की तरफ से पैरवी करने वाले वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने एतराज जताया था. उनकी सहमति के बिना याचिका दाखिल होने पर उन्होंने कहा था, "मुझे मामले से अलग कर दिया गया है ." लेकिन नए याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट खुली अदालत में मामले पर दोबारा सुनवाई के लिए तैयार होता है तो राजीव धवन ही उनके लिए पैरवी करेंगे. धवन ने उन्हें इसकी मंजूरी दे दी है.

सुन्नी वक्फ बोर्ड को फैसला मंज़ूर गौरतलब है कि मामले का मुख्य मुस्लिम पक्षकार सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड फैसले को स्वीकार करने की बात कह चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ ज़मीन देने को कहा था. मामले के पक्षकार इकबाल अंसारी भी कह चुके हैं कि उन्हें कोर्ट का फैसला मंज़ूर है. वह इसे बदलने की मांग नहीं करेंगे.

हिंदू महासभा भी याचिका दायर करेगा

हिंदू पक्ष ने भी मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही है. हिंदू महासभा के वकील विष्णु जैन ने एबीपी न्यूज़ से कहा- "बाहरी और भीतरी हिस्से पर हिंदू दावा मज़बूत था. इसलिए जगह हमें मिली. मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन देने की ज़रूरत नहीं थी. फैसले में 1992 की घटना को लेकर जो टिप्पणी की गई है, हम उसे भी हटाने की मांग करेंगे."

गौरतलब है कि अयोध्या पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित इमारत गिराए जाने की घटना को अवैध और मुसलमानों पर ज़्यादती कहा था. रिव्यू पेटिशन दाखिल करने जी सीमा फैसले के 1 महीने तक की होती है. जैन ने कहा कि उनकी याचिका 9 दिसंबर तक दाखिल हो जाएगी.

पहले बंद कमरे में होगा विचार

पुनर्विचार याचिका के लिए तय नियम के मुताबिक उस पर वही जज विचार करते हैं जिन्होंने मामले की सुनवाई कर फैसला दिया था. बंद चैंबर में जज याचिका को देख कर तय करते हैं कि क्या उसमें कोई ऐसा बिंदु उठाया गया है जिस पर उन्होंने अपने मुख्य फैसले में जवाब नहीं दिया था? क्या कोई ऐसी बात है जिस पर दोबारा विचार किए जाने की जरूरत है? अगर जजों को ऐसा लगता है तो वह मामले में की खुली अदालत में सुनवाई का आदेश देते हैं. ऐसे में दूसरे पक्ष को भी नोटिस जारी कर कोर्ट में बुलाया जाता है. दोनों पक्षों के वकील जिरह करते हैं.

अगर जजों को ऐसा लगता है कि पुनर्विचार याचिका में कोई भी ऐसी बात नहीं कही गई है, जिसके चलते दोबारा सुनवाई जरूरी हो. तो वह पुनर्विचार याचिका को खारिज करने का आदेश दे देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली 5 जजों की बेंच के एक सदस्य चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अब रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में पांच जजों का कोरम पूरा करने के लिए उनके बदले किसी और जज को बेंच में शामिल किया जाएगा. पांचों जज बंद चैंबर में पुनर्विचार याचिका की फाइल को देखकर यह तय करेंगे कि उस पर सुनवाई की जरूरत है या नहीं.

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