अयोध्या ही नहीं धर्म से जुड़े इन मामलों की भी सुनवाई कर चुके हैं जस्टिस एस अब्दुल नजीर
जस्टिस एस अब्दुल नजीर अयोध्या मसले पर फैसला देने वाले पांच सदस्यीय पीठ में शामिल रहे हैं. जस्टिस नजीर पहले भी धर्म से जुड़ी कई याचिकाओं की सुनवाई कर चुके हैं.
नई दिल्ली: अयोध्या के विवादित और संवेदनशील जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया. इस पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नजीर भी थे जो धर्म से जुड़े मामलों में याचिकाकर्ताओं की पहली पसंद हैं. न्यायमूर्ति नजीर ‘तीन तलाक’ मामले में भी पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे लेकिन उन्होंने तत्कालीन भारत के प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर के साथ अल्पमत में फैसला दिया था.
उच्चतम न्यायालय ने 3:2 से फैसला सुनाते हुए मुस्लिमों में फौरी ‘तीन तलाक’ की 1,400 साल पुरानी प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक ठहराया था. हालांकि, अयोध्या मामले पर फैसले में न्यायमूर्ति नजीर मुस्लिम पक्षकारों की दलीलों से सहमत नहीं हुए और वह एकमत से दिए गए उस फैसले का हिस्सा बन गए कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि के कब्जे का अधिकार राम लला को दिया जाएगा. उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट से पदोन्नति देकर सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनाया गया था.
अयोध्या मामले में संविधान पीठ का हिस्सा बनने से पहले जस्टिस नजीर उस तीन सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे जिसने 2:1 बहुमत से अपने 1994 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए वृहद पीठ गठित करने से इनकार कर दिया था. 1994 के फैसले में कहा गया था कि ‘‘मस्जिद इस्लाम धर्म के पालन में अनिवार्य हिस्सा नहीं है.’’
तीन सदस्यीय पीठ के 27 सितंबर 2018 के फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुनवायी करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था जिसमें भारत के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले पर निर्णय करने के लिए पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया था.
सबसे पहले अयोध्या विवाद पर सुनवायी करने के लिए जो पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया गया था उसमें न्यायाधीश अशोक भूषण के साथ न्यायमूर्ति नजीर का नाम शामिल नहीं था लेकिन दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति यू यू ललित के इनकार के बाद वे इस मामले का हिस्सा बन गए.
इन मामलों के अलावा जस्टिस नजीर उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने अगस्त 2017 में ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया था.
1983 में वकील बने और कर्नाटक उच्च न्यायालय में वकालत करने वाले न्यायमूर्ति नजीर (61) को 12 मई 2003 में कर्नाटक उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया तथा उन्हें सितंबर 2004 में वहां स्थायी न्यायाधीश बनाया गया. उन्हें 17 फरवरी 2017 को उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया.
अयोध्या पर फैसला
आज सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से किए गए फैसले में 2.77 एकड़ की पूरी विवादित भूमि को रामलला को सौंपने का फैसला किया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित किया जाए.
जिस पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.