Baba Nagarjun Death anniversary: जब-जब बात जनकवि की होगी तब-तब दो लोगों का नाम सबसे पहले लिया जाएगा. पहला नाम कबीर का होगा और दूसरा बाबा नागार्जुन का होगा. आज मैथली और हिन्दी के सबसे बड़े जनकविओं में शुमार नागार्जुन की पुण्यतिथि है. वैद्यनाथ मिश्र उर्फ बाबा नागार्जुन ने आज ही के दिन 1998 में बिहार के दरभंगा में आखिरी सांस ली थी. बाबा नागार्जुन ने 1945 के आस-पास लिखना शुरू किया. वह मैथली भाषा में 'यात्री' नाम से और हिन्दी भाषा में नागार्जुन नाम से लिखा करते थे.
नागार्जुन के व्यक्तित्व को अगर उन्हीं की एक पंक्ति में समेटने की कोशिश करें तो कहेंगे कि 'जनकवि हूं साफ कहूंगा. क्यों हकलाऊं’. यकीनन सत्ता और कविता के संघर्ष का सबसे बड़ा उदाहरण नागार्जुन ही हैं. उन्होंने कई सत्ताधीशों को अपनी काव्य पंक्ति से ललकारा और फटकारा. ऐसे अनगिनत वाकये हैं जब बाबा ने राजनेताओं की आलोचना की.
ऐसा ही एक वाकया है आजादी के तुरंत बाद का. उस वक्त महारानी एलिजाबेथ भारत दौरे पर आई थी. इस दौरान बाबा नागार्जुन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर तंज कसा था. उन्होंने लिखा था, ''आओ रानी हम ढोएंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की,'' दरअसल जिस वक्त देश आजाद हुआ और एक नया ख्वाब देश को दिखाया जा रहा था, उस वक्त जवाहर लाल नेहरू की ख्याति काफी थी. जब कवियों की एक लंबी कतार सत्ता से प्रभावित थी तब बाबा नागार्जुन ने जनकवि की भूमिका निभाई और एक शोकगीत लिखा, ''रह जाते तुम 10 साल और, तन जाता भ्रम का जाल''. इसके बाद जब लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने तो बाबा ने उन्हें भी नसीहत दी और कहा,''लाल बहादुर, मत बनना तुम गाल बहादुर''. उनकी कलम से इंदिरा गांधी और राज ठाकरे तक नहीं बच पाए. उन्होंने इंदिरा गांधी की अपातकाल के दैरान जमकर आलोचना की. उन्होंने लिखा,'' क्या हुआ आपको? क्या हुआ आपको? सत्ता की मस्ती में भूल गई बाप को?''
इसके अलावा शाशन की बंदूक कविता में भी उन्होंने इंदिरा गांधी पर निशाना साधा और लिखा,''जली ठूंठ पर बैठ कर गई कोयलिया कूक, बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक''. उन्होंने बाल ठाकरे के खिलाफ लिखा, '' बाल ठाकरे ! बाल ठाकरे, कैसे फ़ासिस्टी प्रभुओं की, गला रहा है दाल ठाकरे ''
क्या वामपंथी थे बाबा
कहा जाता है कि कविताएं इशारों का नाम है और नागार्जुन भी कई बार बिना नाम लिए कविता लिखा तो कई बार नाम लेकर निशाना साधा. अक्सर उन्हें वामपंथी कहकर संबोधित किया जाता है. वह कई वामपंथी संगठन के साथ जुड़े थे लेकिन जब उन्होंने वामपंथ के अंदर ही गलत देखा तो उनकी कलम खामोश नहीं रही. 1962 के चीनी आक्रमण के समय जब भारत की कम्युनिस्ट पार्टी चुप थी, उस वक्त नागार्जुन चीनी आक्रमण के विरोध में लिखा- 'पुत्र हूं भारतमाता का, और कुछ नहीं.'
नागार्जुन ने न वामपंथ के कवि थे न दक्षिण पंथ के बल्कि उनके लिए तो मानव जाति सर्वोपरि थी, तभी उन्होंने लिखा था, ''चाहे दक्षिण चाहे वाम, जनता को रोटी से काम.'' इतना ही नहीं बाबा नागार्जुन लिखा, '' रोज़ी-रोटी, हक की बातें, जो भी मुहं पे लायेगा, कोई भी हो, निश्चित ही वो एक कम्युनिस्ट कहलायेगा.'' बाबा की बात से साफ है कि उन्हें सिर्फ रोजी-रोटी की बात कहने भर से मतलब था, लेकिन दुनिया उन्हें कम्युनिस्ट कहती थी.
बाबा नागार्जुन कितने बड़े कवि थे इस पर चर्चा करनी हो तो उनके कालखंड में लिखी उनकी कविता पढ़ लीजिए. नागार्जुन की कविताओं को उनके समय और जीवन की डायरी के रूप में भी देखा जा सकता है. उनके काल की शायद ही कोई महत्वपूर्ण राजनैतिक और सामाजिक घटना होगी जिसे उनकी कविता में स्थान न मिला हो.