कल्याण सिंह फिलहाल नहीं चलेगा केस
सुप्रीम कोर्ट ने लखनउ में आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और अज्ञात ‘कारसेवकों’ के खिलाफ दो अलग-अलग मामलों की संयुक्त सुनवाई का आदेश दिया है. राजस्थान के राज्यपाल होने के कारण कल्याण सिंह को संवैधानिक छूट प्राप्त है और उनके कार्यालय छोड़ने के बाद ही उनके खिलाफ मामला चलाया जा सकता है.
लखनऊ की अदालत को को आदेश, दैनिक आधार पर हो सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ की अदालत को इन मामलों पर स्थगन की मंजूरी दिए बिना दैनिक आधार पर सुनवाई करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि अभियोजन के कुछ गवाहओं को बयान दर्ज कराने के लिए निचली अदालत में पेश होना होगा.
चार सप्ताह में कार्यवाही शुरू लखनऊ कोर्ट- SC
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी आदेश दिया है कि बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के जजों को निर्णय दिए जाने तक स्थानांतरित नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर रही लखनऊ की अदालत को चार सप्ताह में कार्यवाही शुरू करने और यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि इस मामले की नए सिरे से कोई सुनवाई नहीं होगी.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई दो साल में पूरी करने का आदेश दिया है. बता दें कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद दो एफआईआर दर्ज हुई थी. एक एफआईआर लखनऊ में तो दूसरी एफआईआर फैज़ाबाद में दर्ज की गई थी.
यहां समझे पूरा अयोध्या मामला
यहां आपको बता दें कि अयोध्या मामले से जुड़े सुप्रीम कोर्ट में दो केस चल रहे हैं. पहला केस मंदिर है या मस्जिद. ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक कोई फैसला नहीं सुनाया है. वहीं, दूसरा केस ढांचा गिराने को लेकर है. आज ढांचा गिराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है.
इस फैसले का क्या असर होगा?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब कल्याण सिंह पर राज्यपाल के पद से इस्तीफे देने का नैतिक दबाव होगा, जबकि उमा भारती केंद्रीय मंत्री हैं, ऐसे में उनपर मंत्री पद छोड़ने का नैतिक दबाव होगा. इसके साथ ही लालकृष्ण आडवाणी जो राष्ट्रपति पद की रेस में थे. अब उनके लिए मुश्किल की घड़ी है.
यहां समझे पूरा मामला
पहली FIR
1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद दो एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर संख्या 197 लखनऊ में दर्ज हुई. ये मामला ढांचा गिराने के लिए अनाम कारसेवकों के खिलाफ था.
दूसरी FIR
दूसरी एफआईआर यानी एफआईआर नंबर 198 को फैज़ाबाद में दर्ज किया गया. बाद में इसे रायबरेली ट्रांसफर किया गया. इस एफआईआर में आठ बड़े नेताओं के ऊपर मंच से हिंसा भड़काने का आरोप था. ये बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा, गिरिराज किशोर, अशोक सिंहल, विष्णु हरि डालमिया, उमा भारती और विनय कटियार थे.
कैसे बचे थे नेता?
बाद में इन दोनों मामलों को लखनऊ की कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. सीबीआई ने जांच के दौरान साज़िश के सबूत पाए. उसने दोनों एफआईआर के लिए साझा चार्जशीट दाखिल की. इसमें बाल ठाकरे समेत 13 और नेताओं के नाम जोड़े गए. कुल 21 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश की धारा 120b के आरोप लगाए गए.
2001 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाया कि एफआईआर 198 को लखनऊ की स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर करने से पहले चीफ जस्टिस से इसकी इजाज़त नहीं ली गयी थी. ऐसा करना कानूनन ज़रूरी था. इस वजह से लखनऊ की कोर्ट को एफआईआर 198 पर सुनवाई का अधिकार नहीं था.
CBI ने हाईकोर्ट के फैसले को दी थी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
हाई कोर्ट ने इस निष्कर्ष के आधार पर दोनों मामलों को अलग चलाने का आदेश दिया. इस फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया. दोनों मामले अलग होने के चलते सीबीआई की साझा चार्जशीट बेमानी हो गयी. आठ नेताओं का मुकदमा रायबरेली वापस पहुंच गया. बाद में इसी को आधार बनाकर वो 13 नेता भी मुकदमे से बच गए जिनका नाम साझा चार्जशीट में शामिल था. इसका सबसे बड़ा असर ये हुआ कि किसी भी नेता के ऊपर आपराधिक साजिश की धारा बची ही नहीं.
13 नेताओं को मुकदमे से अलग करने का हाई कोर्ट का फैसला 2011 में आया. सीबीआई ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.