नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े आपराधिक मुकदमे में हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है. कोर्ट ने सीबीआई से पूछा कि क्या लखनऊ और रायबरेली के मुकदमों को एक ही कोर्ट में चलाया जा सकता है.


लखनऊ वाले मामले में बीजेपी और संघ परिवार के बड़े नेताओं के ऊपर से साज़िश की धारा हटाई जा चुकी है. इसी को सीबीआई ने चुनौती दी है. लखनऊ का मामला ढांचा गिराए जाने से जुड़ा है. रायबरेली का मामला भीड़ को उकसाने का है.


लखनऊ वाले मामले में साज़िश की धारा हटाने से अडवाणी, उमा भारती, कल्याण सिंह जैसे बड़े नेताओं को राहत मिली थी. इन लोगों की दलील है कि 2010 में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने 9 महीने की देरी से अपील की थी. देरी के आधार पर इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए.


मामले में शुरू में सीबीआई ने कुल 21 नेताओं
लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, बाल ठाकरे, उमा भारती, अशोक सिंघल, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया, गिरिराज किशोर, साध्वी ऋतंभरा, महंत अवैद्यनाथ, रामविलास वेदांती, महंत नृत्य गोपाल दास, परमहंस रामचंद्र दास, बी एल शर्मा 'प्रेम', सतीश प्रधान, सी आर बंसल, सतीश नागर, मोरेश्वर सावे,जगदीश मुनि महाराज, धरम दास पर


आईपीसी की धारा 120B (आपराधिक साज़िश), 153A (समाज में वैमनस्य फैलाना),  153B (राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डालना) और 505 (अशांति और उपद्रव फ़ैलाने की नीयत से झूठी अफवाहें फैलाना) के तहत चार्जशीट दाखिल की थी.


मई 2010 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने इन नेताओं के ऊपर आपराधिक साज़िश की धारा 120B हटा दी. सीबीआई को इस फैसले के खिलाफ कानूनन 90 दिनों में सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करनी चाहिए थी. लेकिन सीबीआई ने लगभग 10 महीने का वक़्त लगा दिया.


आखिरकार, मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अर्ज़ी पर सभी नेताओं को नोटिस जारी किया. अब इस मामले से जुड़े कई लोगों जैसे बाल ठाकरे, महंत अवैद्यनाथ, गिरिराज किशोर, परमहंस रामचंद्र दास आदि का अब निधन हो चुका है. उनका नाम कानूनन अब आरोपियों की लिस्ट से हटा दिया गया है.


इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट अब 22 मार्च को सुनवाई करेगा. लखनऊ के मामले में तो आपराधिक साजिश की धारा हट चुकी है. रायबरेली के मामले में सभी धाराएं बरकरार हैं.