नई दिल्ली: मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जमानत पाना अब आसान होगा. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में जमानत के लिए कड़ी शर्तों वाले प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया है. कोर्ट ने माना कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के सेक्शन 45 में रखी गई शर्तों के चलते आरोपियों के लिए ज़मानत पाना लगभग नामुमकिन है. ये कानून के उस मूल सिद्धांत के खिलाफ है, जिसमें ये माना जाता है कि जेल अपवाद है और बेल नियम है.


आरोपियों को दोबारा बेल पाने का मौका


कोर्ट ने कहा है कि इस तरह के मामलों में जिन लोगों को पहले बेल नहीं मिली है, अब वो दोबारा आवेदन कर सकेंगे. कोर्ट ने कहा- कई लोग ज़मानत न मिलने के चलते लंबे अरसे से जेल में बंद हैं. निचली अदालत इनकी ज़मानत अर्ज़ी पर नए सिरे से विचार करे.


सेक्शन 45 में क्या लिखा है 


सेक्शन 45 के मुताबिक ट्रायल जज आरोपी को तभी ज़मानत तभी दे सकता है जब उसके पास इस बात पर भरोसा करने का पर्याप्त आधार हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया होगा. साथ ही जज को इस बात का भरोसा होना चाहिए ज़मानत पाने के बाद वो दोबारा कोई अपराध नहीं करेगा.


सरकार की दलील खारिज


कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस प्रावधान को बचाए रखने की वकालत की थी. सरकार ने इसे काले धन से निपटने के लिए कारगर तरीका बताया था. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता बेहद अहम है. इसे ऐसे प्रावधानों के ज़रिए बाधित नहीं किया जा सकता.