नई दिल्ली: भारत एक उत्सवधर्मी देश माना जाता है. हर सीजन में यहां कोई न कोई पर्व या त्योहार मनाया जाता है. विविधता में एकता वाले इस देश में सभी धर्मों के त्योहारों और रीति-रिवाजों को खास तवज्जो दी जाती है. लेकिन इस साल की शुरुआत से ही दुनियाभर में कोरोना वायरस की खतरनाक मार पड़ी है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. लगातार कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की वजह से देशभर में लॉकडाउन है. इसी की वजह से त्योहारों की रंगत भी फीकी पड़ गई है. आज देश में बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इस बार कोई धूमधाम नहीं है. लॉकडाउन के चलते इस साल बैसाखी के सभी कार्यक्रम रद्द किए जा चुके हैं. कोरोना संकट की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए लोग इस बार त्योहार मना रहे हैं.
बैसाखी का पर्व हर साल अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है. इस त्योहार को मनाने के पीछे एक मान्यता ये है कि इस दौरान रबी की फसल कटने के लिए तैयारी हो जाती है.
खालसा पंथ और बैसाखी
साल 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी. मान्यता ये भी है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
पंजाब और हरियामा में बैसाखी का महत्व
वैसे तो पूरे उत्तर भारत में बैसाखी का त्योहार जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है, लेकिन इस त्योहार की रौनक पंजाब और हरियाणा में कुछ अलग ही होती है. इस दिन यहां के लोग ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते हैं और गुरुद्वारों को सजाया जाता है. यहां भजन-कीर्तन कराया जाता है. घरों में पकवान बनाए जाते हैं और समस्त परिवार के लोग एक साथ बैठकर खाना खाते हैं.
अलग-अलग राज्यों में बैसाखी के अलग नाम
बैसाखी कृषि से संबंधित त्योहार है और इसी के समान त्योहार देश के बाकी हिस्सों में भी मनाया जाता है, लेकिन उसके नाम अलग हैं. असम में इसे बिहू कहा जाता है जबकि पश्चिम बंगाल में इसे पोइला कहा जाता है. केरल में इस त्योहार को विशु कहा जाता है. बता दें कि बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं.
लॉकडाउन में ऐसे मनाएं बैसाखी
पूरे देश में लॉकडाउन है. ऐसे में इस पर्व पर सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन करते हुए घर के सदस्यों के साथ ही मनाएं. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य भगवान की पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें. इस दिन अन्न की पूजा करें और देश के अन्नदाताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और भगवान से देश के किसानों के लिए प्रार्थना करें.
यह भी पढ़ें-
Coronavirus: 1803 के बाद पहली बार जम्मू के पुंछ जिलें में नहीं मनाया जाएगा बैसाखी उत्सव