नई दिल्ली: ईद-उल-अजहा एक अगस्त को मनाई जाएगी. इस बात की जानकारी जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने दी. दरअसल आज मुस्लिम समुदाय के लोगों को बेसब्री से चांद का इंतजार था लेकिन आज चांद न दिखने की वजह से अब एक अगस्त को बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा.


बता दें कि ईद का दिन चांद निकलने के ऊपर निर्भर करता है. बकरीद को ईद-उल-अज़हा और ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है. मीठी ईद के बाद बकरीद इस्लाम धर्म का मुख्य त्योहार माना जाता है. इस त्योहार को मुख्य रूप से कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. आइए, जानते हैं इस त्योहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें…





क्यों मनाई जाती है बकरीद


दरअसल इस्लाम में कुर्बानी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस्लामिक मान्यताओं में इसको लेकर एक किस्सा है. दरअसल इस्लाम में हजरत इब्राहिम को अल्लाह का पैगंबर बताया जाता है. इब्राहिम ताउम्र दुनिया की भलाई के कार्यों में जुटे रहे. वह समाजसेवा करते रहे. हजरत इब्राहिम को 90 साल की उम्र तक कोई संतान नहीं हुई. इसके बाद उन्होंने संतान के लिए अल्लाह से दुआ मांगी. फलस्वरूप उनके घर उनके बेटे इस्माइल का जन्म हुआ.


इसके बाद अचानक हजरत इब्राहिम को एक सपना आया और उन्हें आदेश दिया गया कि अपने सबसे अजीज चीज की कुर्बानी दें. हजरत इब्राहिम पहले ऊंट की कुर्बानी दी. मगर उनको फिर सपना आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान कर दो. इस पर इब्राहिम ने अपने सभी जानवर कुर्बान कर दिए लेकिन उन्हें फिर वही सपना आया और सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने का आदेश हुआ.


अपने सभी प्यारे जानवर कुर्बान कर देने के बाद भी जब उन्हें आदेश हुआ कि आल्लाह की राह में अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करें तो उन्होंने अल्लाह पर भरोसा रखते हुए अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी से बेटे को नहलाकर तैयार करने के लिए कहा. उनकी पत्नी ने ऐसा ही किया और इसके बाद फिर इब्राहिम अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने के लिए चल दिए.


हजरत इब्राहिम की निष्ठा को देखते हुए अल्लाह खुश हुए और उनके बेटे की कुर्बानी को उन्होंने बकरे की कुर्बानी में बदल दिया. दरअसल, जब हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी दी तो उन्होंने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली. कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने आंखों से पट्टी खोली तो इस्माइल को खेलते हुए देखा और इस्माइल की जगह पर एक बकरे की कुर्बानी हो चुकी थी. इस्लामिक मान्यताओं में इसी घटना के बाद से बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है.