SC Status After Converts To Religion: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने कहा है कि धर्मांतरण करने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिलना चाहिए या नहीं, इस बात पर आयोग एक साल के अंदर अपनी रिपोर्ट दे सकता है. बालाकृष्णन उस जांच आयोग के अध्यक्ष हैं जो इस बात की जांच कर रहा है कि क्या सिख और बौद्ध धर्म के अलावा दूसरे धर्मों में जाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिलना चाहिए या नहीं.


जस्टिस बालाकृष्णन की मानें तो यह काम 2024 के चुनाव से पहले पूरा हो सकता है. आयोग को अपना काम पूरा करने के लिए दो साल का समय दिया गया है. हालांकि, जस्टिस बालकृष्णन ने कहा कि उन्हें अभी तक सभी सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई हैं.


'2024 से पहले आ जाएगी रिपोर्ट'


द हिंदू से बातचीत में उन्होंने कहा, "सभी सुविधाएं प्रदान नहीं की गई हैं. ऑफिस दिया गया है, अन्य चीजें नहीं हैं. अगर काम शुरू होता है, तो (रिपोर्ट में) केवल एक साल लगेगा, मुझे ऐसा लगता है. यह 2024 से पहले खत्म हो जाएगा." न्यायमूर्ति बालकृष्णन ने सुविधाएं प्रदान करने में सरकार की ओर से किसी भी तरह की देरी से इंकार किया. उन्होंने कहा, सरकार आगे बढ़ रही है.


सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई


पूर्व मुख्य न्यायाधीश का बयान सुप्रीम कोर्ट में इसी मुद्दे पर चल रही एक बहस में महत्वपूर्ण हो सकता है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि क्या सर्वोच्च अदालत को ईसाई धर्म में परिवर्तित होने दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने वाली याचिकाओं पर फैसला लेने से पहले जस्टिस बालकृष्णन आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए.


ये याचिकाएं 19 साल से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. सरकार ने शीर्ष अदालत से जस्टिस बालकृष्णन आयोग की रिपोर्ट आने तक इस पर रुकने को कहा है, लेकिन 12 अप्रैल को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल पूछा था.


सुनवाई कर रही पीठ से जस्टिस संजय किशन कौल ने सरकार से कहा था कि आपके पास आज एक आयोग है, कल दूसरा हो सकता है. विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को ला सकते हैं. 20 साल हो गए हैं. इतने साल में बहुत सारी सामग्री इकठ्ठा हो गई है. अब आप एक नया आयोग गठित कर दें तो वर्तमान आयोग भी उसी के साथ समाप्त हो जाएगा.


पीठे के दूसरे जज अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा था कि आइए इस मामले को सुनते हैं जो 19 साल से लंबित है. शरमाते क्यों हैं? हालांकि न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने सरकार के आकलन से सहमति जताई थी कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की 2007 की रिपोर्ट में त्रुटिया थीं.


क्या था रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में?


2007 में रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि हिंदू धर्म में जातिगत उत्पीड़न से बचने के लिए इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ लेने की अनुमति दी जानी चाहिए. सरकार ने तर्क दिया था कि रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट अदूरदर्शी थी और "एक कमरे की चार दीवारों" के भीतर बैठकर बनाया गया था.


याचिकाकर्ताओं के वकीलों सीयू सिंह और कॉलिन गोंसाल्विस, प्रशांत भूषण और फ्रैंकलिन सीज़र थॉमस ने अदालत से न्यायमूर्ति बालकृष्णन की रिपोर्ट का इंतज़ार नहीं करने का आग्रह किया था.


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