शेख हसीना के प्रत्यर्पण पर भारत का बड़ा बयान, चिन्मय दास मामले पर भी बांग्लादेश को दो टूक
विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की गिरफ्तारी को लेकर कहा, "बांग्लादेश में जिस प्रकार की कार्रवाई चल रही है, जिन्हें वहां गिरफ्तार किया गया है, उन्हें फेयर ट्रायल का मौका मिलना चाहिए."
विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश के मुद्दे पर कहा कि बांग्लादेश की तरफ से शेख हसीना के प्रत्यर्पण का नोट मिला है. विदेश मंत्रालय ने कहा, "हमें बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण का नोट मिला है. इस मामले को लेकर अभी हमारे पास इतनी जानकारी है."
विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की गिरफ्तारी को लेकर कहा, "बांग्लादेश में जिस प्रकार की कार्रवाई चल रही है, जिन्हें वहां गिरफ्तार किया गया है, उन्हें फेयर ट्रायल का मौका मिलना चाहिए."
चिन्मय दास को जमानत से इनकार
बांग्लादेश के चटगांव की एक अदालत ने गुरुवार (2 जनवरी 2025) को सम्मिलिता सनातनी जागरण जोत के प्रवक्ता और इस्कॉन के पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी को जमानत देने से इनकार कर दिया.
चटगांव कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया था कि यह देशद्रोह का मामला है जिसमें अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है और वे जमानत का विरोध कर रहे हैं क्योंकि मामले की जांच चल रही है. वहीं राज्य ने कोर्ट से जमानत न देने की प्रार्थना की है.
सुनवाई के दौरान चिन्मय कृष्ण दास के वकीलों ने कहा कि झंडे के अपमान को लेकर चिन्मय दास के खिलाफ दर्ज किया गया राजद्रोह का मामला निराधार है. चिन्मय दास की ओर से जिरह कर रहे 11 वकीलों की टीम के प्रमुख सुमन कुमार रॉय ने कहा, "सबसे पहली बात तो यह कि रैली के वीडियो में इस्कॉन के झंडे के नीचे जो झंडा फहराया गया है, वह असल में चांद-सितारों वाला झंडा है. यानी यह बांग्लादेश का झंडा नहीं है. इसके अलावा वादी की ओर से मामले में झंडे के अपमान की कोई धारा नहीं जोड़ी गई है और जिस झंडे को अपमानित करने का आरोप लगाया गया है वह जब्ती सूची में नहीं है."
शेख हसीना का प्रत्यर्पण का मामला?
पिछले महीने बांग्लादेश ने एक राजनचिक नोट में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की थी. बांग्लादेश विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में प्रत्यर्पण संधि हुई थी इसके मुताबिक वह भारत से शेख हसीना की मांग कर रहा है क्योंकि उनपर कई आपराधिक मामले चल रहे हैं. हालांकि प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के तहत अगर किसी शख्स को राजनीतिक वजह से प्रत्यर्पण करने के लिए कहा जाए तो दूसरा देश इसके लिए बाध्य नहीं होगा.
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