Liver Transplant: पिछले तीन सालों से लीवर सिरोसिस से जूझ रहे बांग्लादेश के 58 वर्षीय व्यवसायी को फरीदाबाद के अमृता अस्पताल में नया जीवन मिला. उन्हें उनकी पत्नी ने लीवर डोनेट किया है. 8 घंटे की लंबी सर्जरी में लिवर ग्राफ्ट को बाहर निकालने वाली पहली रोबोटिक लिविंग डोनर सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. इसके बाद 12 घंटे तक चली जटिल सर्जरी में मरीज में ग्राफ्ट ट्रांसप्लांट किया गया.
मरीज नॉन-अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (NASH) नाम की एक बीमारी से पीड़ित था, जिसमें एक्सेस फैट सेल्स के कारण लिवर में सूजन की शिकायत रहती है. इसकी वजह से लीवर सिरोसिस के साथ रोगी के पेट में फ्लूड बन जाता है. इसमें दर्द, गैस्ट्रिक, अपच और थकान जैसे लक्षण दिखते हैं.
10 सर्जनों की टीम ने किया रोबोटिक ट्रांसप्लांट
बता दें कि, बांग्लादेश से इलाज की तलाश में मरीज फरीदाबाद के अमृता अस्पताल पहुंचा था, जहां डॉक्टरों ने लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी. हेपेटोलॉजी और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के प्रमुख डॉ. भास्कर नंदी की देखरेख में मरीज का ट्रांसप्लांट किया गया. रोबोटिक ट्रांसप्लांट सर्जरी 10 सर्जनों की एक टीम थी, जिसका नेतृत्व सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांट और हेपेटोपैनक्रिएटोबिलरी (HPB) सर्जरी के प्रमुख डॉ. एस सुधींद्रन ने किया था.
डॉक्टर ने बताई रोबोटिक सर्जरी की खास बात
डॉ. सुधींद्रन ने बताया, "यह हमारे अस्पताल में आयोजित पहला लाइव डोनर ट्रांसप्लांट था. रोबोटिक सर्जरी के इस्तेमाल ने इस मील के पत्थर में एक अनूठा पहलू जोड़ा. लीवर ट्रांसप्लांट एक सही समय पर किया जाना चाहिए." उन्होंने रोबोटिक सर्जरी के लिए दा विंची शी रोबोट के इस्तेमाल पर जोर देते हुए इस सफल ट्रांसप्लांट के बारे में बताया. रोबोटिक तकनीक से घाव संबंधी समस्याएं जैसे दर्द, लंबे समय तक हर्निया की संभावना काफी कम होती है. यह उन लोगों के लिए वरदान है जो अपने शरीर पर ऑपरेशन का कोई निशान नहीं रहने देना चाहते हैं.
बांग्लादेशी दंपत्ति ने जताई खुशी
वहीं, मरीज की पत्नी ने अपना लीवर देने के लिए सक्षम होने को लेकर खुशी जताई और अस्पताल का भी आभार व्यक्त किया. वहीं, उनके पति ने कहा, "मुझे एक नई शुरुआत और नया जीवन देने के लिए मैं वास्तव में अपनी पत्नी का आभारी हूं. मैं अमृता अस्पताल के डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ का भी बहुत आभारी हूं, जिन्होंने मुझे यह जीवन दिया.
ये भी पढ़ें: