Bangladesh Violence News: बांग्लादेश इस वक्त सुलग रहा है. पड़ोसी मुल्क में कोई सरकार नहीं है और अव्यवस्थाओं ने 17 करोड़ की आबादी वाले देश को जकड़ा हुआ है. हिंसा और विरोध-प्रदर्शन की आग में बांग्लादेश वैसे तो कई महीने से जल रहा था, लेकिन मामला तब और भी ज्यादा बिगड़ गया, जब शेख हसीना देश छोड़कर चली गईं. उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया और छात्र विरोधी आंदोलनों को देखते हुए वतन छोड़कर भारत चली आईं. 


शेख हसीना फिलहाल भारत में ही हैं और अभी तक सरकार की तरफ से उनकी लोकेशन के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है. वह पांच अगस्त को गाजियाबाद के हिंडन एयरफोर्स स्टेशन पर विमान से अपने परिवार के साथ उतरीं और फिर उन्हें सेफ लोकेशन पर शिफ्ट कर दिया गया. हालांकि, ये पहली बार नहीं है, जब शेख हसीना को इस तरह भारत में आना पड़ा है. पांच दशक पहले भी वह ऐसे ही भारत आई थीं और उस वक्त पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें शरण दी थी.


भारत दौरे पर की थी गांधी परिवार से मुलाकात


आवामी लीग की नेता शेख हसीना इंदिरा के उस कर्ज को आज तक नहीं भूली हैं. तभी जब-जब वह भारत आई हैं, उन्होंने गांधी परिवार से मुलाकात जरूर की है. गांधी परिवार के साथ उनके रिश्ते काफी ज्यादा मधुर रहे हैं. वह जून में जब भारत के दौरे पर आई थीं तो उस वक्त भी उन्होंने गांधी परिवार के सदस्यों यानी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात की थी. सोनिया और प्रियंका को गले लगाकर हसीना ने दिखाया था कि उनका स्नेह अभी भी बरकरार है. 


क्या है गांधी परिवार और शेख हसीना का रिश्ता? 


दरअसल, 15 अगस्त, 1975 को बांग्लादेश के जनक और शेख हसीना के पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान और उनके परिवार की बेरहमी से हत्या कर दी गई है. सेना ने तख्तापलट किया और देश की कमान संभाल ली. इस हत्याकांड में शेख हसीना, उनके पति एम.ए. वाजेद मियां और बच्चे साजिब और साईमा बच गए. साथ ही उनकी बहन रेहाना की भी जान बच गई. इसकी वजह ये थी कि हत्याकांड के वक्त शेख हसीना अपने परिवार के साथ जर्मनी में थीं.


शेख हसीना ने पिता की हत्या के बाद इंदिरा गांधी के भारत में रहने के लिए शरण मांगी. उस वक्त देश में इमरजेंसी भी लागू थी. इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर्रहमान के रिश्ते काफी दोस्ताना थे, इसलिए पूर्व पीएम ने शरण की इजाजत दी. शेख हसीना अपने पति और बच्चों के साथ भारत आ गईं और यहां पर उन्होंने पांच साल बिताया. कहा जाता है कि शेख हसीना उस समय नाम बदलकर रहा करती थीं, ताकि उन्हें कोई पहचान नहीं पाए. 


हसीना के पति को इंदिरा गांधी के कहने पर नौकरी भी मिली हुई थी. 1981 में शेख हसीना परिवार के साथ बांग्लादेश लौटीं और फिर 1996 में देश की प्रधानमंत्री बनीं. इंदिरा गांधी के जरिए मिली मदद को शेख हसीना कभी नहीं भूली हैं. यही वजह है कि पांच दशक बाद भी जब-जब वह भारत आती हैं, तब-तब वह गांधी परिवार के लोगों के साथ मुलाकात करती हैं. 


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