BCI On Same-Sex Marriage: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते हुए रविवार (23 अप्रैल) को एक प्रस्ताव पारित किया है. बीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में समलैंगिक विवाह केस की सुनवाई किए जाने पर चिंता जताते हुए कहा कि इस तरह के संवेदनशील विषय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भविष्य की पीढ़ियों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. इसे विधायिका के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए.
वकीलों के संगठन ने प्रस्ताव में कहा कि भारत विभिन्न मान्यताओं को संजो कर रखने वाले विश्व के सर्वाधिक सामाजिक-धार्मिक विविधता वाले देशों में से एक है. इसलिए बैठक में आम सहमति से ये विचार प्रकट किया गया कि सामाजिक-धार्मिक और धार्मिक मान्यताओं पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला कोई भी विषय सिर्फ विधायी प्रक्रिया से होकर आना चाहिए.
"संतान के भविष्य को लेकर चिंतित"
इसमें कहा गया कि निश्चित तौर पर विधायिका की ओर से बनाए गए कानून सचमुच में लोकतांत्रिक हैं, क्योंकि वे विचार विमर्श की प्रक्रिया से होकर गुजरने के बाद बनाए जाते हैं और समाज के सभी वर्गों के विचारों को प्रदर्शित करते हैं. विधायिका लोगों के प्रति जवाबदेह है. इस विषय के सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के बारे में जानकर देश का हर जिम्मेदार व्यक्ति अपनी संतान के भविष्य को लेकर चिंतित है.
24 अप्रैल को फिर से बहस होगी शुरू
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने दावा किया कि देश के 99.9 प्रतशित लोग हमारे देश में समलैंगिक विवाह के विचार के खिलाफ हैं. इसने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया जाता है और देश के लोगों के एक बहुत बड़े हिस्से की भावनाओं का सम्मान करने की उम्मीद की जाती है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. मामले में बहस 24 अप्रैल को फिर से शुरू होगी.
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