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वकीलों की बेतुकी हड़ताल के खिलाफ नियम बनाएगा बार काउंसिल, होगा दंड का प्रावधान
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने आज सुप्रीम कोर्ट में इस बात की जानकारी दी है. बार काउंसिल के इस जवाब पर संतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 3 हफ्ते के लिए टाल दी है.
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने आज सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वो वकीलों की हड़ताल पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाएगा. इसके तहत बिना किसी उचित कारण के हड़ताल करने वाले बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी. दूसरे वकीलों को हड़ताल के लिए उकसाने या दबाव बनाने वालों पर भी कार्रवाई होगी. बार काउंसिल के इस जवाब पर संतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 3 हफ्ते के लिए टाल दी है.
दरअसल ये मामला उत्तराखंड से शुरू हुआ था. जहां हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ईश्वर शांडिल्य ने शिकायत की थी कि, राज्य के 3 जिलों, देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार के वकील जब इच्छा हो हड़ताल की घोषणा कर देते हैं.
क्या है पूरा मामला?
उत्तराखंड हाई कोर्ट में ईश्वर शांडिल्य ने याचिका दायर की थी कि 3 जिलों- देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार के वकील जब इच्छा हो हड़ताल की घोषणा कर देते हैं. शनिवार के दिन को तो खासतौर पर हड़ताल का दिन मान लिया गया है. पिछले 35 सालों से वकील अजीबोगरीब वजह बताकर हर शनिवार हड़ताल पर जाते रहे हैं. ये हड़ताल पाकिस्तान के स्कूल में बम विस्फोट, श्रीलंका के संविधान में संशोधन का विरोध, नेपाल में भूकंप आने जैसी बेतुकी वजहों से की जाती है.
साथ ही याचिका में बताया गया कि, कई बार तो किसी वकील के रिश्तेदार के निधन, कवि सम्मेलन का आयोजन, देश के किसी हिस्से में अधिक बारिश जैसी बातों को भी आधार बना कर हड़ताल की घोषणा कर दी जाती है.
हड़ताल के चलते टलती रहती है सुनवाई
याचिकाकर्ता ईश्वर शांडिल्य ने साथ ही हाई कोर्ट को ये भी बताया था कि हड़ताल वाले दिन अदालतें बैठती हैं, लेकिन वकील मौजूद न होने के चलते सुनवाई टाल दी जाती हैं. इससे दूरदराज से अपने मुकदमों की पैरवी के लिए पहुंचने वाले लोगों को भारी तकलीफ का सामना करना पड़ता है. अदालत का भी एक पूरा दिन बर्बाद होता है.
मामले पर सुनवाई के बाद उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 25 सितंबर 2019 को पूरे राज्य में वकीलों की हड़ताल को अवैध करार दिया था. साथ ही कहा था कि निचली अदालत के जज वकीलों के कार्य बहिष्कार के ऐलान के चलते मामले की सुनवाई न टालें. अगर वकील मौजूद नहीं है, तब भी अदालती कार्यवाही को आगे बढ़ाया जाए. ऐसा न करने वाले जजों पर भी कार्रवाई की जाएगी. साथ ही कोर्ट ने कहा था कि, पुलिस अदालतों को पूरी सुरक्षा दे ताकि कोई वकील हड़ताल के नाम पर अदालती कामकाज में बाधा न डाल सके. उत्तराखंड राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया हड़ताल करने वाले वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करें और इस आदेश का पालन न किए जाने को हाई कोर्ट की अवमानना माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने भी दिखाई सख्ती
उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन, देहरादून ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. 28 फरवरी 2020 को जस्टिस अरुण मिश्रा और एमआर शाह की बेंच ने इस अपील को खारिज कर दिया था. जजों ने कड़ा रवैया अपनाते हुए कहा था, “क्या आप मजाक कर रहे हैं? एक वकील के परिवार में किसी की मौत हो जाए तो सभी वकील उस दिन काम नहीं करेंगे? यह किस तरह की स्थिति बना दी गई है? इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हर कोई हड़ताल पर चला जा रहा है. पूरी व्यवस्था चरमरा गई है. अब हमें सख्त होना ही पड़ेगा.“
सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया और हर राज्य के बार काउंसिल से इस समस्या से निपटने के लिए सुझाव देने को कहा था. अब इसके जवाब में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कोर्ट को जानकारी दी है कि उन्होंने सभी स्टेट बार काउंसिल के साथ बैठक की है. इस बात पर सहमति बनी है कि वकीलों की गैरजरूरी हड़ताल को नियंत्रित किया जाए और जल्द ही इससे जुड़े नियम बना लिए जाएंगे. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की बेंच ने इस पर संतोष जताते हुए उन्हें इस दिशा में काम करने के लिए 3 हफ्ते का समय दे दिया.
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