श्रीनगर: कुपवाड़ा कै पंज़गाम में हुए एनकाउंटर के बाद बहादुर सैनिक ऋषि और दूसरे घायल सैनिकों को श्रीनगर के बेस हॉस्पिटल में लाया गया था. सही समय पर मिले बेहतर इलाज के बाद अब चारों जवानों की जिदंगी खतरे से बाहर हैं. जबकि दो जवानों की हालत अभी गंभीर बनी हुई है. सेना की मानें तो श्रीनगर का 92 बेस हॉस्पिटल कश्मीर में तैनात जवानों की लाइफ लाइन है.


1942 में बनाया गया यह अस्पताल कश्मीर का अकेला सुपरस्पेशिलेटी हॉस्पटिल है. इस हॉस्पिटल का ट्रामा सेंटर गंभीर से गंभीर चोटों को सही करने के लिए जाना जाता है. एलओसी पर पाकिस्तान के युद्धविराम उल्लंघन हो या फिर आतंकी हमलों में घायल जवान सभी को इलाज के लिए यहां लाया जाता है.


स्पेशल ट्रामा सेंटर और सर्जरी डिपार्टेमेंट से लैस है हॉस्पिटल


इस अस्पताल में लाए जाने वाले अधिकतर जवानों को शरीर में गोली लगी होती है या फिर जिन जवानों को स्पलिंटर इंजरी हो जाती है उन्हें इलाज के लिए इस हॉस्पिटल में लाया जाता है. अस्पताल में जवानों का सही से इलाज करने के लिए स्पेशल ट्रामा सेंटर और सर्जरी डिपार्टेमेंट बनाया गया है.


पंज़गाम एनकाउंटर में घायल हुए छह जवानों के भी शरीर के अलग अलग हिस्सों में गोली लगी हुई थी. लेकिन यहां के सर्जरी विभाग ने उनमें से चार घायल जवानों की हालत अब बेहतर है, जबकि दो जवानों को अभी भी वेंटिलेटर पर रखा गया है.


बादाम बाग कैंटोनेमेंट में स्थित होने के चलते यहां पर दूर दूराज में तैनात जवानों को हेलीकॉप्टर से तुरंत इस हॉस्पिटल में पहुंचाया जाता है. पूरी कश्मीर घाटी और लद्दाख सहित सियाचिन में तैनात जवानों को घायल होने की स्थिति में इसी हॉस्पिटल में ही पहुंचाया जाता है.


हॉस्पिटल में ब्लैड बैंक, एमआरआई सेंटर, सिटी स्कैन की सुविधाएं हैं उपलब्ध


अस्पताल में बेहतरीन डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ के अलावा अपना खुद का ब्लैड बैंक, एमआरआई सेंटर, सिटी स्कैन भी है. इमरजेंसी पेशंट आते ही पूरे अस्पताल में सायरन बज जाता है और डॉक्टर्स अलर्ट हो जाते हैं.


अस्पताल के कमांडेंट, ब्रिगेडयर एम एस तेवतिया के मुताबिक, बुलेट इंजरी या फिर दूसरे ट्रामा केस को लिए चोट लगने के बाद का एक घंटा काफी क्रयुशिल होता है. हाल के दिनों में ये भी देखने में आया है कि मुठभेड़ स्थल पर पत्थरबाजी की घटना के चलते घायल जवानों को यहां तक लाने में देरी होने के कारण सैनिकों को नहीं बचाया जा सका.


इस अस्पताल में 598 बेड है और युद्ध या फिर प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति में इसमें 100 अतिरिक्त बेड लगाए जाए सकते हैं.


सही वक्त पर इलाज के चलते बची जवान की जिंदगी


हाल ही में आतंकियों से हुई मुठभेड़ के बाद बुरी तरह घायल हुए सीआरपीएफ के कमांडे़ट चेतन चीता को भी नौ गोलियां लगने के बाद सबसे पहले यहीं लाया गया था. यहां पर यही समय से मिले इलाज को चलते ही आज चेतन चीता दुनिया के सामने हैं. हालांकि, शुरुआती इलाज के बाद चेतन चीता को दिल्ली के एम्स ट्रामा सेंटर भेज दिया गया था.


हॉस्पिटल में है साइकिएट्रिस्ट डिपार्टमेंट


अस्पताल में साइकिएट्रिस्ट विभाग भी है जहां डिपरेशन में आए जवानों का इलाज किया जाता है. डॉक्टर्स की मानें तो 14-15 हजार फीट की उंचाई और घने जंगलों में बॉर्डर आउट पोस्ट यानि बीओपी और बंकरों में रहने के चलते जवान डिपरेशन का शिकार हो जाते हैं. कई दिनों तक एक ही बंकर में रहना और घर की याद में जवान बीमार पड़ जाते हैं. उन्हें ठीक करना अस्पताल की जिम्मेदारी है ताकि एक बार फिर से उन्हें ड्यूटी पर भेजा जा सके और देश की सेवा और सुरक्षा कर सकें.