महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव कैंपेन के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से दिया गया एक नारा काफी सुनने को मिला और लोगों का ध्यान भी खिंचा. हालांकि, इस पर बीजेपी के सहयोगी दल की तरफ से जिस तरह की आपत्ति जताई गई, उसके बाद कैंपेन के आखिर दिन पीएम मोदी ने एक नया नारा दिया- 'एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे'. सवाल उठता है कि क्या ऐसे नारों से भारतीय जनता पार्टी को कितना फायदा मिला है?


'एक हैं तो सेफ हैं' वाले नारे पर राजनीतिक विश्लेषक प्रफुल्ल सारडा का कहना है कि दरअसल इसको पॉजिटिव तौर पर बीजेपी लोगों के बीच पहुंचाने में कामयाब रही.  बीजेपी ने कहा था कि अलग-अलग धर्मों, जातियों और समुदायों में नहीं बंटना है बल्कि हमें नए भारत के लिए वोट करना है.


इसके अलावा, जिस तरह से मदरसे से कुछ फतवे जारी किए गए थे, जिनमें ये कहा गया था कि आप महाविकास अघाड़ी को एकतरफा वोटिंग कीजिए, इसका भी बीजेपी को फायदा मिला है.




लोगों में उस फतवे का मैसेज अच्छा नहीं गया और उसका डैमेज महाविकास अघाड़ी को हुआ है. महायुति के पक्ष में एक बात ये भी गई कि जिस तरह से उसने मराठा आरक्षण को लोगों तक पहुंचाने का काम किया है, मराठाओं के गुस्से को नियंत्रित करने का काम किया है, यानी महायुति ने जो-जो काम किया, उसे वे लोगों के बीच पहुंचाने में सक्षम रहे.


सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण फैक्टर लडकी-बहिन योजना को जाता है, बार-बार बीजेपी हो या फिर शिवेसना हो या फिर अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी हो, उनकी तरफ से ये बार-बार कहा गया कि वहां कि महिला वोटर हमारे पक्ष में वोट करेंगे, क्योंकि उन्होंने उस लाडली-बहिन योजना के जरिए महिलाओं का सम्मान किया है और आगे भी करेंगे.


ये एक बहुत बड़ा मैसेज महायुति धरातल पर पहुंचाने में कामयाब रही. कहीं न कहीं इसका फायदा महिलाओं को दिवाली जैसे त्योहारों में भी हुआ है. इसका एक कलेक्टिव इंप्रेशन अगर हम देखें तो महायुति के लिए ये विन-विन सिचुएशन थी. पॉजिटिव सिचुएशन थी. इसी के परिणाम के तौर पर महायुति के इस तरह का चुनाव में फायदा देखने को मिला है. अब ये भी देखना पड़ेगा कि इनमें दोबारा मुखयमंत्री का चेहरा एकनाथ शिंदे होंगे या फिर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से किसी को किया जाएगा.


दरअसल, महाराष्ट्र में इस बार मुख्य मुकाबला ही महाविकास अघाड़ी और महायुति गठबंधन के बीच था. महाविकास अघाड़ी ने जोरदार टक्कर देने की कोशिश की. लेकिन उनके ही गढ़ में महाविकास अघाड़ी के नेताओं को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. ऐसे में जाहिर तौर पर एक बड़ा फैक्टर इसका बागी भी रहा.