पाकिस्तान के 3 हजार सैनिकों पर मौत बनकर टूटे थे ब्रगेडियर कुलदीप सिंह, पढ़ें- वीरता की कहानी
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदीपुरी भारत-पाक युद्ध के ऐसे नायक हैं जिन्होने अपनी सूझबूझ और अदम्य साहस से इतिहास लिखा. उनके इसी शौर्य पर आधारित थी फिल्म बॉर्डर. इस युद्ध के दौरान 120 भारतीय जवानों ने पाकिस्तान के तीन हजार सैनिकों को चांदीपुर में धूल चटा दी थी.
नई दिल्ली: साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट से कुछ दूर धूल का एक गुबार आसमान की तरफ बढ़ रहा था. चेक पोस्ट पर तैनात भारतीय सेना के जवानों ने समझ लिया कि पाकिस्तान की सेना ने हमला बोल दिया था. धूल का गुबार साफ हुआ तो टैंकों की गड़गड़ाहट को सुन भारतीय सेना के जवानों ने पोजीशन ले ली. इस लड़ाई में भारतीय जवानों ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. इस लड़ाई के हीरो थे ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदीपुरी. आइए जानते हैं- चांदीपुर और इस युद्ध से जुड़ी कुछ खास बातें-
लोंगेवाला चेक पोस्ट भारत की एक महत्वपूर्ण सुरक्षा चेकपोस्ट है. लेकिन जिस समस पाकिस्तान ने हमला बोला उस समय इस चेकपोस्ट पर भारतीय सेना के महज 120 ही जवान तैनात थे. इस चेकपोस्ट पर पंजाब रेजिमेंट के जवान थे जिसमें अधिकतर सिख जवान थे और कुछ डोगरा फौजी थे. इस पोस्ट की कमान मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के पास थी. 1971 के भारत- पाक युद्ध के दौरन पाकिस्तान ने चेकपोस्ट पर कब्जा कर देश के भीतर घुसने की योजना थी. इसके लिए पाकिस्तान पूरी तैयारी और रणनीति बनाकर आया था. इसीलिए उसने अपनी पूरी तोपखाना रेजिमेंट को इस चेकपोस्ट को तबाह कर कब्जा करने के लिए भेजा था.
लेकिन पाकिस्तान शायद इस बात को नहीं जानता था कि जंग हथियारों से नहीं हौंसलों से लड़ी जाती है. इस जंग में भी भारत के हौंसले की जीत हुई है. यह जीत भारतीय सेना के शौर्य की दास्तां बयां करती है. इस जंग पर बाद में जेपी दत्ता ने बॉर्डर नाम से एक फिल्म भी बनाई थी जिसमें चांदपुरी का रोल सन्नी देयोल ने निभाया था. कुलदीप सिंह चांदपुरी का जन्म 22 नवंबर 1940 को पाकिस्तान के मोंटागोमरी में हुआ था विभाजन के बाद चांदपुरी का परिवार भारत आ गया और पूरा परिवार बालाचौर के चांदपुर रूड़की में रहने लगा. कुलदीप ने 1962 में गवर्नमेंट कॉलेज होशियारपुर से पढ़ाई पूरी की और इसके बाद इसी साल वे भारतीय थल सेना में भर्ती हो गए. 1963 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी से पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन में उन्होने कमिशन प्राप्त किया. कमिशन हासिल करने के दो साल बाद ही 1965 के भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया.उन्होने पाकिस्तान के साथ दो लड़ाइयों में भाग लिया. दोनों में ही पाकिस्तान की हार हुई.
लेकिन 1971 की लड़ाई के वे हीरो बन गए. जब लोंगेवाला में पाकिस्तान ने 60 पेटन टेंकों से हमला बोला तो चेक पोस्ट पर तैनात सेना की टुकड़ी इसके लिए कतई तैयार नहीं थी. अचानक हुए हमले से भारतीय सेना के जवान घबराए नहीं इसके लिए मेजर कुलदीप सिंह चांदीपुर ने जवानों के हौंसले को कम नहीं होने दिया. युद्ध में जवानों का जोश बनाए रखना एक कमांडर के लिए बड़ी चुनौती होती है जिसे कुलदीप ने बड़ी कुशलता से स्वीकार करते हुए दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए. एक साक्षात्कार में कुलदीप सिंह चांदीपुर ने बताया था कि पाकिस्तान ने 60 टेंकों को लेकर 3000 सैनिक के साथ लोंगेवाला चेकपोस्ट पर हमला बोला था. आधीरात होते-होते पाकिस्तान की सेना ने चेकपोस्ट के आसपास घेरा डाल दिया था. स्थिति ऐसी नहीं थी कि कहीं से कोई मदद मिल सके क्योंकि सबसे नजदीक सेना की टुकड़ी 18 किमी दूर थी. मरने और मारने के सिवा यहां कोई दूसरा रास्ता नहीं था.
इसी पशोपेश के बीच हेडक्वार्टर से कंपनी को आदेश दिया गया कि लोंगेवाला बेहद महत्वपूर्ण चेकपोस्ट है और इसे किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं है. इसके बाद मेजर कुलदीप सिंह ने तय कर लिया कि अब चाहें कुछ भी हो जाए दुश्मन से लड़ना है. मेजर कुलदीप सिंह चांदीपुरी और सैनिकों ने इस मुश्किल घड़ी में धैर्य नहीं खोया और फैसला किया कि कुछ भी हो जाए. लड़ेंगे और इस पोस्ट पर ही शहीद होंगे. मौत सामने थी जवानों ने मोर्चा संभाल लिया. चांदपुरी ने किसी भी जवान का हौंसला नहीं टूटने दिया. उन्होंने अपने जवानों को आदेश दिया कि अगर वे चेकपोस्ट को छोड़कर भागते हैं तो पोस्ट पर तैनात सभी 120 सैनिक उन्हें गोली मार दें.
चांदीपुरी ने जवानों को प्रेरित किया और उन्हें गुरु गोबिंद सिंह और उनके बेटों के बलिदान को याद करने के लिए कहा. चांदपुरी ने कहा कि अगर डर कर भागते हैं तो पूरी सिख समाज पर कंलक होगा. इसके बाद युद्ध का माहौल ही बदल गया. 120 सैनिकों ने मिलकर जब पाकिस्तान की सेना को ललकारा तो पाकिस्तान का फौजी कमांडर डर गया. उसे लगा कि लोंगेवाला पोस्ट पर एक हजार से अधिक जवान हैं. इसके बाद जबरदस्त तरीके से जंग लड़ी गई और अंत में भारत की इसमें जीत हुई. इस जीत का सेहरा मेजर कुलदीप सिंह चांदीपुर के सिर बंधा. उनके अदम्य साहस को देखते हुए उन्हें महावीर चक्र और विशिष्ट सेवा मेडल प्रदान किया गया.
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