BBC Documentary Row: बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन) के दिल्ली और मुंबई स्थित ऑफिस पर मंगलवार (14 फरवरी) को आयकर विभाग की टीम सर्वे करने पहुंची. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बीबीसी ऑफिस में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अधिकारी कागजों को खंगाल रहे हैं. सर्वे की इस खबर ने देशभर में सियासी भूचाल ला दिया है.


कांग्रेस ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के इस सर्वे पर केंद्र सरकार को निशाने पर लिया है. कांग्रेस ने इस सर्वे को अघोषित आपातकाल बताया है. कांग्रेस की ओर से ट्वीट कर हुए कहा गया कि "पहले BBC की डॉक्यूमेंट्री आई, उसे बैन किया गया... अब BBC पर IT का छापा पड़ गया है. अघोषित आपातकाल." आइए जानते हैं बीबीसी डॉक्यूमेंट्री से लेकर पूरे विवाद क्या है...


कब रिलीज हुई बीबीसी डॉक्यूमेंट्री?


गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाने वाली बीबीसी डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' को दो हिस्सों में जारी किया गया था. इसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को और दूसरा एपिसोड 24 जनवरी को यूट्यूब पर रिलीज हुआ था. पहला एपिसोड आने के साथ ही इस पर बवाल शुरू हो गया था. विपक्ष के नेताओं और कुछ संगठनों ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के जरिये पीएम मोदी और बीजेपी पर निशाना साधना शुरू कर दिया था.


बीजेपी और विदेश मंत्रालय ने बताया था प्रोपेगेंडा


बीजेपी ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' को पीएम मोदी के खिलाफ प्रोपेगेंडा का हिस्सा बताया था. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने भी 20 फरवरी को कहा था कि हमारी राय में ये एक प्रोपेगेंडा पीस है. इसका मकसद एक तरह के नैरेटिव को पेश करना है जिसे लोग पहले ही खारिज कर चुके हैं. 


ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक ने भी जताया था ऐतराज


बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी ब्रिटिश संसद में में कहा था कि 'ब्रिटेन सरकार की इस मामले में लंबे समय से स्थिति साफ है. बेशक, हम कहीं भी उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करते हैं, लेकिन माननीय सज्जन को जिस तरह से दिखाया गया है, मैं उससे बिल्कुल सहमत नहीं हूं.'


केंद्र सरकार ने लगाया बैन


बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड रिलीज होने से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने 21 जनवरी को इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश के बाद यूट्यूब और ट्विटर से बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के लिंक हटा दिए गए थे. 


विदेशी मीडिया ने बताया स्वतंत्रता को खतरा


विदेशी मीडिया ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर गहराए विवाद को प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरा बताया था. न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर कई बड़े विदेशी मीडिया संस्थानों ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर लगे प्रतिबंध की आलोचना की थी.


जेएनयू से शुरू हुआ डॉक्यूमेंट्री पर बवाल


बीबीसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज होने पर केंद्र सरकार की ओर से बैन करने के बाद इस पर बवाल शुरू हुआ. मोदी सरकार की ओर से बैन लगाने के खिलाफ जेएनयू में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रखी गई. वामपंथी संगठनों की ओर से आरोप लगाया गया कि स्क्रीनिंग रोकने के लिए एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने पत्थरबाजी और मारपीट को अंजाम दिया. इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी तक कई जगहों पर इसकी स्क्रीनिंग करने की कोशिश की गई थी.


विपक्षी नेताओं ने बैन पर जताया गुस्सा


बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर बैन के खिलाफ कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने अपना गुस्सा जताया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि सच कभी नहीं छिपता है. सत्य सत्य होता है. ये बाहर आ ही जाता है. वहीं, टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने ट्विटर पर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का लिंक शेयर करते हुए लिखा कि हमें क्या देखना है, यह हम तय करेंगे.


सुप्रीम कोर्ट पहुंचा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री बैन का मामला


फैसले के खिलाफ प्रशांत भूषण, एन राम, महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर लगे बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में वकील मनोहर लाल शर्मा ने एक याचिका दायर की थी. उन्होंने याचिका में अनुरोध किया था कि सुप्रीम कोर्ट डॉक्यूमेंट्री के दोनों एपिसोड मंगाकर देखे और इस आधार पर 2002 के गुजरात दंगों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो. 


इस याचिका में कहा गया था कि देशभर में डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन की कोशिश कर रहे लोगों पर पुलिस के जरिये दबाव बनाया जा रहा है. याचिका में ये भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट को तय करना है, अनुच्छेद 19(1)(2) के तहत नागरिकों को 2002 के गुजरात दंगों पर समाचार, तथ्य और रिपोर्ट देखने का अधिकार है या नहीं.


बैन के बावजूद लोग देख रहे हैं बीबीसी डॉक्यूमेंट्री- सुप्रीम कोर्ट


याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर बैन लगाने के आदेश की फाइल देने का नोटिस जारी किया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए अप्रैल में अगली तारीख दी थी. सुप्रीम कोर्ट से तर्क दिया गया कि लोगों पर डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग करने पर कार्रवाई हो रही है. जिस पर कोर्ट ने कहा कि यह अलग मसला है. लोग तो फिर भी डॉक्यूमेंट्री देख ही रहे हैं.


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