केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से सोमवार (25 नवंबर, 2024) को कहा कि 1995 में हुई पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका से संबंधित मामला संवेदनशील है.
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई की अगुवाई वाली बेंच राजोआना की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें उसकी दया याचिका पर निर्णय में अत्यधिक देरी के कारण उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा, 'यह संवेदनशील मामला है. कुछ एजेंसियों से परामर्श करना होगा.' इस बेंच ने जस्टिस पी के मिश्रा और जस्टिस के वी विश्वनाथन भी शामिल हैं. मामले में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि सरकार इस मामले की समीक्षा कर रही है.
उन्होंने कहा कि चूंकि यह संवेदनशील मामला है इसलिए इसमें कुछ और जानकारी एकत्र करने की आवश्यकता है. बेंच ने कहा कि वह चार हफ्ते बाद याचिका पर सुनवाई करेगी. कोर्ट ने 18 नवंबर को याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसके तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सचिव को निर्देश दिया गया था कि वह राजोआना की दया याचिका को राष्ट्रपति के समक्ष रखें.
पीठ ने 18 नवंबर की सुबह यह आदेश दिया था लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से आग्रह किया था कि इस आदेश पर अमल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है. तुषार मेहता ने पीठ को बताया था कि फाइल अभी गृह मंत्रालय के पास है, राष्ट्रपति के पास नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर को राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र-शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब मांगा था. राजोआना को 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ में पंजाब सिविल सचिवालय के बाहर हुए विस्फोट मामले में दोषी पाया गया था. इस घटना में तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 16 अन्य लोग मारे गए थे.
जुलाई 2007 में एक विशेष अदालत ने राजोआना को मौत की सजा सुनाई थी. राजोआना ने अपनी याचिका में कहा है कि मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने उसकी ओर से क्षमादान का अनुरोध करते हुए संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत एक दया याचिका दायर की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल तीन मई को राजोआना को सुनाई गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि सक्षम प्राधिकारी उसकी दया याचिका पर विचार कर सकते हैं.
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