Beating Retreat का इतिहास: 300 साल से भी ज्यादा पुरानी परंपरा, जानें भारत में कब से हुई इसकी शुरुआत
Beating Retreat History: ‘बीटिंग द रिट्रीट’ सेरेमनी का इतिहास 300 साल से भी ज्यादा पुराना है. यह सेरेमनी देश की सेना की छावनी वापसी का प्रतीक है, यह सेरेमनी इसी परंपरा की यादें ताजा कराती है.
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Beating Retreat Ceremony: राजधानी दिल्ली के विजय चौक पर आज (29 जनवरी को) बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) का आयोजन हो रहा है. यह हर साल गणतंत्र दिवस (Republic Day of India) के तीन दिन बाद होता है, और एक बहुत पुरानी परंपरा है. इसकी शुरुआत 17वीं सदी में ब्रिटेन में हुई थी. जहां सबसे पहले इस तरह की सेरेमनी इंग्लैंड में कराई गई.
300 साल से भी ज्यादा पुरानी परंपरा है बीटिंग रिट्रीट
इस सेरेमनी में सैनिकों का एक रंगारंग संगीतमय कार्यक्रम होता है. इसके इतिहास के बारे में बताया जाता है कि ब्रिटेन के सैनिक 17वीं सदी में दिन भर युद्ध लड़ते थे और शाम को सूरज ढलने के बाद अपनी छावनी में लौटते थे. युद्ध की समाप्ति के बाद शाम को सेना प्रमुख जेन्स द्वितीय ने अपने सैनिकों को परेड करने का आदेश दिया था और बैंड पर धुनें भी बजवाई थीं. तभी से यह समारोह (बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी) मनाया जाने लगा. उसके बाद जहां-जहां भी ब्रिटिश शासन रहा, उन देशों में भी इस तरह का समारोह होने लगा. भारत में वाघा बॉर्डर पर भी बीटिंग रिट्रीट होती है.
भारत में कब से हो रही है बीटिंग रिट्रीट
भारत में होने वाली बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी गणतंत्र दिवस (Republic Day of India) के तीन दिन बाद होती है, जिसमें विजय चौक पर हर साल 29 जनवरी की शाम को यह आयोजन किया जाता है. बता दें कि इसकी शुरुआत भारत में 1950 के दशक में हुई थी. तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने सेनाओं के बैंड्स के डिस्प्ले के साथ इस सेरेमनी को पूरा किया था. ‘बीटिंग द रिट्रीट’ सेना की छावनी वापसी का प्रतीक है. यह समारोह उसी परंपरा की यादें ताजा करता है.
राष्ट्रपति को दिया जाता है नेशनल सैल्यूट
इस सेरेमनी में राष्ट्रपति चीफ गेस्ट होते हैं. उनके आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है. भारत में हो रहे इस साल (Beating Retreat 2023) के कार्यक्रम में विशेष ड्रोन प्रस्तुति को भी शामिल किया गया है. बताया जा रहा है कि इसमें 3 हजार से ज्यादा ड्रोन हिस्सा लेंगे. वहीं, बैंड की प्रस्तुति 29 धुनों में दी जाएगी.
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