पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में भले ही कुछ महीने बाकी है, लेकिन बीजेपी और राज्य की सत्ताधारी टीएमसी अभी से आमने-सामने आ चुकी है. एक तरफ जहां टीएमसी ने शुभेंदु को धोखा देने वाला बताया तो वहीं दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस में शुभेंदु अधिकारी के इस्तीफे के बाद कुछ और टूट हो सकती है.
तृणमूल कांग्रेस के बागी नेता शुभेंदु अधिकारी ने बुधवार को विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद वरिष्ठ सांसद सुनील मंडल और आसनसोल नगर निगम के प्रमुख जितेन्द्र तिवारी समेत पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के साथ मुलाकात की. अधिकारी पश्चिम बर्द्धमान जिले में कांकसा में मंडल के आवास पर उनसे मिलने गए.
शुभेंदु अधिकारी के बाद टीएमसी में और टूट के आसार
शुभेंदु अधिकारी के साथ टीएमसी के असंतुष्ट नेताओं की इस बैठक को काफी अहम माना जा रहा है. हालांकि, टीएमसी के नेतृत्व ने इस पूरे घटनाक्रम को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी और कहा कि पार्टी से जो जाना चाहते हैं वह जाने के लिए आजाद हैं. समचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि बर्द्धमान पूर्व लोकसभा क्षेत्र के दो बार के सांसद मंडल ने अधिकारी का स्वागत किया और उन्हें भीतर ले गए. वह सुबह में अधिकारी के समर्थन में सामने आए थे और शिकायतों को दूर नहीं करने के लिए पार्टी पर दोष मढ़ा था.
कुछ देर बाद तिवारी भी मंडल के आवास में जाते हुए नजर आए. तिवारी ने राजनीतिक कारणों से केंद्रीय कोष से आसनसोल को वंचित रखने के लिए राज्य सरकार की आलोचना की थी. तिवारी पांडवेश्वर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. उन्होंने बताया कि बीरभूम, बर्द्धमान के तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता भी बैठक में शामिल हुए हैं.
सौगत रॉय बोले- शुभेंदु ने दिया धोखा
इधर, टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने शुभेंदु अधिकारी पर बुधवार को सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा कि वह 5-6 जिलों पर नियंत्रण चाहते थे, जो संभव नहीं था. सौगत रॉय ने कहा- शुभेंदु ने कभी नहीं जाहिर किया लेकिन वह मुख्यमंत्री या उप-मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. मेरे पास जानकारी है कि वह बीजेपी ज्वाइन करेंगे. ऐसा लगता है कि परीक्षा के दिनों में कमजोर और लालची लोग पार्टी छोड़ रहे हैं.
ममता के बाद नेता बनने चाहते थे शुभेंदु अधिकारी
सौगत रॉय ने आगे कहा- हमने 1 और 2 दिसंबर को शुभेंदु अधिकारी से बात की लेकिन उन्होंने यह सूचना दी कि हम साथ नहीं रह सकते हैं. उस दिन हमने फैसला किया कि हम उनसे और ज्यादा बात नहीं करेंगे. हम उनकी आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते थे. वह ममता बनर्जी के बाद का नेता बनना चाहते थे और पार्टी इसके लिए तैयार नहीं थी.
ये भी पढ़ें: