कोरोना से पहले ही 'धार्मिक कट्टरता' और 'आक्रामक राष्ट्रवाद' की महामारी का शिकार हुआ देश: अंसारी
शशि थरूर की किताब विमोचन के दौरान चर्चा में भाग लेते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा, "1947 में हमारे पास मौका था कि हम पाकिस्तान के साथ चले जाते, लेकिन मेरे वालिद और अन्य लोगों ने यही सोचा था कि दो राष्ट्र का सिद्धांत हमारे लिए ठीक नहीं है."
नई दिल्ली: पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि आज देश ऐसी विचारधाराओं से खतरे में दिख रहा है जो उसको 'हम और वो' की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करता है. अंसारी ने यह भी कहा कि कोरोना वायरस संकट से पहले ही भारतीय समाज दो अन्य महामारियों- 'धार्मिक कट्टरता' और 'आक्रामक राष्ट्रवाद' का शिकार हो चुका, जबकि इन दोनों के मुकाबले देशप्रेम अधिक सकारात्मक अवधारणा है क्योंकि यह सैन्य और सांस्कृतिक रूप से रक्षात्मक है.
हामिद अंसारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की नई किताब ‘द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग’ के डिजिटल विमोचन के मौके पर बोल रहे थे. उनके मुताबिक, चार सालों की अल्प अवधि में भी भारत ने एक उदार राष्ट्रवाद के बुनियादी नजरिए से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक ऐसी नई राजनीतिक परिकल्पना तक का सफर तय कर लिया जो सार्वजनिक क्षेत्र में मजबूती से घर कर गई है.
पूर्व उप राष्ट्रपति ने कहा, "कोविड एक बहुत ही बुरी महामारी है, लेकिन इससे पहले ही हमारा समाज दो महामारियों- धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद का शिकार हो गया था. धार्मिक कट्टरता और उग्र राष्ट्रवाद के मुकाबले देशप्रेम ज्यादा सकारात्मक अवधारणा है."
फारूक अब्दुल्ला भी कार्यक्रम में थे मौजूद किताब विमोचन के दौरान चर्चा में भाग लेते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा, "1947 में हमारे पास मौका था कि हम पाकिस्तान के साथ चले जाते, लेकिन मेरे वालिद और अन्य लोगों ने यही सोचा था कि दो राष्ट्र का सिद्धांत हमारे लिए ठीक नहीं है." उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार देश को जिस तरह से देखना चाहती है उसे वह कभी स्वीकार नहीं करने वाले हैं.
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