अवमानना मामले में वकील प्रशांत भूषण की सज़ा तय करने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कोर्ट में दिए बयान पर दोबारा विचार का मौका दिया है. कोर्ट ने कहा है "हम अवमानना के दोषी को बिना शर्त माफी मांगने के लिए समय दे रहे हैं. वह चाहे तो 24 अगस्त तक ऐसा कर सकता है. अगर माफीनामा जमा होता है, तो उस पर 25 अगस्त को विचार किया जाएगा"
क्या है मामला
27 जून को किए गए एक ट्वीट में प्रशांत भूषण ने 4 पूर्व चीफ जस्टिस को लोकतंत्र के हत्या में हिस्सेदार बताया था. 29 जून को उन्होंने बाइक पर बैठे वर्तमान चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की तस्वीर पर ट्वीट किया था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे आम लोगों के लिए बंद कर दिए हैं. खुद बीजेपी नेता की 50 लाख की बाइक की सवारी कर रहे हैं. बाद में इस ट्वीट पर कोर्ट में सफाई देते हुए प्रशांत भूषण ने माना था कि तथ्यों की पूरी तरह से पुष्टि किए बिना उन्होंने तस्वीर पर टिप्पणी की. लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उनकी भावना सही थी. वह आम लोगों को न्याय दिलाने को लेकर चिंतित हैं. 4 पूर्व चीफ जस्टिस पर किए गए ट्वीट के बारे में उन्होंने सफाई दी थी कि पिछले कुछ सालों में सुप्रीम कोर्ट कई मौकों पर वैसी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा है, जिसकी उम्मीद की जाती है. कोर्ट ने प्रशांत भूषण के स्पष्टीकरण को नामंजूर करते हुए 14 अगस्त को उन्हें अवमानना का दोषी करार दिया था. आज इसी की सजा तय करने के लिए बहस हुई.
सुनवाई टालने से कोर्ट का इनकार
सबसे पहले प्रशांत भूषण की तरफ से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने सुनवाई टालने की मांग की. कहा कि भूषण खुद को दोषी ठहराने के फैसले पर पुनर्विचार के लिए याचिका दाखिल करना चाहते हैं. लेकिन जस्टिस अरुण मिश्रा, बी आर गवई और कृष्ण मुरारी की बेंच ने इससे मना कर दिया. कोर्ट ने कहा- हम जो भी सज़ा तय करेंगे, उस पर अमल पुनर्विचार याचिका पर फैसले तक स्थगित रखा जा सकता है. लेकिन इस मांग को नहीं माना जा सकता कि अभी सज़ा पर बात ही न हो.
भूषण ने माफी मांगने से मना किया
कोर्ट की तरफ से सुनवाई टालने की अर्जी नामंजूर हो जाने के बाद सजा पर बहस शुरू हुई. सबसे पहले खुद प्रशांत भूषण ने अपनी बात रखी. उन्होंने एक लिखित बयान पढ़ते हुए कहा,“मैं इस बात से दुखी हूं कि मेरी बात को नहीं समझा गया. मुझे मेरे बारे में की गई शिकायत की कॉपी भी उपलब्ध नहीं करवाई गई. मैं सज़ा पाने को लेकर चिंतित नहीं हूँ. मैंने संवैधानिक ज़िम्मेदारियों के प्रति आगाह करने वाला ट्वीट कर नागरिक के रूप में अपना कर्तव्य निभाया है.“ भूषण ने माफी मांगने से इनकार करते हुए महात्मा गांधी के एक बयान का हवाला दिया. उन्होंने कहा, “राष्ट्रपिता ने एक बार कहा था, मैं रहम की गुहार नहीं करूंगा. कानूनी तौर पर मुझे जो सजा दी जा सकती है, वह मुझे मंजूर होगी.“
‘भूषण ने जनहित के केस लड़े’
इसके बाद प्रशांत भूषण की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दलीलें शुरू कीं. उन्होंने कहा कि सज़ा पर फैसला लेते समय कोर्ट इस बात पर विचार करना चाहिए कि जो बातें भूषण ने कहीं वो काफी समय से लोगों के बीच चर्चा में है. भूषण ने बतौर वकील हमेशा न्यायपालिका और आम लोगों के हित में काम किया है. इस पर जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “भूषण इसी व्यवस्था का हिस्सा हैं. उन्होंने जनहित के केस किए हैं. हम उसकी सराहना करते हैं. लेकिन हर बात में संतुलन ज़रूरी है. लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए.“
धवन ने दलील को आगे बढ़ते हुए कहा पूर्व चीफ जस्टिस आर एम लोढ़ा समेत कई पूर्व जजों ने प्रशांत का समर्थन किया है. यह भी कहा है कि मामले में कोर्ट की तरफ से अपनाई गई प्रक्रिया सही नहीं है. क्या उन्होंने भी अवमानना की है? बेंच के सदस्य जस्टिस बी आर गवई ने कहा,“जस्टिस लोढ़ा ने प्रक्रिया को लेकर टिप्पणी की है. हम उस पर कुछ नहीं कहना चाहते. इस मामले में भूषण को अवमानना का दोषी करार दिया जा चुका है. आप सज़ा पर अपना पक्ष रखें.“
एटॉर्नी जनरल ने सज़ा न देने का आग्रह किया
धवन के बाद एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अपनी बातें रखीं. कोर्ट ने उन्हें भी पक्ष रखने के लिए कहा था. उन्होंने सरकार के सबसे बड़े वकील के तौर पर नहीं, बल्कि देश के महान्यायवादी की हैसियत से अपना पक्ष रल्हन था. वेणुगोपाल ने भी कोर्ट से भूषण को सजा न देने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “भूषण ने जनहित में कई मुकदमे किए हैं. भले ही उन्हें अवमानना का दोषी करार दिया गया हो, लेकिन मेरा निवेदन है कि उन्हें सजा न दी जाएं.“ इस पर जजों ने कहा, “आप उनका बयान देखें और बताएं कि उन्होंने अपना बचाव किया है या अवमानना को और बढ़ाया है.“
जजों ने भूषण को समय देने की बात कही
इसके बाद बेंच के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “यह सही है कि भूषण ने अतीत में जो केस किए हैं. वह बहुत प्रभावशाली हैं. क्या हमें उन्हें 2-3 दिन विचार का मौका देना चाहिए ताकि वह कोर्ट में दिए अपने बयान पर दोबारा विचार कर सकें?” एटॉर्नी जनरल ने कहा कि ऐसा करना सही होगा. लेकिन प्रशांत भूषण ने अपने बयान पर दोबारा विचार करने से मना कर दिया. भूषण ने कहा, “कोर्ट मुझे समय देना चाहता है, लेकिन मेरा अपने बयान पर फिर से विचार करने का इरादा नहीं है.“
इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा, “हम फिर भी 2-3 दिन का समय देंगे, ताकि कल को यह कोई यह शिकायत न करे कि समय नहीं दिया गया.“ इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि वह अपने वकीलों से चर्चा करके बयान पर दोबारा विचार करेंगे. जज ने कहा, “आप खुद भी कानून की समझ रखते हैं. सही या गलत तय करने में सक्षम है.“
‘पहले भी ऐसे बयान दिए गए हैं’
एटॉर्नी जनरल ने एक बार फिर प्रशांत भूषण को सज़ा न देने की दरख्वास्त की. उन्होंने कहा कि पहले भी इस तरह के बयान कई लोगों ने दिए हैं. पद पर रहते हुए सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों ने न्यायपालिका में आंतरिक लोकतंत्र न होने की बात कही, 9 पूर्व जजों ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है. मैंने खुद 1987 में इसी विषय पर भाषण दिया था. इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा,“अभी हम केस के तथ्यों पर बहस नहीं कर रहे हैं. फैसला दिया जा चुका है. इन दलीलों का कोई अर्थ नहीं है.“
सज़ा पर सुनवाई टली
करीब डेढ़ घंटे तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने भूषण को अपने वक्तव्य पर दोबारा विचार के लिए 24 अगस्त तक का समय दे दिया. कोर्ट ने लिखित आदेश में दर्ज किया है कि यह समय बिना शर्त माफी मांगने के लिए दिया जा रहा है. मामले में 25 अगस्त को अगली सुनवाई होगी.