नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को नामांकित सदस्य के तौर पर राज्य सभा का सदस्य बनाने का एलान हुआ है. फैसले का एलान होते ही कांग्रेस पार्टी के अलावा असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं की ओर से मोदी सरकार पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया गया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंजन गोगोई से पहले भी भारत के एक और मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य न्यायाधीश राज्य सभा की शोभा बढा चुके हैं. अंतर सिर्फ़ इतना है कि गोगोई जहां नामित सदस्य के तौर पर राज्यसभा के सदस्य बने हैं वहीं पहले वाले दोनों जज कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे थे.


रंगनाथ मिश्रा बने थे राज्य सभा सदस्य


जस्टिस रंगनाथ मिश्रा सितम्बर 1990 से नवम्बर 1991 तक भारत के 21वें मुख्य न्यायाधीश बनाए गए थे. मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर होने के क़रीब सात सालों बाद वो राज्यसभा सांसद बने थे. 1998 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मिश्रा अपने गृह प्रदेश उड़ीसा से राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए थे. रंगनाथ मिश्रा 2004 तक राज्य सभा के सदस्य थे. मिश्रा को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का पहला चैयरमैन बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था. 1990 में मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले रंगनाथ मिश्रा को 1984 के सिख विरोधी दंगे की जांच के लिए एक सदस्यीय आयोग का चेयरमैन भी बनाया गया था.


बहरुल इस्लाम भी बने राज्य सभा सदस्य


जस्टिस बहरुल इस्लाम सुप्रीम कोर्ट के एक और जज थे जिन्होंने राज्यसभा की शोभा बढ़ाई थी. बहरुल इस्लाम की कहानी बड़ी रोचक थी. वे जब सुप्रीम कोर्ट में वक़ालत करते थे तब उन्हें 1962 में पहली बार असम से कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा भेजा. उसके बाद दूसरी बार 1968 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया लेकिन इसके पहले की वो 6 साल का अपना कार्यकाल पूरा कर पाते , उन्हें तब के आसाम और नागालैंड हाईकोर्ट ( आज के गुवाहाटी हाईकोर्ट ) का जज बनाया गया. जज बनते ही उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफ़ा दे दिया. 1983 में सुप्रीम कोर्ट के जज से रिटायर होने के तुरंत बाद उन्हें तीसरी बार कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया.