कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का आज 37वां दिन है. फिलहाल राहुल गांधी कर्नाटक में मौजूद हैं. उन्होंने इस राज्य में अपनी पदयात्रा की शुरुआत चित्रदुर्ग के चल्लकेरे टाउन से की. राहुल गांधी अब 15 अक्टूबर को कर्नाटक के बेल्लारी में एक बड़ी रैली करने जा रहे हैं. इस रैली में राहुल गांधी के अलावा कई प्रदेशों के अध्यक्ष और विधायक दल के नेता भी भाग लेंगे.
बेल्लारी में होने वाली ये रैली पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, वह इसलिए भी क्योंकि यह इलाका कांग्रेस का गढ़ रहा है. कांग्रेस और बेल्लारी का रिश्ता जितना पुराना है उतना ही दिलचस्प भी है. दरअसल साल 1999 में राहुल गांधी की मां और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपना पहला चुनाव इसी लोकसभा सीट से लड़ा था.
खनिज संपदा से भरपूर बेल्लारी कर्नाटक के 28 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. इस क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. यही वह लोकसभा सीट है जहां साल 1999 में सोनिया गांधी और सुषमा स्वराज आमने सामने आई थीं और सुषमा स्वराज ने सोनिया को हराने के लिए 1 महीने के अंदर कन्नड़ सीख सबका दिल जीत लिया था.
दरअसल बीजेपी की दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने जीवन में चार राज्यों में 11 चुनाव लड़े. लेकिन कर्नाटक के बेल्लारी लोकसभा सीट का चुनाव काफी चर्चित रहा था. हालांकि इस चुनाव में जीत सोनिया गांधी की हुई थी.
सोनिया गांधी को हराने के लिए सीखी थी कन्नड
इस चुनाव का ये किस्सी बेहद मशहूर है कि साल 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान सोनिया गांधी के खिलाफ बीजेपी ने सुषमा स्वराज को चुनाव मैदान में उतारा था. उस वक्त सुषमा स्वराज ने उस चुनाव को जीतने के लिए एड़ी से चोटी तक का दम लगा दिया था.
उन्होंने वहां के स्थानीय लोगों से बातचीत करने और उनकी परेशानी सुनने के लिए कन्नड़ सीखनी शुरू कर दी थी. हैरानी की बात ये है कि वह एक महीने के अंदर कन्नड़ सीखने में सफल भी रहीं.
इसके बाद क्या था मैदान में उतरी सुषमा स्वराज ने चुनावी रैलियों में कन्नड़ में धाराप्रवाह भाषण देना शुरू कर दिया. उन्हें हिंदी भाषी नेताओं की तरह अब कर्नाटक में ट्रांसलेटर की जरूरत नहीं पड़ती थी.
सुषमा की रैली में एक बार अटल बिहारी वाजपेयी पहुंचे और वहां उन्होंने देखा की सुषमा स्वराज कन्नड़ भाषा में जबरदस्त भाषण दे रही हैं. अटल बिहारी वाजपेयी को उस वक्त काफी हैरानी भी हुई और उन्होंने रैली में उनकी तारीफ भी की थी.
कन्नड़ में भाषण देने के चलते सुषमा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान न केवल बेल्लारी बल्कि कर्नाटक की जनता का दिल जीता. हालांकि उस क्षेत्र में कांग्रेस की पैठ इतनी मजबूत थी कि सुषमा स्वराज को 56 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन इस हार में भी सुषमा की जीत देखी गई. क्योंकि सोनिया गांधी उस समय प्रधानमंत्री पद की दावेदार थीं.
आम तौर पर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की जीत का अंतर 1 लाख से ज्यादा ही होता है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सुषमा ने कहा भी था कि अगर हार-जीत का अंतर 50 हजार वोटों के आसपास का रहता है तो जीत मेरी ही मानी जाएगी.
वहीं बीजेपी की सुषमा स्वराज को हराने के बाद सोनिया गांधी ने बेल्लारी लोकसभा सीट को छोड़ दिया और अमेठी को चुना. बेल्लारी के चुनाव में 29 साल के राहुल और 27 साल की प्रियंका गांधी ने एक हफ्ते तक अपनी मां के साथ प्रचार किया था.
7 साल के बाद सत्ता की वापसी
इसी बेल्लारी ने साल 2013 विधानसभा चुनाव में सात साल बाद कांग्रेस को सत्ता वापस दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. साल 2010 में विपक्षी नेता सिद्धारमैया ने खनन माफिया रेड्डी भाईयों के विरोध में बेंगलुरु से बेल्लारी तक 350 किलोमीटर की पदयात्रा निकाली थी.
उन्होंने ऐसा कदम बीजेपी सरकार के खिलाफ उठाया था. बेल्लारी की इस पद यात्रा से जनता का मन कांग्रेस के पक्ष में बदल गया और बीजेपी को सिद्धारमैया के हाथों अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था.
बेल्लारी का इतिहास
बेल्लारी दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है. वर्तमान में यह कर्नाटक का एक बड़ा जिला है, जो कभी विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था. कर्नाटक से पहले बेल्लारी मद्रास प्रेसीडेंसी और आंध्र प्रदेश के अंतर्गत था. देश के आजाद होने के बाद यानी साल 1956 में यह कर्नाटक को सौंपा गया.
कहते हैं कि बेल्लारी एक वक्त में काली कमाई का गढ़ माना जाता था. इस जिले में देश का करीब 25 प्रतिशत लौह अयस्क भंडार है. यहां का लौह अयस्क अच्छी क्वालिटी का माना जाता है. इसमें 60 से 65 प्रतिशत तक लोहा होता है. एक अनुमान के मुताबिक बेल्लारी में करीब 99 लौह अयस्क माइन्स हैं.
साल 1994 तक इस जिले में कुछ सरकारी कंपनियां ही थीं. लेकिन लौह अयस्क का भंडार होने के कारण धीरे धीरे सरकार ने प्राइवेट ऑपरेटर्स को माइनिंग का लाइसेंस दे दिया. वहीं दूसरी पड़ोसी देश चीन ने लौह अयस्क की मांग बढ़ा दी.
जिसके कारण साल 2000 से 2008 के बीच वर्ल्ड मार्केट में लौह अयस्क की कीमत करीब तीन गुना बढ़ गई. दुनिया के तमाम लौह अयस्क के बड़े एक्सपोटर्स में भारत भी शामिल हो गया. सरकार ने लौह अयस्क खनन में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की परमिशन दे दी.
वहीं दूसरी तरफ विदेशी निवेश के अचानक बढ़ जाने के कारण बेल्लारी में प्राइवेट कंपनियों को होड़ लग गई. इन कंपनियों को लाइसेसं राजनीति और उनकी ऊंची पहुंच के हिसाब से दी जाने लगा.
इसने कर्नाटक की राजनीति को भी प्रभावित किया. दरअसल अब लाइसेंस और खनन को लेकर प्राइवेट कंपनियों और नेताओं की बीच बड़ी से बड़ी डील होने लगी. मीडिया में बेल्लारी को नया गणतंत्र कहा जाने लगा.
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