ममता के गढ़ पश्चिम बंगाल में बढ़ रही बीजेपी की अंतर्कलह, आखिर पार्टी में अंदरूनी झगड़ा क्या है?
बंगाल विधानसभा की चार सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी तीन पर हार गई. चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन को लेकर हुई बैठक में बंगाल के वरिष्ठ नेता सौमित्र खान ने प्रदेश नेतृत्व के बदलाव की मांग उठाई.
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अंतर्कलह बढ़ती जा रही है. लोकसभा चुनाव में कम सीटें और उपचुनाव में चार विधानसभा सीटों पर हार के अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के चलते पार्टी में हालात कुछ ठीक नजर नहीं आ रहे. साथ ही कोई बंगाल के कुछ जिलों को दूसरे राज्यों के साथ मिलाकर केंद्र शासित राज्य बनाने की मांग कर रहा है और कोई बंगाल के बंटवारे के खिलाफ है. इन सभी मुद्दों को लेकर पार्टी के नेता अलग-अलग खड़े दिख रहे हैं. इस अंतर्कलह में सबसे ज्यादा चर्चा में तीन लोग हैं- शुभेंदु अधिकारी, बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और पूर्व अध्यक्ष दिलीप घोष.
25 जुलाई को गोड्डा से बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में बंगाल के मुर्शिदाबाद और मालदा को बिहार-झारखंड के कुछ जिलों के साथ मिलाकर एक केंद्रशासित राज्य बनाने की मांग उठाई. उनसे पहले सुकांत मजूमदार ने उत्तर बंगाल को पूर्वोत्तर राज्यों के परिषद के साथ मिलाने की बात कही थी, जबकि विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकरी ने बंगाल के बंटवारे के किसी भी प्रयास का खुलकर विरोध किया था. शुभेंदु अधिकारी ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि बीजेपी इसका सपोर्ट नहीं करती है और बंगाल का बंटवारा पार्टी का स्टैंड नहीं है.
दिलीप घोष के बयान से सामने आई पार्टी की अंतर्कलह
लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा की चार सीटों पर हुए उपचुनाव में मिली हार को लेकर पार्टी ने बांकुड़ा में बैठक की, जिसमें चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन को लेकर मंथन किया गया. जहां चुनाव से पहले बीजेपी के नेता 25 लोकसभा सीटों पर जीत का दावा कर रहे थे. वहीं, पार्टी 12 सीटों पर ही सिमट गई. इसी बैठक में पूर्व अध्यक्ष दिलीप घोष ने ऐसी बात कही दी, जिससे बीजेपी की अंतर्कलह उभर कर सबके सामने आ गई. उन्होंने कहा, 'भारतीय जनता पार्टी को संगठन मजबूत करना आता है. आंदोलन किस तरह चलाया जाता है, ये भी आता है, लेकिन वोट कैसे हासिल किया जाए वो हम नहीं जानते. चुनाव जीतने के लिए वोट हासिल करने की चाबी का फॉर्मूला हमने कहीं खो दिया है.' इसका जवाब सुकांत मजूमदार ने भी दिया और कहा कि लोग हर चीज की जानकारी लेकर पैदा नहीं होते.
दिलीप घोष 2015 से 2021 तक बंगाल बीजेपी की कमान संभाल चुके हैं. संगठन की कार्यकारिणी के उपाध्यभ भी रहे हैं. उनके अध्यक्ष रहते हुए 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का बंगाल में वोट शेयर 38 फीसदी रहा. उसी साल उन्हें हटाकर सुकांत मजूमदार को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में वह खुद बर्धवान-दुर्गापुर सीट से हार गए.
बंगाल बीजेपी का नेतृत्व बदलने की उठी मांग
21 जुलाई को हुई उपचुनाव की समीक्षा बैठक में शुभेंदु अधिकारी ने भी ऐसी बात कह दी कि पार्टी को उनके बयान पर एक के बाद एक सफाई देनी पड़ी. फिर उन्हें भी फौरन पार्टी हाईकमान ने दिल्ली तलब कर लिया. शुभेंदु अक्सर तीखी बयानबाजी करते नजर आते हैं. ऐसा ही इस बैठक में भी हुआ और उन्होंने कह दिया, 'सबका साथ सबका विकास नहीं चाहिए. सिर्फ उसी का विकास जिसका साथ.' यहीं से उन्होंने अल्पसंख्यक मोर्चे को भंग करने का सुझाव भी दे दिया. बैठक में अल्पसंख्यक नेता भी मौजूद थे. 'सबका साथ सबका विकास' पार्टी का नारा रहा है और शुभेंदु अधिकारी का ये बयान पीएम नरेंद्र मोदी की घोषणा के खिलाफ था. इसी बीच उपचुनाव में मिली हार के बाद पार्टी में प्रदेश नेतृत्व को बदलने की भी मांग उठने लगी. बंगाल के बड़े नेता सौमित्र खान ने मांग उठाते हुए हार की जवाबदेही तय करने की भी बात कही. हालांकि, शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि पार्टी को 39 फीसदी वोट मिले जो बताता है कि बीजेपी मजबूत है.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी विवाद
बंगाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के लिए तीन चेहरे रेस में हैं- अग्निमित्र पॉल, ओबीसी नेता ज्योतिर्मय सिंह महतो और पार्टी प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य. अग्निमित्र पॉल आसनसोल दक्षिण से विधायक हैं और शुभेंदु अधिकारी उनके पक्ष में हैं. ज्योतिर्मय सिंह महतो के लिए सुकांत मजूमदार पक्ष में हैं. महतो पुरुलिया लोकसभा सीट से सांसद हैं. वह दूसरी बार एमपी बने हैं. तीसरे दावेदार शमिक भट्टाचार्य राज्यसभा सांसद हैं. शुभेंदु अधिकारी, सुकांत मजूमदार और दिलीप घोष तीनों ही उन्हें पसंद करते हैं. अब देखना होगा कि पार्टी हाईकमान तीनों में से किसके नाम पर मुहर लगाती है या किसी और को बंगाल पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपने का फैसला करती है.