Bengal Elections: पहले चरण से एक दिन पहले बांग्लादेश जाएंगे पीएम मोदी, जानें क्या है चुनाव कनेक्शन
बंग्लादेश की धरती से पीएम मोदी का हर संदेश सीधे पश्चिम बंगाल भी पहुंचेगा, जहां 27 मार्च को पहले चरण के लिए 30 सीटों पर मतदान होना है. बांग्लादेश की आजादी से पहले अत्याचार से परेशान होकर बड़ी आबादी ने पश्चिम बंगाल का रुख किया था, जिसमें मतुआ समुदाय भी शामिल है.मतुआ समाज को नजीर बनाकर ही बीजेपी सीएए-एनआरसी लागू करने और ममता को हिंदू विरोधी बताने की मुहिम में जुट गई है.
कोलकाता: देश में जानलेवा कोरोना वायरस की दस्तक के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विदेश दौरा होने वाला है. करीब साल भर बाद पीएम मोदी बांग्लादेश दौरे पर जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल और असम में जिस दिन वोट डाले जाएंगे उस दिन पीएम मोदी बांग्लादेश में रहेंगे. पीएम मोदी के बांग्लादेश दौरे का चुनाव कनेक्शन क्या है? जानिए.
26-27 मार्च को बांग्लादेश दौरे पर पीएम मोदी
पीएम मोदी महीने के अंत में 26 और 27 मार्च को ऐसे मौके पर बांग्लादेश पहुंचेंगे, जब बांग्लादेश में आजादी के पचास साल पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा होगा. कोरोना काल में भारत ने करीब 90 लाख वैक्सीन देकर दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत किया है. सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी अपने दौरे में मतुआ समुदाय के धर्मगुरु हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली और इस समुदाय के तीर्थ स्थल पर जाएंगे.
पीएम मोदी बांग्लादेश की शक्तिपीठों में से एक सुगंधा शक्तिपीठ और ओरकंडी मंदिर जैसे धार्मिक स्थल जा सकते हैं. भारत-बांग्लादेश के बीच साझा संस्कृति और भाषा के साथ पीएम मोदी राजनयिक रिश्तों को आगे बढ़ाएंगे.
बंगाल चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है ये दौरा?
बंग्लादेश की धरती से पीएम मोदी का हर संदेश सीधे पश्चिम बंगाल भी पहुंचेगा, जहां 27 मार्च को पहले चरण के लिए 30 सीटों पर मतदान होना है. वहीं असम में भी इसी दिन पहले फेज में 47 सीटों पर चुनाव होना है. इसीलिए पीएम मोदी के बांग्लादेश दौरे को बंगाल चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है.
मतुआ समाज को रिझाएंगे पीएम मोदी!
पीएम के बांग्लादेश दौरे के समीकरण से बंगाल में सत्ता की राह साधने पर नजर रहेगी. बांग्लादेश की आजादी से पहले अत्याचार से परेशान होकर बड़ी आबादी ने पश्चिम बंगाल का रुख किया था, जिसमें मतुआ समुदाय भी शामिल है. ऐसा माना जा रहा है कि पीएम के दौरे से अप्रत्यक्ष रूप से बंगाल में सत्ता की कुंजी कहे जाने वाले मतुआ समाज को साधने की कोशिश होगी. पश्चिम बंगाल में मतुआ समाज की अच्छी ताकत है. साल 1947 के बाद मतुआ समुदाय पश्चिम बंगाल के तीन जिलों नॉर्थ 24 परगना, साउथ 24 परगना और नदिया में आकर बसा. बंगाल की 294 में से सिर्फ 21 सीटों पर मतुआ वोटर प्रभाव डालते हैं. 21 सीटों पर भले मतुआ आबादी करीब सोलह फीसद हो लेकिन मतुआ समाज हमेशा से किंग मेकर की भूमिका में रहा है.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली थीं 9 सीटें
साल 2016 विधानसभा चुनाव में मतुआ बहुल 21 सीटों में से 18 पर टीएमसी को जीत मिली थी लेकिन साल 2019 में सीएए-एनआरसी लागू करने के एलान के बाद ही गेम बदल गया और बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 21 में से 9 सीटों पर बढ़त हासिल हो गई. मतुआ समाज खुलकर सीएए-एनआरसी लागू करने की वकालत कर चुका है.
मतुआ समाज को नजीर बनाकर ही बीजेपी सीएए-एनआरसी लागू करने और ममता को हिंदू विरोधी बताने की मुहिम में जुट गई है. मतुआ, हिंदू, और बंगाली संस्कृति के जरिए बीजेपी को यकीन है कि पश्चिम बंगाल में पहली बार कमल का कमाल हो सकता है और बांग्लादेश से पीएम मोदी का संदेश असर कर गया तो वोटर पर ये फार्मूला काम कर सकता है.
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