राजनीति और बंगाली संस्कृति पर बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री का सालों रहा असर, टॉलीवुड का बॉलीवुड में भी लगा तड़का
60, 70 और 80 के दशक में बंगाली इंडस्ट्री में बननेवाली फिल्में साहित्य से किसी तरह कम नहीं होती थीं. अभिनेता और निर्देशकों को 'थिंकिंग एक्टर्स या निर्देशक' की श्रेणी में रखा जाता था. ये प्रतिभा शायद ही देश के कोई दूसरे प्रांत में देखने को मिले.
कोलकाताः बंगाली संस्कृति और राजनीति पर बंगाली फिल्म इंडस्ट्री का वर्षों तक प्रभाव रहा है. 60, 70 और 80 के दशक में बंगाली इंडस्ट्री में बननेवाली फिल्में साहित्य से किसी तरह कम नहीं होती थीं. अभिनेता और निर्देशकों को 'थिंकिंग एक्टर्स या निर्देशक' की श्रेणी में रखा जाता था. ये प्रतिभा शायद ही देश के कोई दूसरे प्रांत में देखने को मिले. आखिर क्या वजह रही है कि बांग्ला संस्कृति और राजनीति पर फिल्मों का जबरदस्त असर रहा?
बंगाली संस्कृति और राजनीति पर बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री का जबरदस्त प्रभाव
इतिहासकार शोमशंकर रॉय कहते हैं, "उत्तम कुमार ने उस समय गणित में 80 फीसदी मार्क्स हासिल किया था. स्कूल की फाइनल परीक्षा को काफी कठिन माना जाता था. सौमित्र चटर्जी को अभिनेता कम और विद्वान ज्यादा माना जाता था. अनिल चटर्जी और सुभेन्दु चटर्जी जैसे अभिनेता भी काफी पढ़े लिखे थे. पर्दे के पीछे भूमिका निभानेवाले निर्देशकों ने बांग्ला फिल्म को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का काम किया. सत्यजीत रॉय, मृणाल सेन, बासु चटर्जी, तपन सिन्हा, शक्ति सामंत, रित्तिक घटक जैसे फिल्म निर्माताओं को बांग्ला फिल्मों के जरिए पूरी दुनिया में शोहरत मिली.
बंगाली संगीत निर्देशक जैसे हेमंत कुमार, सलिल चौधुरी, एस डी बर्मन, आर डी बर्मन, मन्ना डे और किशोर कुमार जैसे गायक इंडस्ट्री में छाए रहे." बंगाली फिल्मों का प्रभाव बॉलीवुड पर भी पड़ा. कई बांग्ला फिल्मों की रीमेक हिंदी में बनाई गई और बांग्ला गानों को हिंदी में फिल्माया गया. बांग्ला गाना मोनो दिलो नजे बोधु को हिंदी में किया गया जाने क्या तूने कही, आनंद फिल्म का सुपर हिट गाना कहीं दूर जब दिन ढल जाए को हेमंत कुमार के बांग्ला गाने आमाय प्रोश्नो कोरे नील ध्रुव तारा से लिया गया, जेते जेते पथे होलो देरी को तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा हिंदी में किया गया, बांग्ला गाना ए की होलो, केनो होलो, कोबे होलो को हिंदी में ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, जब हुआ में बदला गया जैसे कुछ शानदार मिसाल मिल जाते हैं.
ऐसे ही संस्कृति और राजनीति पर बंगाली अभिनेता, निर्देशक, गायक समेत इंडस्ट्री के टेक्निशियंस भी छाए रहे और उनके विचार लोगों को वर्षों तक प्रभावित करते रहे. उनकी वजह से बंगाल की फिल्म इंडस्ट्री और फिल्मी हस्तियों का प्रभाव राजनीति में रहा. आज भी लोग भी ऐतिहासिक नामों पर वोट करते हैं. लेकिन 2011 से पहले तक सिर्फ उनका इस्तेमाल राय बनाने के कामों में लगाया गया. उसके बाद ट्रेंड बदला और टीएमसी बंगाली फिल्म स्टार्स को चुनावी टिकट देने लगी.
टॉलीवुड से राजनीति में प्रवेश करने वाले अभिनेता इंडस्ट्री से बनाने लगे दूरी
अभिनेता और बंगाली आर्टिस्ट फोरम के सह सचिव देवदूत घोष बताते हैं, "टीएमसी और बीजेपी ने ही फिल्मी हस्तियों को पार्टी में शामिल करने की कवायद शुरू की. सितारों को चुनावी टिकट दिए जाने का ये फार्मूला ममता बनर्जी के लिए हिट साबित हुआ. लेकिन कई बार ये देखा गया कि टॉलीवुड से राजनीति में प्रवेश करने वाले अभिनेता बाद में इंडस्ट्री से दूरी बनाने लगे. साल 2011 से पहले जैसा माहौल इंडस्ट्री में अब नहीं रहा."
बंगाली मोशन पिक्चर्स आज 1500 करोड़ की इंडस्ट्री है लेकिन उसका ज्यादा पैसा टेलीविजन में ही लगे हैं. फिल्मों का हाल अच्छा नहीं होने और अलग अलग नियमों की वजह से भी बहुत सारे काम नहीं हो पाए. इसलिए धीरे धीरे तमिल, मलयालम जैसी फिल्म इंडस्ट्री से टॉलीवुड पीछे रह गई. आपको बता दें कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बार भी टॉलीवुड पर दांव खेल रही हैं , लेकिन बीजेपी भी बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पकड़ काफी मजबूत कर चुकी है.
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