Bengaluru News: कर्नाटक की राजधानी में उस समय हड़कंप मच गया जब पुलिस ने एक बड़े फर्जीवाड़ा का पर्दाफाश किया. पाकिस्तानी नागरिक हिंदू नामों की आड़ में बेंगलुरु में वर्षों से रह रहे थे, जिन्होंने फर्जी पहचान और दस्तावेजों के जरिए भारतीय जीवन शैली को अपनाया हुआ था. इन सभी लोगों का असली नाम और पहचान अब सामने आई है, जिससे सुरक्षा एजेंसियों में खलबली मच गई है.
पुलिस की जांच में शंकर शर्मा के नाम से रह रहा व्यक्ति असल में राशिद अली सिद्दीक़ी निकला, जबकि उसकी पत्नी आशा शर्मा का असली नाम आयशा था.आशा के माता-पिता, जो खुद को राम बाबू शर्मा और रानी शर्मा बताकर हिंदू समुदाय का हिस्सा बने हुए थे, असल में हनीफ और रूबीना हैं. इसी तरह, सनी चौहान और दीपाली चौहान के रूप में रह रहे अन्य दंपति भी पाकिस्तानी नागरिक तारिक सईद और अनिला सईद हैं.
फॉरेन फंडिंग और टेरर लिंक की जांच: इस मामले का खुलासा तब हुआ जब चेन्नई एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारियों को शक हुआ और जांच के दौरान इनके फर्जी दस्तावेजों का भंडाफोड़ हुआ.इसके बाद, बेंगलुरु में इन पाकिस्तानी नागरिकों की गतिविधियों पर नजर रखी गई और पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए राशिद अली सिद्दीक़ी उर्फ शंकर शर्मा को गिरफ्तार कर लिया. अब तक इस मामले में आठ गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और पांच अन्य संदिग्धों से कड़ी पूछताछ की जा रही है. खुफिया एजेंसियां और एनआईए इन लोगों के नेटवर्क और संभावित आतंकवादी कनेक्शन की जांच में जुटी हैं.
फर्जी पासपोर्ट और दस्तावेज का खेल: इन पाकिस्तानी नागरिकों ने अपने फर्जी नामों से भारतीय पासपोर्ट और अन्य सरकारी दस्तावेज बनवाए थे. बेंगलुरु की रूरल अनेकल पुलिस द्वारा पकड़े गए राशिद अली सिद्दीक़ी की गिरफ्तारी के बाद पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इन्हें दस्तावेज़ कैसे और कहां से मिले, किसने इनकी मदद की और क्या इनका कोई और नेटवर्क देश के अन्य हिस्सों में सक्रिय है? फिलहाल, पुलिस और खुफिया एजेंसियां इनसे सघन पूछताछ कर रही हैं। इनका क्रॉस वेरिफिकेशन भी किया जा रहा है, ताकि इनकी पहचान पूरी तरह से पुख्ता की जा सके.
मेंहदी फाउंडेशन और स्लीपर सेल का शक: पुलिस सूत्रों के अनुसार, इन पाकिस्तानी नागरिकों ने मेंहदी फाउंडेशन नामक संगठन के माध्यम से भारत में घुसपैठ की थी. इस फाउंडेशन का मकसद बताया गया कि वह अपने गुरु यूनुस गौहर के संदेश को फैलाने आए थे, लेकिन पुलिस को शक है कि यह एक कवर अप हो सकता है और ये लोग किसी आतंकी संगठन के स्लीपर सेल हो सकते हैं. इनके घर से पुलिस को कैमरे, कंप्यूटर और अन्य संदिग्ध सामान मिले हैं, जिनकी जांच चल रही है. सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इन फर्जी नामों से रह रहे लोगों का नेटवर्क कितना बड़ा है और कितने लोग इसी तरह से भारत के अन्य हिस्सों में भी सक्रिय हैं.
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