दोस्त के लिए हाईकोर्ट पहुंच गईं, नहीं चाहती इच्छा मृत्यु से हो जाए वो उस अजीज से दूर...
Bengaluru Woman Plea To Delhi HC: कहते हैं न कि दोस्त से बड़ा कोई अपना नहीं होता सब जुदा होते हैं, लेकिन दोस्त जुदा नहीं होता. इसे बेंगलुरू की एक महिला ने सही साबित कर दिया है.
Bengaluru Woman Plea To Delhi HC On Euthanasia: दोस्ती नाम है सुख-दुःख की कहानी का,दोस्ती राज है सदा ही मुस्कुराने का,ये कोई पल भर की जान-पहचान नहीं है, दोस्ती वादा है उम्र भर साथ निभाने का... यें लाइन्स बेंगलुरू (Bengaluru) की एक महिला पर सटीक बैठती है. इस महिला ने दोस्त की इच्छा मृत्यु (Euthanasia) रूकवाने के लिए बुधवार 12 जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) जाने से भी गुरेज नहीं किया. गौरतलब है कि उनके दोस्त एक दुलर्भ बीमारी से पीड़ित है और वे इच्छा मुत्यु के लिए स्विटरजरलैंड (Switzerland) जाने की तैयारी कर रहे हैं. महिला ने हाईकोर्ट में अपने बीमार दोस्त को यूरोप की इस यात्रा से रोकने के लिए याचिका दायर की है.
हम नहीं रह पाएंगे उसके बगैर
बेंगलुरू की 49 साल की महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट को दी गई अपनी याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह उसके दोस्त की यूरोप यात्रा पर रोक लगाए. महिला ने याचिका में खुद को मरीज का बेहद करीबी दोस्त बताया है. उन्होंने याचिका में अनुरोध किया है कि अगर उनके दोस्त की यात्रा को रोकने की याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा तो उसके पैरेंट्स,परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों को "अपूरणीय क्षति" और "मुश्किलों" का सामना करना पड़ेगा.
बुधवार को अदालत के समक्ष दायर एक याचिका के मुताबिक, महिला के दोस्त 2014 से क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (Chronic Fatigue Syndrome) से पीड़ित है. वह एक डॉक्टर की मदद से खुदकुशी के लिए स्विट्जरलैंड जाने की योजना बना रहे है. गौरतलब है कि भारत में इच्छा मृत्यु का विकल्प किसी ऐसे शख्स के लिए मान्य नहीं है जो मरने की हद तक बीमार (Terminally Ill) नहीं है.
कोविड महामारी ने बढ़ा दी थी मरीज की परेशानी
महिला की याचिका के मुताबिक, नोएडा में रहने वाले 48 साल के उनके दोस्त अपनी क्रोनिक फटीग सिंड्रोम बीमारी का इलाज एम्स (AIIMS) में करा रहे हैं. वह फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन (Fecal Microbiota Transplantation-FMT) ट्रीटमेंट के जरिए अपनी बीमारी से पार पाने की कोशिश कर रहे थे. एफएमटी को स्टूल ट्रांसप्लांट भी कहा जाता है.
इसमें एक सेहतमंद इंसान से दूसरे बीमार में फीकल बैक्टीरिया को डाला जाता है, लेकिन कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की वजह से उन्हें इसके लिए डोनर नहीं मिल पाया था. इस वजह से उनका इलाज जारी नहीं रह पाया. याचिका में ये भी कहा गया है कि इस बीमारी के लक्षण मरीज में साल 2014 से दिखने शुरू हुए थे और बीते आठ सालों में उनकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई. वह बिस्तर पर पड़ गए और कुछ भी काम करने में असमर्थ हो गए.
महिला के दोस्त इकलौते बेटे हैं
महिला की याचिका के मुताबिक, उनके दोस्त अपने पैरेंट्स के इकलौते बेटे है. उनकी एक बहन भी है. महिला के दोस्त के पैरेंट्स 70 साल के हैं. हालांकि महिला याचिकाकर्ता ने इस मामले में किसी से भी बात करने से इंकार कर दिया है. महिला अपने बीमार दोस्त और उसके परिवारवालों के लगातार संपर्क में है.
इस याचिका में बीमार दोस्त का भेजा संदेश भी शामिल है, जिसमें उसने लिखा, ''अब काफी हो गया, इच्छा मृत्यु का विकल्प देख रहा हूं." याचिका में बताया गया, "यहां यह बताना जरूरी है कि भारत या विदेश में कहीं भी मरीज को बेहतर ट्रीटमेंट देने की राह में कोई बाधा नहीं है, लेकिन वह अब इच्छामृत्यु के ने के अपने फैसले पर अडिग है, जो उसके उम्रदराज पैरेंट्स जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित करता है."
दोस्त ने लिया शेंगेन वीजा
याचिका में कहा गया है कि महिला के दोस्त ने इच्छामृत्यु की वजह से पहले ही शेंगेन (Schengen) वीजा ले लिया था. इस वीजा से 26 यूरोपीय देशों की यात्रा बगैर किसी प्रतिबंध के की जा सकती है. उसने बेल्जियम के एक क्लिनिक में इलाज कराने झूठी बात पर ये वीजा लिया था. दरअसल मरीज ने जून में स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख (Zurich) की ये यात्रा इच्छामृत्यु के लिए मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के पहले चरण के लिए की थी.
याचिका के मुताबिक, महिला के दोस्त ने ज्यूरिख के संगठन डिग्निटास (Dignitas) के जरिए इच्छामृत्यु से गुजरने का फैसला किया है, जो इस मामले में विदेशी नागरिकों को मदद देता है. याचिका में दावा किया गया है डिग्निटास ने महिला के दोस्त का आवेदन स्वीकार करने के बाद उन्हें पहले मूल्यांकन के लिए मंजूरी दी थी. मरीज अगस्त 2022 के अंत तक इच्छा मृत्यु के मामले में इस संगठन के अंतिम फैसले का इंतजार कर रहे हैं.
महिला के वकील सुभाष चंद्रन ने कहा, " मरीज नेकनीयती से यात्रा नहीं कर रहा है. वह भारतीय अधिकारियों को गुमराह कर रहे हैं, इसलिए हम उन्हें इमिग्रेशन क्लीयरेंस न देने की प्रार्थना कर रहे हैं. हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है." गौरतलब है कि भारत में 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें निष्क्रिय रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी बना दिया था. जबकि आईपीसी की धारा 309 में आत्महत्या का कोशिश अपराध है.
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