भारत-चीन विवाद: जानिए- उस गुलाम रसूल को जिनके नाम पर गलवान घाटी का नाम पड़ा
भारत-चीन विवाद के बीच गलवान इलाके की चर्चा जोरों पर है. मगर क्या आप जानते हैं इलाके की खोज करने वाले कौन थे? नहीं, तो अब जानिए-
हाल के दिनों में चीन-भारत विवाद के बीच गलवान घाटी और गलवान नदी की खूब चर्चा है. इस इलाके में चीनी निर्माण का विरोध करने वाले 20 भारतीय जवानों को शहीद होना पड़ा. चीन के साथ हुई झड़प का मुख्य कारण चीन का घुसपैठ कर इलाके में अतिक्रमण करना है. लेकिन क्या आप जानते हैं इस इलाके की खोज करने वाले कौन थे?
गलवान नदी काराकोरम की पहाड़ियों की श्रेणियों से निकलती है और चीन से होते हुए लद्दाख के श्योक नदी में मिल जाती है. गलवानी नदी करीब 80 किलोमीटर लंबी है और सैन्य दृष्टि से इसका महत्व बहुत ज्यादा है. 2001 में 'सर्वेंट्स औफ साहिबस' किताब में अंग्रेजों के एक खास नौकर का जिक्र मिलता है. जिसके मुताबिक गलवान इलाके की खोज करनेवाले गुलाम रसूल गलवान थे. जिनके नाम पर लद्दाख के उत्तर पूर्व इलाके का नाम पड़ा.
गलवान घाटी से क्या है गुलाम रसूल गलवान का संबंध?
किताब के मुताबिक गुलाम रसूल गलवान का जन्म 1878 में हुआ. उन्होंने कई यूरोपीय सैलानियों यानी 'साहिब' के साथ दूर दराज और दुश्वार रास्तों का सफर किया. ये सफर इसलिए भी मुश्किल हुआ करता था क्योंकि रास्ते में सिर्फ पहाड़, पत्थर, नदी और जंगल मिलते थे. आबादी का कोई नाम निशान नहीं हुआ करता था. समुद्र की सतह से गलवान का इलाका 5-7 हजार मील की ऊंचाई पर है. यहां गर्मी में तापमान शून्य डिग्री से भी नीचे चला जाता है. गुलाम रसूल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने तिब्बत, सिक्यांग, कराकोरम, पामेर और दूसरे मध्य एशियाई इलाकों का खूब सफर किया.
'Servant of sahibs' किताब में मिलता है जिक्र
गलवान ब्रिटिश ट्रैकिंग दल के पसंदीदा गाइड थे. उन्होंने 12 साल की उम्र से सफर के अभियान में शामिल होना शुरू कर दिया था. कई अभियान के दौरान उन्होंने जिस नदी का पता लगाया उस नदी को उन्हीं का नाम दे दिया गया. अंग्रेज उनके अंग्रेजी और चीनी भाषा से वाकिफ होने की वजह से उन्हें अपने ट्रैकिंग दल में शामिल करते थे. कहा जाात है कि बाद में गलवान ब्रिटिश ज्वाइंट कमिश्नर के सहायक नियुक्त हुए. उनका काम तिब्बत से गलवान इलाके के जरिए आयात-निर्यात किए जानेवाले सामान की देखरेख करना था.
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