Ancient History Of Bharat Mandir In Ayodhya: "प्रभु करी कृपा पांवरी दीन्ही, सादर भरत सीस धर लीनी". यह चौपाई तुलसीकृत रामायण के उस प्रसंग की है, जब चित्रकूट में भगवान राम से मिलकर भरत  उन्हें वापस लौटाने में सफल नहीं होते हैं तो उनकी चरण पादुका को मांग कर शीश पर रख लेते हैं. इस चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर 14 साल अयोध्या का राज चलाते हैं वह भी अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर नंदीग्राम से.


पूरी दुनिया में ऐसा उदाहरण बिरले ही मिलता है, जहां एक भाई दूसरे भाई की चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर राज्य का शासन चलाता है. इसलिए भरत जैसे भाई के उदाहरण सदियों से दिए जाते हैं. नंदीग्राम में जिस जगह पर भरत ने बड़े भाई राम के इंतजार में 14 सालों तक तपस्या की थी, वही भरत मंदिर बना है. एबीपी न्यूज की टीम वहां पहुंची. चलिए आज हम आपको बताते हैं इस ऐतिहासिक मंदिर के पौराणिक महत्व के बारे में.


यहां बना है भरत कुंड, राम के राज्याभिषेक से है संबंध
पवित्र नगरी अयोध्या में एक तरफ भव्य राम मंदिर बन रहा है, तो दूसरी तरफ राजा राम के अनुज भरत की तपोस्थली नंदीग्राम के भरतकुंड की भी चर्चा तेज है. त्रेता में भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था तो इसी भरत कुंड से पवित्र तीर्थ का जल डाला गया था. और अब जब भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा (22 जनवरी) होनी है तो इस भरत कुंड को सजा धारा कर तैयार किया गया है.  


यहीं खड़ाऊं रख भरत ने चलाया राजकाज    
सप्तपुरियों यानि सात पवित्र नगरी में प्रथम स्थान पर मानी जाने वाली अयोध्या से सुल्तानपुर मार्ग पर स्थित भरतकुंड (मिनी गया) का सदियों से विशेष महत्व रहा है.  यहीं वह कूप है, जिसमें 27 तीर्थों का जल है. मान्यता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए अनुज भरत 27 तीर्थों का जल लेकर आए थे, जिसे आधा चित्रकूट के एक कुंए में डाला था, बाकी भरतकुंड स्थित कुएं में. यह कुआं आज भी मौजूद है. जिसके पानी की गंगा के पानी से तुलना की जाती है. यहां के पुजारी का दावा है कि सालों साल पानी रखें, कभी कीटाणु नहीं पड़ेगा.




क्यों भरत ने यहां की तपस्या?
एबीपी न्यूज से खास बातचीत में भरत मंदिर के पुजारी हनुमान दास बताते हैं, "जब 14 वर्ष के वनवास के लिए राजपाट छोड़कर चले, तो भरत उनको मनाने गए. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने पिता के वचन से बंधे थे. लौटना स्वीकार नहीं किया लेकिन भरत के अनुरोध पर अपनी खड़ाऊं यानी चरण पादुका उनको सौंप दी. नंदीग्राम में भरत श्रीराम की की खड़ाऊं को प्रतीक के तौर लेकर अयोध्या का राजपाट चलाने लगे. 14 वर्ष बनवास खत्म कर जब राम अयोध्या वापस लौटे तो यहीं पर भरत से मिले.


रघुकुल के वंशजों का यही होता है पिंडदान 
भरत ने पिता के पिंडदान के लिए नंदीग्राम में कुंड का निर्माण कराया था, जिसे भरतकुंड कहा जाता है. हिंदू समुदाय का पिंडदान जहां बिहार के गया में होता है वही इस जगह को मिनी गया कहा जाता है क्योंकि यहां रघु कुल के सभी पूर्वजों का पिंडदान होता रहा है. और गया जी में पिंडदान से पहले यहां भी पिंडदान का रिवाज रहा है. यहीं पर भरत और महावीर हनुमान की मुलाकात हुई और एक दूसरे को गले लगाया था. यह एक शांतिपूर्ण और निर्मल जगह है.


भगवान विष्णु से भी है संबंध
पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु का बाये पांव का गयाजी (बिहार) में तो दाहिने पांव का चरण चिह्न यहीं गयावेदी पर है. भरतकुंड के दूसरे छोर पर स्थित गया वेदी पर पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण करने के लिए गया (बिहार) जाने से पूर्व यहां पिंडदान की अनिवार्यता होने के कारण हिंदू धर्म में इस स्थान का बड़ा महत्व है. भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ क पिंडदान यहीं किया था. मान्यता है कि भरतकुंड में किया पिंडदान, गया तीर्थ के समान फलदायी है. 


एक दूसरे से लिपटी हैं पेड़ों की डालियां, मंदिर से बाहर है नंदी के सिर


इस जगह का संबंध भगवान भोले से भी है. यहीं पर भगवान शंकर का मंदिर है जिसमें नंदीजी मंदिर के बाहर देख रहे हैं. आमतौर पर नंदीजी भगवान शंकर की तरह मुंह किए रहते हैं, लेकिन यहां नंदीजी का सिर शिवलिंग की तरफ से मंदिर से बाहर की ओर है. यहां एक ऐसा पेड़ है जिसकी डालियां एक दूसरे का लपेटती हैं. यहां के पुजारी कहते हैं कि वृक्ष की डालियों को ध्यान से देखेंगे तो आपको देवताओं की तस्वीर दिखाई देगी. पुजारी कहते हैं कि यहां भगवान शिव भी आया करते थे. 2018 से यहां संकीर्तन चल रहा है जो 14 सालों तक चलने वाला है.


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