कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न: मोदी सरकार ने एक तीर से साधे कई निशाने!
Lok Sabha Election: मोदी सरकार बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित कर रही है. कर्पूरी ठाकुर ईबीसी से आते थे. माना जा रहा के मोदी सरकार ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं.
Bharat Ratna To Karpoori Thakur: दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (मरणोपरांत) से सम्मानित करने की घोषणा मोदी सरकार ने मंगलवार (23 जनवरी) को की. यह घोषणा 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की मनाई जाने वाली 100वीं जयंती से ठीक पहले की गई है. जेडीयू ने बिहार में बड़े स्तर पर कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी मनाने की योजना बनाई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुधवार (24 जनवरी) को पटना में जेडीयू की ओर से आयोजित होने वाले कर्पूरी ठाकुर जन्म शताब्दी समारोह को संबोधित कर सकते हैं.
हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत जेडीयू के कई नेता पहले से कर्पूरी ठाकुर के भारत रत्न दिए जाने की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं. अब जन्मशती से एक दिन पहले कर्पूरी ठाकुर के लिए भारत रत्न सम्मान की घोषणा के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. इसकी दो बड़ी वजह हैं. पहली- कर्पूरी ठाकुर अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) से आते थे और अक्टूबर में बिहार सरकार की ओर से जारी किए गए जाति आधारित सर्वे के अनुसार राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है. दूसरा यह कि लोकसभा चुनाव बेहद करीब है.
बिहार में किस जाति की कितनी संख्या?
पिछले साल 2 अक्टूबर को जारी किए गए बिहार के जाति सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, बिहार की कुल आबादी 13.07 (13,07,25,310) करोड़ है. इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा 36.01 फीसदी (4,70,80,514) है. दूसरे नंबर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी 27.12 फीसदी है. इसके बाद अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की 1.68 फीसदी है. वहीं, राज्य में 1 फीसदी से कम बौद्ध, ईसाई, सिख और जैन हैं.
नीतीश सरकार का बड़ा दांव
बिहार में जाति आधारित सर्वे की आंकड़े जब जारी किए गए तो इसे नीतीश कुमार सरकार का बड़ा दांव माना जा रहा था क्योंकि लोकसभा चुनाव पास है. इसके बाद एक बड़ा दांव नीतीश कैबिनेट ने जाति सर्वे के आंकड़े जारी होने के अगले महीने आरक्षण के संबंध में चल दिया.
9 नवंबर 2023 को नीतीश कुमार सरकार ने बिहार विधान सभा में राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण सीमा के संशोधन से संबंधित विधेयक को पेश किया और इसे उसी दिन सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया.
इससे बिहार में ओबीसी, ईबीसी, एससी और एसटी को 65 फीसदी आरक्षण मिलने का प्रावधान हो गया. पहले इन यह सीमा 50 फीसदी आरक्षण की थी. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण अलग से मिलता था, जो आगे भी मिलता रहेगा.
केवल अत्यंत पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग की बात करें तो पहले ईबीसी को 18 फीसदी आरक्षण मिलता था, जिसे बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया गया है. वहीं, पहले ओबीसी को 12 फीसदी आरक्षण मिलता था, जिसे बढ़ाकर 18 फीसदी कर दिया गया है.
कर्पूरी ठाकुर और पिछड़े वर्गों की चर्चा क्यों?
कर्पूरी ठाकुर के लिए भारत रत्न सम्मान की घोषणा के बाद पिछड़े वर्ग की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि क्योंकि बिहार के इस दिग्गज को पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए काम करने वाले नेता के रूप में जाना जाता है. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कर्पूरी ठाकुर ने 70 के दशक में पिछड़े वर्गों के आरक्षण के लिए उप-वर्गीकरण शुरू किया था. वह चाहते थे कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए अलग कोटा हो जो ज्यादा प्रभाव रखने वाले अन्य पिछड़ा वर्गों से प्रभावित न हो.
कर्पूरी ठाकुर के पिछड़ों के प्रति कार्यों का अंदाजा पीएम मोदी की X पर साझा की गई आभार जताने वाली पोस्ट से लगाया जा सकता है. पीएम मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने को लेकर खुशी जताते हुए पोस्ट में यह कहा, ''...यह प्रतिष्ठित मान्यता हाशिए पर पड़े लोगों के लिए एक योद्धा और समानता और सशक्तीकरण के दिग्गज के रूप में उनके स्थायी प्रयासों का एक प्रमाण है.''
उन्होंने कहा, ''दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है. यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान करता है बल्कि हमें एक अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है.''
तो क्या मोदी सरकार ने उलट दिया खेल?
राजनीतिक पिच पर अभी तक नीतीश कुमार के पक्ष में खेल समझा जा रहा था लेकिन मंगलवार को कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान से सम्मानित करने की मोदी सरकार घोषणा से गेम पलटने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि, बीजेपी सीधे तौर पर जातियों के नाम न लेकर अपनी बाजी खेल रही है.
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस की ओर से ओबीसी की आवाज उठाए जाने के बाद एक नया दांव 'ज्ञान' फॉर्मूले के रूप में चल दिया था. पीएम मोदी ने कहा है कि भारत तो 2047 तक विकसित देश बनाना है और यह लक्ष्य GYAN यानी G- गरीब, Y- युवा, A- अन्नदाता (किसान), N- नारीशक्ति (महिला सशक्तिकरण) पर ध्यान केंद्रित करके हासिल किया जा सकता है.
पीएम मोदी ने GYAN फॉर्मूले की बात करके मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को संबोधित किया है. अब बिहार में मोदी सरकार ने ईबीसी का नाम लिए बिना उस वर्ग से आने वाले और जननायक की छवि वाले दिवंगत नेता के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान की घोषणा करके निश्चिच तौर पर गेम पलटने नहीं, तो अपने पक्ष में करने की बाजी जरूर खेल दी है. यानी समझा जा सकता है कि मोदी सरकार ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं.
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