सूरज निकला, कमल खिला... लेकिन अटल-आडवाणी की बीजेपी को तोड़ने 5 नेता भी निकले
अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा और कमल खिलेगा का नारा देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी यह करने में सफल तो हो गई, लेकिन 5 ऐसे भी नेता थे, जो बीजेपी को तोड़ने निकले थे. उन नेताओं की कहानी जानते हैं...
12 राज्यों और केंद्र की सत्ता में काबिज बीजेपी 6 अप्रैल को 43वां स्थापना दिवस मनाया है.जनसंघ के विघटन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी, कैलाशपति मिश्र और लालकृष्ण आडवाणी ने मिलकर बीजेपी की स्थापना की थी. शुरुआत में बीजेपी का जनाधार गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और यूपी तक ही सीमित था.
बीजेपी की स्थापना पर तत्कालीन अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी का दिया भाषण अब भी खूब वायरल होता है. वाजपेयी ने इस अधिवेशन में कहा था, 'अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा और कमल खिलेगा'. स्थापना के 10 साल बाद बीजेपी एमपी में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी.
अयोध्या में साल 1991 में कारसेवकों पर चली गोली के बाद यूपी में पहली बार बीजेपी ने सरकार बनाई. केंद्र में स्थापना के 16 साल बाद ही बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही. हालांकि, 13 दिनों तक ही यह सरकार चल पाई. वर्तमान में केंद्र के साथ ही 12 राज्यों में बीजेपी की सरकार है और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गठबंधन के साथ पार्टी सत्ता में है.
बीजेपी के 43 साल के इस सफर में कई उतार-चढ़ाव आए. कई बार जनाधार वाले राज्यों में ही पार्टी के खत्म होने की अटकलें लगी, लेकिन पार्टी हर बार मजबूत होकर उभरी. कार्यकर्ताओं की संख्या के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को तोड़ने की कई बार कोशिश भी हुई है.
आइए इस स्टोरी में उन 5 नेताओं की कहानी जानते हैं, जो बीजेपी में रहते हुए पार्टी से पहले बगावत किया और फिर अपनी नई पार्टी बना ली..
1. शंकर सिंह वाघेला, गुजरात- 1995 में गुजरात में पहली बार बीजेपी अपने बूते सरकार बनाने में कामयाब हो गई. राज्य की 182 में से 121 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली. बीजेपी हाईकमान ने दिल्ली से ऑब्जर्वर भेज कर मुख्यमंत्री का चुनाव कराया.
पार्टी ने पटेल नेता केशुभाई पटेल को राज्य की कमान सौंप दी. केशुभाई पटेल के नेतृत्व में पार्टी ने नगर निकाय के चुनाव में भी ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी, लेकिन पार्टी के भीतर यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही.
बीजेपी के कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला ने केशुभाई सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. उस वक्त केशुभाई अमेरिका दौरे पर गए थे. बीजेपी हाईकमान ने इस संकट से निपटने के लिए के शर्मा, प्रमोद महाजन और भैरो सिंह शेखावत को उस वक्त अहमदाबाद भेजा था.
तीनों नेताओं ने उस वक्त समझौते को लेकर कई फॉर्मूला वाघेला को सुझाया, लेकिन बात नहीं बनी. वाघेला के साथ करीब 46 विधायक थे, जिनमें कुछ मंत्री भी शामिल थे. वाघेला ने हाईकमान की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया और समर्थक विधायकों को लेकर खजुराहो पहुंच गए.
वाघेला को 45 सीटों वाली कांग्रेस ने बाहर से समर्थन देने का ऐलान कर दिया, जिसके बाद 1996 में शंकर सिंह वाघेला खुद की नई पार्टी बना ली. पार्टी का नाम था- राष्ट्रीय जनता पार्टी.
वाघेला ने बीजेपी को तोड़कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली. खुद राज्य के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, यह सरकार सिर्फ 2 सालों तक ही चल पाई. 1998 के चुनाव में केशुभाई पटेल ने फिर से सत्ता में वापसी की.
शंकर सिंह वाघेला इसके बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. 2001 में गुजरात बीजेपी में बड़ा बदलाव हुआ और नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बनाए गए. इसके बाद बीजेपी लगातार गुजरात में सरकार में है.
2. कल्याण सिंह, उत्तर प्रदेश- 1991 में देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में बीजेपी को सत्ता में लाने वाले कल्याण सिंह ने हाईकमान से खटपट के बाद 1999 में पार्टी तोड़ने की कोशिश की थी. कल्याण सिंह वे उस वक्त प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर कई तल्ख बयान भी दिए थे.
कल्याण सिंह ने बीजेपी को सवर्णों की पार्टी बताते हुए हाईकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जिसके बाद दिल्ली से उन्हें निकालने का फरमान जारी हुआ था. कल्याण सिंह के बदले राम प्रकाश गुप्ता को बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया.
बीजेपी से हटने के बाद कल्याण सिंह ने खुद की राष्ट्रीय कल्याण पार्टी का गठन किया था. कल्याण सिंह उस वक्त अपने साथ 5 विधायकों को लेकर बीजेपी से निकले थे. कल्याण सिंह के निकलने के बाद राम प्रकाश गुप्ता भी ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री नहीं रह पाए. बीजेपी ने उनकी जगह राजनाथ सिंह को सीएम बनाया.
2002 के चुनाव में बीजेपी चुनाव हार गई, लेकिन कल्याण सिंह की पार्टी भी कोई ज्यादा असर नहीं दिखा पाई. कल्याण सिंह की पार्टी को सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिली. हालांकि, उनकी पार्टी 3.38% वोट जरूर मिले. कल्याण सिंह ने बीजेपी को पश्चिमी यूपी के कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया.
2004 में बीजेपी हाईकमान कल्याण सिंह को फिर से वापस लाने की कवायद में जुट गई और सफल भी रही. हालांकि, 2004 में कल्याण सिंह के आने के बावजूद बीजेपी को कोई बड़ा फायदा नहीं मिला.
1999 में 29 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी 2004 में सिर्फ 10 सीटें हासिल कर पाई. केंद्र से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई. कल्याण सिंह कुछ साल बाद फिर बीजेपी से बागी हुए और अपनी नई पार्टी बनाई. 2013 में उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया. 2014 में मोदी सरकार आने के बाद उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया.
3. उमा भारती, मध्य प्रदेश- बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने साल 2006 में बगावत करते हुए मध्य प्रदेश में पार्टी तोड़ने की कोशिश की थी. साध्वी से राजनीति में उतरी उमा ने उस वक्त खुद की पार्टी भी बनाई थी. उमा बीजेपी हाईकमान से नाराज थीं.
दरअसल, दिग्विजय सिंह की सरकार के खिलाफ बीजेपी ने 2002 में दिल्ली से उमा भारती को भेजा था. उमा कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए 2003 में एमपी में बीजेपी की सरकार बनाने में कामयाब रही. उमा को इसका ईनाम भी मिला और वे राज्य की मुख्यमंत्री बनीं.
2004 तक सब कुछ ठीक चल रहा था इसी बीच कर्नाटक कोर्ट ने उमा भारती के खिलाफ एक वारंट जारी कर दिया. अफसरों की इस लापरवाही की वजह से उमा की कुर्सी चली गई. उमा ने राजनीतिक समझौते के तहत बाबूलाल गौर को सीएम की कुर्सी सौंप दी.
मुख्यमंत्री बनते ही गौर ने अतिक्रमण हटाओ पर जोर दिया और राज्य में कई जगहों पर बुलडोजर चलने लगा. मामला आउट ऑफ कंट्रोल होता देख बीजेपी हाईकमान ने गौर की नकेल कस दी. गौर की जगह शिवराज सिंह चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान हुआ.
शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद उमा भारती ने हाईकमान के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. उमा ने दिल्ली में एक मीटिंग में अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से भिड़ गईं, जिसके बाद 2005 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया.
उमा ने 2006 में एमपी के उज्जैन से भारतीय जनशक्ति पार्टी नामक दल का गठन किया. उमा खुद इस पार्टी की अध्यक्ष बनी और पूर्व सांसद संघप्रिय गौतम को उपाध्यक्ष बनाया.
2008 के एमपी चुनाव में उमा भारती ने मध्य प्रदेश की 201 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन उमा को बड़ी सफलता नहीं मिली. उनकी पार्टी सिर्फ 5 सीटों पर जीतने में कामयाब रही. उमा ने 2009 में खुद की पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
उमा 2012 से पहले बीजेपी में शामिल हो गई और यूपी में बीजेपी का चेहरा बनाई गईं. मोदी कैबिनेट में 2014 से 2019 तक उमा मंत्री रहीं.
4. बीएस येदियुरप्पा, कर्नाटक- 2004 में दक्षिण के कर्नाटक में पहली बार बड़ा उलटफेर करते हुए बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन राजनीतिक समीकरण की वजह से सरकार बनाने से चूक गई. 2007 में जोड़तोड़ की गणित से बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन यह सरकार जल्द ही गिर गई.
2008 के चुनाव में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई और बीएस येदियुरप्पा ही मुख्यमंत्री बने. कर्नाटक दक्षिण का पहला राज्य था, जहां बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुई थी. बीजेपी कर्नाटक के सहारे ही अन्य राज्यों में भी पार्टी का विस्तार कर रही थी.
2011 में लोकायुक्त के एक फैसले ने बीजेपी की किरकिरी करा दी. दिल्ली में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को घेर रही बीजेपी के लिए कर्नाटक लोकायुक्त का फैसला बज्र के सामान था. येदियुरप्पा पर अवैध रेत उत्खनन में लाभ पहुंचाने का आरोप लगा और सजा मिली.
येदियुरप्पा को हाईकमान के दबाव में इस्तीफा देना पड़ा और कुछ दिन जेल भी गए. मामले की जांच सीबीआई ने शुरू की और येदियुरप्पा पर शिकंजा कस दिया गया. बीजेपी से सपोर्ट न मिलता देख येदि ने खुद की कर्नाटक जनता पार्टी बना ली.
येदियुरप्पा ने 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 204 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन उनकी पार्टी को सिर्फ 6 सीटों पर जीत हासिल हुई. हालांकि, 9 फीसदी वोट लाने में येदि कामयाब रहे. इस चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और पार्टी के कई दिग्गज चुनाव हार गए.
2014 से पहले येदियुरप्पा बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने फिर उन्हें प्रदेश की कमान सौंप दी. येदि 2018 में एक हफ्ते के लिए सीएम बने, लेकिन बहुमत नहीं होने की वजह से इस्तीफा दे दिया. 2019 में ऑपरेशन लोटस के बाद बीजेपी की ओर से येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए.
5. बाबूलाल मरांडी, झारखंड- बिहार से टूटने के बाद साल 1999 में झारखंड राज्य बना. यहां पहली बार बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हुई. बीजेपी ने आदिवासी बाबूलाल मरांडी को राज्य की कमान सौंप दी. झारखंड के सियासी उठापटक के बाद मरांडी के हाथ से कुर्सी खिसक गई.
मरांडी की जगह बीजेपी ने आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा को राज्य की कमान सौंप दी. 2004 में बाबूलाल मरांडी एकमात्र बीजेपी कैंडिडेट थे, जिन्होंने जीत हासिल की. मरांडी का कद इसके बाद काफी मजबूत होता गया. इधर, केंद्र में सरकार जाने की वजह से अटल-आडवाणी की जोड़ी भी कमजोर पड़ गई थी.
मरांडी ने 2005 में हाईकमान के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया, जिसके बाद वे पार्टी से निकाले गए. मरांडी ने 2006 में खुद की झारखंड विकास मोर्चा नामक पार्टी बनाई. ये पार्टी 14 साल तक झारखंड की सियासत में सक्रिय रही.
2009 के चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा ने 11 सीटों पर जीत हासिल कर झारखंड की सियासत में भूचाल ला दिया. हालांकि, बाबूलाल की पार्टी खुद के बूते सरकार बनाने में हमेशा असफल रही.
2019 में हार के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय का फैसला किया. चुनाव आयोग ने इसकी मंजूरी भी दे दी. मरांडी अभी बीजेपी में हैं.