सीपीआई नेता प्रकाश करात ने कहा, ‘’यह लोकतांत्रिक अधिकारों पर एक बड़ा हमला है. हम मांग कर रहे हैं कि इन लोगों के खिलाफ सभी मामलों को वापस ले लिया जाए और उन्हें तत्काल रिहा कर दिया जाए.’’
पुलिस की इस कार्रवाई पर प्रसिद्ध लेखिका अरूंधती रॉय ने कहा, ‘‘ये गिरफ्तारियां उस सरकार के बारे में खतरनाक संकेत देती है जिसे अपना जनादेश खोने का डर है, और दहशत में आ रही है. बेतुके आरोपों को लेकर वकील, कवि, लेखक, दलित अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया जा रहा है. हमे साफ-साफ बताइए कि भारत कहां जा रहा है.’’
वहीं, महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि आदिवासी सॉफ्ट टारगेट हैं, इसलिए उनपर हमला किया जा रहा है, जोकि हमारे देश और संविधान के लिए अच्छा नहीं है.’’
भीमा कोरेगांव हिंसा: दिल्ली, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में पुलिस के छापे, सुधा भारद्वाज समेत 5 गिरफ्तार
राष्ट्रवादी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने कहा है, ‘’गिरफ्तार किए गए लोगों का नक्सली कनेक्शन होना एक अफवाह है. मुझे लगता है कि व्यक्ति या सामाजिक कार्यकर्ता जो हमेशा अन्याय के खिलाफ खड़े थे, उन्हें किसी सबूत के बिना अपमानित नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘’जो सरकार के खिलाफ खड़ा होता है जिसका मतलब यह नहीं है कि वह नक्सली है.’’
बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को राष्ट्रीय राजधानी से तब तक बाहर नहीं ले जाया जाए, जबतक कि वह कल सुबह मामले पर सुनवाई नहीं कर लेती. कोर्ट ने कहा है कि नवलखा अपने आवास पर पुलिस की निगरानी में रहेंगे और उन्हें सिर्फ अपने वकीलों से मिलने की अनुमति होगी. महाराष्ट्र पुलिस ने आज दोपहर दिल्ली में नवलखा को उनके आवास से उठा लिया था.
क्या है भीमा कोरेगांव हिंसा?
बता दें कि इसी साल जनवरी में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क उठी थी. पूरा झगड़ा 29 दिसंबर से शुरू हुआ था. 29 दिसंबर को पुणे के वडू गांव में दलित जाति के गोविंद महाराज की समाधि पर हमला हुआ था, जिसका आरोप मिलिंद एकबोटे के संगठन हिंदू एकता मोर्चा पर लगा और एफआईआर दर्ज हुई. एक जनवरी को दलित समाज के लोग पुणे के भीमा कोरेगांव में शौर्य दिवस मनाने इकट्ठा हुए और इसी दौरान सवर्णों और दलितों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें एक शख्स की जान चली गई और फिर हिंसा बढ़ती गई.
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