नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्टने कहा कि वह कोरेगांव-भीमा हिंसा प्रकरण में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में ‘बाज दृष्टि’से गौर करेगा क्योंकि अटकलों की वेदी पर स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्टने इसके साथ ही इन कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की अवधि एक दिन के लिये और बढ़ा दी.
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि एक ओर विरोध और असहमति तो दूसरी ओर गड़बड़ी पैदा करने, कानून व्यवस्था की समस्या और सरकार उखाड़ फेंकने के बीच स्पष्ट विभेद होना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड ने कहा, ‘‘हमारी संस्थायें व्यवस्था और यहां तक कि इस सुप्रीम कोर्टके प्रति किसी असहमति या विरोध को जगह देने में पूरी तरह सक्षम होनी चाहिए.
कोर्ट ने पांच कार्यकर्ताओं वरवरा राव, अरूण फरेरा, वर्नेन गोन्साल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की उनके घरों में ही नजरबंदी की अवधि कल तक के लिये बढ़ा दी. सुप्रीम कोर्टइन पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘एक राष्ट्र के रूप में हमें इस बारे में चिंतित होना चाहिए. यह बहुत ही गंभीर मामला है. मैं सुप्रीम कोर्टसे आग्रह करूंगा कि इस मामले की पूरी तरह सुनवाई के बाद ही कोई राय बनायें.’’ इस पर, न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा , ‘‘हां, हम यह करेंगे, परंतु हमारा दिमाग भी मानवीय है और हम इस मामले को बाज दृष्टि से देखेंगे.’’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कोई भी राय बनाने से पहले केस डायरी और दूसरी संबंधित सामग्री पर भी गौर करेगा. महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित ऐलगार परिषद के बाद कोरेगांव-भीमा गांव में हिंसा की घटना को लेकर दर्ज प्राथिमकी के सिलसिले में 28 अगस्त को कई राज्यों में छापे मारे थे और इन पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था.
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