नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कल दिल्ली से गिरफ्तार किए गए एक्टिविस्ट गौतम नवलखा केस की सुनवाई आज हाइकोर्ट में हुई. हाईकोर्ट ने लगातार उनकी गिरफ्तारी की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. हाई कोर्ट ने पूछा है कि निचली अदालत ने मराठी भाषा में दस्तावेजों को देखकर कैसे ट्रांज़िट रिमांड दे दी. वहीं सरकारी वकील ने कहा है कि सारे नियमों और कानून का पालन कर ही गिरफ्तारी हुई है.


हाइकोर्ट ने पूछा है कि अभी भी पुलिस से जुड़े दस्तावेज आरोपी को नहीं मिले. कैसे पता चलेगा की नवलखा को क्यों गिरफ्तार किया गया. क्या जिन लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने गिरफ्तारी दिखाई वो लोग कोर्ट में पुलिस के साथ ही आये थे. कोर्ट ने यह भी पूछा है कि जब नवलखा को गिरफ्तार किया गया था तो क्या लोकल पुलिस भी उनके साथ थी.


हाइकोर्ट ने कहा है क्या उनको जानकारी दी गई थी कि नवलखा पर क्या आरोप हैं और क्यों गिरफ्तार किया गया है? कोर्ट ने पूछा कि क्या 31 दिसंबर को आरोपी हिंसा वाली जगह पर था? इसके जवाब में सरकारी वकील ने कहा कि वो वहां नहीं थे.


हाइकोर्ट ने कहा कि अगर मजिस्ट्रेट को पूरी तरह से मामला समझ नहीं आया था तो आरोपी को बाहर ट्रांज़िट रिमांड पर भेजने का आदेश नहीं दिया जा सकता. अगर अदालत के सामने सारे दस्तावेज नहीं आते और कोर्ट उससे संतुष्ट नहीं होता. ऐसे में किसी भी सूरत में आरोपी को दूसरे राज्य में नहीं भेजा जा सकता. हाइकोर्ट ने कहा कि अभी हम बाकी चीजों पर बात नहीं कर रहे. हम यही देख रहे हैं कि कैसे निचली अदालत के जज ने गौतम नवलखा की ट्रांज़िट रिमांड दे दी.


हाइकोर्ट ने कहा कि अगर निचली अदालत के जज ने सही आदेश नहीं दिया, क्योंकि इस मामले में गिरफ्तारी की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो ऐसे में याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी ही अवैध हो जाएगी. ऐसे हालात में पुलिस को नियमों का पालन करते हुए याचिकाकर्ता को फिर से गिरफ्तार करना पड़ेगा.


बता दें कि इस मामले में पुलिस ने ने  महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, दिल्ली और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में छापेमारी की है. पुलिस ने इन राज्यों से नक्सली कनेक्शन में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा, फरीदाबाद से  सुधा भारद्वाज और वामपंथी चिंतक वरवर राव सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया है.  कल पुलिस ने गौतम की एक दिन की ट्रांसिट रिमांड मांगी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसपर एक दिन का स्टे लगा दिया था.


कौन हैं गौतम नवलखा?


गौतम नवलखा दिल्ली में रहने वाले पत्रकार हैं और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े रहे हैं. वह प्रतिष्ठित पत्रिका ‘इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ के संपादकीय सलाहकार हैं. उन्होंने सुधा भारद्वाज के साथ मिलकर गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 को निरस्त करने की मांग की थी. उनका कहना है कि गैरकानूनी संगठनों की गतिविधियों के नियमन के लिए पारित किए गए इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है. पिछले दो दशकों से अक्सर कश्मीर का दौरा करते रहे नवलखा ने जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर काफी लिखा है.