भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के नजदीक स्थित एक मदरसे में गोशाला चल रही है. यहां बच्चे दीनी तालीम के साथ-साथ गौसेवा भी कर रहे हैं. इस गोशाला का दूध भी मदरसों के बच्चों में ही बांटा जाता है. मदरसे में पढ़ेन वाले बच्चे ही गायों को चारा पानी और रोटी देते हैं. ये गोशाला इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गई है.


भोपाल इंदौर रोड पर फंदा गांव के आगे चैडी गांव के रास्ते में ये मस्दिज पड़ता है. यहीं पर जामिया इस्लामिया अरबिया मदरसा है. यहां आसपास के गांवों के दो सौ से ज्यादा बच्चे दीनी तालीम लेते हैं. तकरीबन साठ एकड़ जमीन पर बनी ये मस्जिद और यह मदरसा काफी पुराना है. पहले इसका स्वरूप कुछ अलग था मगर लोगों की मदद से अब मस्जिद की इमारत भव्य हो गई है. बच्चे भी ज्यादा संख्या में इस मदरसे में पढ़ने लगे हैं.



टीन के शेड में यहां एक बड़ी गोशाला है. इसे साल 1980 में एक गाय से खोला गया था. अब अच्छी नस्ल की बीस गायें और दस भैंस यहां पर हैं जो जो चालीस से पचास लीटर दूध देती हैं, जो यहां के मदरसे और भोपाल के मदरसों के काम आता है. यहां मदरसे के बच्चे दिन में एक बार गायों को रोटी देने जरूर आते हैं और इस काम को गाय की सेवा और खिदमत का काम मानते हैं.


मदरसे के छात्र और यहां के संचालक इस बात से हैरान हो रहे हैं कि उनकी गोशाला की अब इतनी चर्चा क्यों हो रही है. ये गोशाला तो यहां कई सालों से है और उनके मदरसे का हिस्सा ही है. फिर ऐसा क्या हो गया है कि गोशाला और गायों की चर्चा हो रही है. इस मदरसे के संचालक मुफ्ती मोहम्मद आरिफ कहते हैं कि ये गायें किसी को खुश करने के लिए नहीं है बल्कि गोसेवा तो खिदमत का काम है. हमारे धर्म में जानवरों से प्रेम करने का आदेश दिया गया है.